Neeraj pal

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जीवन मुक्ति का उपाय

जीवन मुक्ति का उपाय

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एक बार गोष्ठी हो रही थी यह प्रश्न उठा कि भगवान कृष्ण जैसे गुरु थे ।अर्जुन जैसा शिष्य था, परंतु फिर भी सारी गीता का उपदेश सुनने के बाद विराट रूप का दर्शन करने के बाद अर्जुन को नरक जाना पड़ा ।ऐसा कहते हैं बहुत बातें हुई उसमें अंत में यही निष्कर्ष था कि अर्जुन ने युद्ध के दौरान कुछ क्षणों में भगवान कृष्ण से जो कुछ सुना था वह अपने जीवन में उतार नहीं पाया ।वह दृष्टा भाव फल के प्रति नहीं ला पाया। दृष्टा कर्ता नहीं होता, अकर्ता होता है ।परंतु अर्जुन कई बार उस युद्ध के दौरान अपने को ही करता मानता रहा। इसलिए जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया तो अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा कि इस युद्ध में मैंने बहुत से करने ना करने के कर्म किए हैं अच्छा हो आप मुझे गंगा स्नान करा लावें। जिससे मैं पवित्र हो जाऊँ। भगवान कृष्ण समझ गए अभी इसकी बुद्धि में वह नहीं आया जो इसको सिखाना चाहता था बोले कि हां भाव तो बहुत अच्छा है चलो तुमको गंगा स्नान करा देवें ।वह गंगा के किनारे गए थोड़ी दूर पर रथ रोक दिया बोले कि घोड़े थक गए हैं, मैं इनको घास चराता हूं थोड़ी मालिश भी करूंगा तुम ऐसा करो तब तक गंगा स्नान करके आ जाओ ।अर्जुन जब गंगा की तरफ जा रहा था तो उसने एक विचित्र दृश्य देखा कि एक मुर्दा पड़ा हुआ है और एक कुत्ता उसके चारों तरफ चक्कर खा रहा है परंतु उसको खाता नहीं ।यह कुत्ते की जो प्रकृति है उसके विपरीत था। इसलिए अर्जुन वहाँ रुक गया कि देखें क्या होता है ।थोड़ी देर में अर्जुन ने देखा कि एक और कुत्ता आया और वह पहले कुत्ते को देखकर बोला कि भाई क्या बात है? भोजन सामने है परंतु तुम उसके चारों तरफ चक्कर तो लगा रहे हो खा क्यों नहीं रहे ।मैं समझ रहा हूं कि तुम भूखे भी हो। अर्जुन को भी भगवान कृष्ण की कृपा से उसके भाव समझने की बुद्धि आ गई ।अर्जुन ने सुना कि पहला कुत्ता कह रहा था कि भाई देखो पिछले जन्म में हमने बहुत बुरे कर्म किए थे इस कारण से यह कुत्ते की योनि हमको प्राप्त हुई ।इस मनुष्य नें मुझसे भी बुरे कर्म किए हुए हैं मैं यह सोच रहा हूं कि इसको खाकर अपनी और दुर्गति करूं या ना करूं। तो दूसरा कुत्ता बोला इसमें सोचने की क्या बात है ?चलो कहीं और भोजन करेंगे ।दोनों जाने लगे तब दूसरे कुत्ते की निगाह अर्जुन पर पड़ी वह बोला कि देखो अर्जुन खड़ा है ।पहला कुत्ता बोला कि हां अर्जुन जैसा मूर्ख मैंने दूसरा नहीं देखा ।जिसको भगवान कृष्ण ने सारी गीता का उपदेश दिया, विराट रूप का भी दर्शन कराया, बार -बार उसको युद्ध में बचाया भी तब भी वह यह समझता है कि मैंने युद्ध किया। सारा युद्ध तो भगवान कृष्ण ने लड़ा और यह अब भी इसी भाव में है कि मैं युद्ध कर रहा था और इसलिए गंगा स्नान के लिए जा रहा है ।जब यह बात अर्जुन ने सुनी तब उसको समझ में आया कि मैं तो अकर्ता था इस युद्ध में कर्ता तो भगवान कृष्ण थे और वह वहीं से लौट पड़ा। अर्जुन को देखकर भगवान कृष्ण बोले क्या बात है ?इतनी जल्दी बिना नहाए कैसे चले आए। वह उनके चरणों में गिर पड़ा कि भगवान मुझे क्षमा करें ।मैं आपको समझ नहीं पाया। वैसे भी आप देखिए कि भगवान कृष्ण ने जब उसको सारा उपदेश दे दिया ,दृष्टा बनने को कहा तो अर्जुन ने यही कहा था कि मैं बहुत कोशिश करता हूँ की मन आपके कहे अनुसार चले परंतु वह तो ऐसा है जैसे हजार घोड़ों का बल उसमें हो, फट से चला जाता है ।तो भगवान कृष्ण उसको समझाया था कि मन को वश में करने के लिए दो ही कार्य करने पड़ते हैं वह है "अभ्यास और वैराग्य।"


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