Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy Action Inspirational

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Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy Action Inspirational

जीवन : बचपन ,यौवन, चौथेपन में !

जीवन : बचपन ,यौवन, चौथेपन में !

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प्रसिद्ध नर्तकी कुमकुम अब नहीं रहीं। उनके एकांगी जीवन का संघर्ष अब थम गया है। उनकी एकमात्र आशा और सम्बल बनने वाले उनके प्रतिभावान कलाकार पुत्र प्रशांत की रहस्यमय आत्महत्या की गुत्थियां सुलझाने में लोग लगे हुए थे। आत्महत्या का केन्द्र अब फ़िल्मी दुनियां में वंशवाद ,विदेशों से आर्थिक और सामाजिक अपराधियों की पूंजी लगने,कलाकारों में ड्रग्स और ड्रिंक्स का घृणित प्रचलन चलने की ओर मुड़ चला था। ऐसा लग रहा था कि न पार्टी में कनिका के साथ मंजीत सिंह,चरण गौहर और अंकित वगैरह लोगों ने दुर्व्यवहार किया होता न आगे के घटनाक्रमों का सिलसिला चलता। मुम्बई में इन ख़ास तबकों में पीने पिलाने के बाद इस तरह के दुर्व्यहार आम थे। यह तो कुछ नहीं था। नई नई लड़कियाँ फ़िल्मों में इन्ट्री पाने के लिए क्या कुछ नहीं किया करती रहती हैं !

डा.दवे जीवन में आए इन अप्रत्याशित घटनाओं से थक चुके थे। वे सोच रहे थे कि रिटायरमेंट के बाद का जीवन अमन चैन से बीतेगा लेकिन उनके नसीब में नहीं लिखा था। प्रशांत के जानने वालों में प्रोड्यूसर राहुल रवेल , डाइरेक्टर मैडम निम्मी ,प्रशांत की वाइफ कनिका अब भी सम्पर्क में थे। यदाकदा उनका फोन आता रहता था। दिल्ली में उनके मित्रगण मधुकर , शंकर बासु ,सान्याल ,पुद्दुचेरी के डाक्टर अग्रवाल ,युवावस्था की फ्रेंड और आजाद ख्यालों वाली आधुनिक नारी रीना का साहचर्य उनको सहज ही उपलब्ध था लेकिन जाने क्यों पुद्दुचेरी से लौटने के बाद उन्होंने कहीं आना जाना कम कर दिया था। हाँ, पटना के उनके साथ के दर्शन शास्त्र के आचार्य रमेश ने भी अब अपना ठिकाना पटना से बदल कर दिल कर लिया था | सरोजिनी नगर के आस पास रहा करते थे इसलिए डा.के.के.को उन तक पहुंचना आसान हुआ करता था।

मुम्बई की यात्रा उनके लिए एक नया अनुभव सिद्ध हुई थी। अध्यात्म के माध्यम से अशांत मन को काबू में ;लाया जा सकता है - यह बात वे भलीभांति जान चुके थे। लेकिन किस मार्ग को चुना जाय / यह एक बड़ा सवाल उनके ज़ेहन में था। ........मार्ग भी ऐसा जो उनको खाने पीने , खास तौर से पीने , की छूट दे ! सब जगह तो सबसे पहले प्रतिबंधों की सूची सौंप दी जाती है ..यम और नियम ,शेध और निषेध बताया जाता है। लेकिन आचार्य रमेश के पास बैठकर उनको बड़ा सुकून इसलिए मिलता था क्योंकि वे मध्यमार्गी थे। उनका विशवास था कि यदि आप अध्यात्म मार्ग पर एक बार शुद्ध और सात्विक मन से चलना ना शुरू कर दें तो आपके सारे व्यसन ,आपके सारे दुर्गुण अपने आप एक एक करके अपनी केंचुल उतारते चले जायेंगे। निगेटिव से पाजिटिवनेस का उनका यह सिद्धांत के.के.को बहुत ही आकर्षित किया करता था।

जब उनको जब कहीं नहीं जाना होता है तो वे टी. वी. खोल लेते हैं ..घंटों तक उसे देखते रहते हैं।  जैसे आज यह  शो..विक्रम और वेताल का वे अपने बचपन के दिनों जैसा देखते हुए आनन्दित हो रहे हैं। !

 आज के.के. कहीं नहीं जा सके हैं। मौसम अंगडाइयां ले रहाहै। शरद ऋतु का आगमन हो रहा है। और..और मानो के.के.उसका इस्तकबाल करने के लिए आज व्हिस्की की एक नई बोतल के साथ अपनी शाम रंगीन कर रहे हैं। उनको अपना बचपन , अपना यौवन और अब अपने जीवन का चल रहा चौथापन जीवंत हो रहा है। जगजीत सिंह की गजलें उनको कभी बचपन के सावन में ले जाती है,तो कभी जवानी के उस इश्क की याद दिलाती है जिसमें वे अपना सर्वस्व दे देने को तत्पर रहते हैं। शाम रात में नहीं ढलने को तैयार है ठीक उसी तरह जैसे के.के.अपने चौथेपन को स्वीकार नहीं करना चाह रहे हैं। क्या होगा इनका ..आप भी कुछ अनुमान लगाइए..प्लीज़ !


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