जीवन धारा
जीवन धारा


रोज की तरह आज भी कमली को घर से निकलते निकलते देर हो गई, आज तो पक्का ही मालकिन से डाँट पड़ने वाली है, वो भी क्या करे घर पर भी तो कितने काम होते हैं, माँ को नाश्ता और दवा भी तो देना पड़ता है घर साफ कर दिया है कपड़े धुलने के लिए रख दिए हैं खाना तैयार है, श्याम और सुरीली को तैयार करके स्कूल भी छोड़ आई है, अब इतना सबकुछ करने में समय तो लगेगा ही ना, पर ये मालिक लोग कहाँ समझते हैं। हालांकि ये मालिक मालकिन थोड़े अच्छे हैं गरम खाना भी देते हैं और चाय भी, कपड़े भी पर बड़े लोगों का क्या भरोसा, कब मिज़ाज बदल जाए, यही सब सोचते हुए जैसे ही अंदर गई देखती है कि घर में मेहमान आए हुए हैं, मालकिन कमली को देखते ही खुश हो गईं, अरे आओ ना कमली, इधर आओ इनसे मिलो ये सुचित्राजी हैं मेरी मित्र ये बच्चों का स्कूल चलाती हैं और इन्हें तुम्हारे जैसी मेहनती और मिलनसार इंसान की जरूरत है जो इनके साथ मिलकर इनके स्कूल की देखभाल कर सके,भगवान का दिया बहुत कुछ है इनके पास बस एक बहू की कमी है।
कमली हैरान हो गई "अरे मालकिन आप ये क्या कह रही हैं? कहाँ ये लोग और कहाँ मैं गरीब ?"
अरे नहीं बेटी हमलोगों ने बहुत दुनिया देखी है, हमें जैसी बहू चाहिए बिल्कुल वैसी ही हो तुम, शीला(मालकिन )से जितना भी तुम्हारे बारे में सुना है हमें फैसला करने में कोई मुुश्किल नहीं हुई। कमली को अपने कानों में यकीन नहीं हो रहा है क्या सपने ऐसे सच होते हैं!
मालकिन के समझाने पर कमली मान गई और मालिक माालकिन ने माता पिता की तरह उसे विदा किया।
सुचित्रा जी सही मायनों में एक बहुत ही अच्छी इंसान हैं अपनी बहू के सारे उत्तरदायित्व (उसके परिवार माँ और भाई बहन के पालन पोषण, पढ़़ाई) अपने आप निभाने लगी। कमली की शादी आकाश से हुई। वह भी बहुत सुलझा हुआ और संस्कारी है। कमली की जिन्दगी पूरी तरह से बदल गई। वह अपने मालिक मालकिन की हमेशा शुक्रगुज़ार है।