जीवन की संध्या
जीवन की संध्या
कहते हैं बुढ़ापे में हम नन्हे बच्चों जैसे हो जाते हैं । कभी सो जाते हैं तो कभी सो ही नहीं पाते हैं । कभी ख़ुश होते हैं तो कभी रूठ भी जाते हैं । कुछ खाने की ज़िद करते है तो कुछ चुपके से खा जाते हैं । कभी नाराज़ होते तो कभी खुश हो जाते हैं । कुछ याद रहता है मगर कुछ भूल भी जाते हैं । जब अपने नाराज़ होते हैं तब उन्हे हम सिर्फ देखते ही रह जाते हैं । सारा रवैया हमारा नन्हे बच्चों जैसा हो जाता है । लोग ही कहते हैं कि जब हम बूढे हो जाते हैं तब हम बच्चों जैसे हो जाते हैं
कुछ खाते हैं और कुछ गिरा भी देतें हैं । कुछ छूते हैं और कुछ हटा भी देतें हैं। कुछ उठाते हैं और कुछ तोड़ भी देते हैं ।कुछ सुनते हैं और कुछ सुना भी देते हैं। पर कोई इसका बुरा नहीं मनता क्योंकि अब हम बूढ़े हो गए हैं और अब बच्चों जैसे हो गए हैं
अब किसी को इंतज़ार नहीं होता हमारा घर वापस आने का, बस हमें इंतजार रहता है अपने नन्हे पोते पोतियों के स्कूल से वापस आने का, उनके प्यार का , उनसे गिनती सुनने का और उनको कुछ सिखाने का उनके साथ बैठकर खेलने और खिलाने का । अपने बचे दाँतों को गिनने का और उनके दाँतों को गिनवाने का । उनके मुलायम नए बालों के आने का और अपने बचे कुचे बालों के जाने का । बच्चों से अपनी भाषा बुलवा ने की कोशिश में हम खुद ही स्पष्ट शब्द नहीं बोल पाते हैं और उनसे उनकी ही भाषा बोलने लग जाते हैं तब लोग देखकर कहते हैं , ये तो बच्चों जैसे हो गए हैं क्यो कि अब वह बूढे हो गए हैं । पर बच्चे इस बात को नहीं मानते और हमसे फिर अपनी ही भाषा में बोलने लग जाते हैं।
कुछ अपने हमें आज भी याद करते हैं और कुछ भूल भी जाते हैं । मगर कोई गिले शिकवे नहीं है अब हमें किसी से इस उम्र में, बस बच्चों की तरह सबसे प्यार ही प्यार मांगते हैं और हर पल अपनों को अपने सामने देखना चाहते हैं ।
कईबार जब कुछ लोग हमारे घर आते हैं तो पहले हमसे ही मिलना चाहते हैं पर हम उनसे कुछ बोल नहीं पते हैं क्योंकि अकसर हम रिश्ते ही भूल जाते हैं
तब लोग ठीक ही कहते हैं कि अब हम छोटे बच्चों जैसे हो गए हैं क्योंकि अब हम बूढे हो गए हैं।
अच्छा लगता है सुनकर, कि इस उम्र में हम सारे जंजालों से मुक्त हो गए हैं और परिवार के सबसे ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हो गए हैं क्योंकि अब हम बूढे हो गए हैं और बच्चों जैसे हो गए हैं ।
पर सोचते हैं कि जब जीवन की संध्या इतनी सुनहरी होती है तब हम जीवन के दो- प्रहरों में ही बच्चों जैसे क्योँ नहीं हो गए और समय से पहले ही बूढ़े क्यों नहीं हो गए I