जीवन के खेल
जीवन के खेल
ईश्वर ने जीवन में मेरी अनेक बार परीक्षा ली। मेरे चार मेजर आपरेशन हुए। पति का कोई रिश्तेदार नहीं है। देखभाल के नाम पर पति और बच्चे इन्हीं लोगों ने मिलकर सेवा शुश्रूषा की।
शुरू से ही हम पति -पत्नी दोनों ही मिल -जुल कर घर के काम करते थे। यह बहुत पुरानी बात है। दिन में जब यह काम पर जाते, तो मैं घर का और बाहर का काम निपटाती। एक बार मैं बेटी को लेकर एक प्रोविजन स्टोर राशन की लिस्ट बना कर महीने का सामान लेनी पहुंची। स्टोर के बाहर एक लड़का टोकरी में नींबू ,अदरक ,मिर्च लगाए बैठा था। मैंने बेटी के साथ प्रोविजन स्टोर में प्रवेश किया। दुकानदार ने लिस्ट के अनुसार सामान निकाल दिया और मैं लिस्ट के मुताबिक सामान का मिलान करने लगी। इतने में फिर यह कब मेरा हाथ छोड़ कर नींबू की टोकरी की तरफ लपक ली, मुझे पता न चला। फौरन मुझे लगा कि यह आस- पास नहीं है। मुड़कर देखती हूं तो इसने किसी अन्य महिला की उंगली पकड़ रखी है!
बात दरअसल यह थी कि मैंने और उस महिला ने एक ही रंग और डिजाइन के प्रिंट वाले कार्डिगन पहन रखे थे और इसने सोचा कि मैं ही हूं और उनका हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई थी। इस तरह दो बार यह गुम होते -होते बची।
आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं यह सोच कर कि अगर मेरी बच्ची मुझसे बिछड़ जाती तो हम कैसे जीते ?