जीवन चलने का नाम
जीवन चलने का नाम
सुमन की शादी की यह दसवीं वर्षगाँठ थी। सुबह की चाय के साथ वह विचारों के यान में बैठ दस वर्ष पीछे चली गई। उस दिन जब फ़ोन की घंटी बजी तब तक सब सामान्य था किंतु फ़ोन उठाते ही पावँ के नीचे से ज़मीन सरक गई थी। खबर ही ऐसी थी। अंश के असमय मृत्यु की। सड़क पर गाड़ी से टक्कर हो जाने के कारण अस्पताल पहुँचते-पहुँचते ही उसकी मृत्यु हो गई थी।
सुमन और अंश एक दूसरे को जी-जान से चाहते थे और दोनो के परिवार भी उनकी शादी के लिए राज़ी थे। दो ही महीने में दोनो की शादी होने वाली थी। अंश की मृत्यु ने सुमन को बिलकुल तोड़ दिया था। वह भी अब जीना नहीं चाहती थी। बिल्कुल ही चुप हो गई थी। अंश की मृत्यु के अब छः माह होने को आए थे पर सुमन अपने आप को सम्भाल नहीं पा रही थी। सुमन की माँ जानती थी कि जीवन में साथी की ज़रूरत सिर्फ़ सामाजिक और शारीरिक नहीं होती है किंतु भावनात्मक आश्रय के लिए भी होती है। इस कारण वह सुमन को जो हुआ उसे भूल कर आगे बढ़ने के लिए समझती रहती थी। उसे आगे बढ़ने को प्रेरित करती रहती थी। अंततः सफलता मिल ही गई। सुमन ने माँ की बात मान ली और शादी के लिए तैयार हो गई थी।
सुमन और करण की शादी हो गई
। करण को अपनाना सुमन के लिए आसन नहीं था। करण के साथ पहली मुलाक़ात में ही सुमन ने अपनी मनोस्थिति बात दी थी। करण ने फिर भी शादी के लिए हाँ करी थी। करण के सरल व्यवहार और ससुराल वालों के प्यार में धीरे-धीरे सुमन अपनी पिछली ज़िंदगी को भूल आगे बढ़ती गई। समय के साथ सुमन- करण के दो प्यारे बच्चे भी हो गए और सुमन अपने खुशहाल ज़िंदगी में घुल-मिल गई।
आज सुमन अपनी माँ की बात की सार्थकता पूरी तरह समझ गई थी कि जीवन आगे बढ़ने का नाम है। कई बार हमें जीवन में छोटी-बड़ी दुःख-सुख के लिए कुछ पल रुकना पड़ता है पर फिर आगे बढ़ने में ही समझदारी है। और माँ की दूसरी बात कि जीवन में साथी की ज़रूरत सिर्फ़ सामाजिक और शारीरिक नहीं होती है किंतु भावनात्मक आश्रय के लिए भी होती है। आज जब भी मन भारी होता है या निराशा के भाव उमड़ते हैं तो करण का साथ और सहारा सारी नकारात्मक भावनाओं से बाहर ला कर जीवन की ख़ुशियों से मिलता है।
तभी सुमन के कानों में करण की आवाज़ आती है “सुमन शादी के वर्षगाँठ की शुभकामनाएँ” और सुमन अपने सोच से बाहर आ जाती है। दोनो पति पत्नी एक दूसरे को बधाइयाँ देने लगते हैं।