जीने की चाह

जीने की चाह

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मेरे डॉक्टर के मेरे कानों में गूंज उठे,

"अभी ट्यूमर की दूसरी स्टेज है। हम ऑपरेशन कर निकाल देंगे। आप हौसला रखिए।"


पर उसके बाद तो मेरे भीतर हिम्मत ही नहीं बची थी। बार बार एक ही सवाल उठ रहा था मन में, ये क्या हो गया ? अभी महज़ पैंतीस साल की उम्र है। बेटी ने स्कूल जाना शुरू ही किया है। अभी तो गृहस्ती बसनी शुरू ही हुई थी। पर ज़िंदगी ने किनारा कर लिया। ना जाने कब हाथ छुड़ा ले।


मेरे सामने सब कुछ कितना सजीव था। पार्क में किलकारी मारते बच्चे। जो एक दूसरे को दौड़ दौड़ कर पकड़ रहे थे। पास ही उनके माता-पिता बैठे बातें कर रहे थे। शायद उनके भविष्य की योजना बना रहे होंगे। कुछ दूर पर एक जवान लड़का-लड़की बैठे थे। जीवन में कुछ करने के सपने आँखों में बसाए दोनों प्यार भरी बातें कर रहे होंगे।


उनसे कुछ ही दूरी पर एक लड़की बैठी थी। मैंने गौर किया कि वह मुझसे कोई दस साल छोटी होगी। बेंच पर बैठी वह आसपास के सारे माहौल को बड़े ध्यान से देख रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी। एक संतुष्टि का भाव था। ऐसा लग रहा था मानो जीवन से कोई शिकायत ही ना हो।


बाहर की सारी सजीवता के विपरीत मेरे भीतर एक वीरानी छाई थी। एक अजीब सी मायूसी। मुझे लग रहा था कि शायद ही जीते जी इससे उबर पाऊँगा। मैंने मन ही मन सोचा काश मैं भी इन लोगों की तरह आज की शाम का मज़ा ले पाता। उस लड़की की तरह मुझे भी ज़िंदगी से शिकायत ना होती। पर मेरी किस्मत उसके जैसी अच्छी कहाँ है।


मैंने देखा कि एक आदमी उस लड़की के पास आया। उससे कुछ बात की। फिर चला गया। कुछ ही देर बाद वह व्यक्ति एक व्हीलचेयर लेकर आया। उसने बड़ी सावधानी से उस लड़की को उस व्हीलचेयर पर बैठाया। उसके बाद व्हीलचेयर लेकर पार्क के बाहर जाने लगा।


मैं उठा और उसके पीछे पार्क के बाहर गया। वह आदमी उस लड़की को पास के एक मकान के अंदर ले गया। मकान के बाहर एक बोर्ड था 'सरिता संगीत अकादमी'। 

अपना दुख भूल कर मैं उस लड़की के बारे में जानने को उत्सुक था। मैं घर के बाहर खड़ा इधर उधर देख रहा था कि किसी ने टोका।


"क्या बात है ? क्या चाहिए आपको?"

सामने पचास पचपन साल के एक सज्जन खड़े थे। मैंने बात बनाते हुए कहा।

"वो संगीत अकादमी के बारे में पता करना था।"

"ओह पर आज संडे है। छुट्टी रहती है। बाकी बोर्ड पर लिखा है। सुबह शाम क्लास होती है।"


"कौन चलाता है ये क्लासेस ?"

"मेरी बेटी सरिता। कल आकर बात कर लीजिएगा।"


कह कर वह सज्जन भीतर चले गए। मेरे मन में उस लड़की के बारे में जानने की उत्कट इच्छा थी। मैं भी उनके पीछे गेट के अंदर घुस गया। 

"कहा ना आप कल आइएगा। ये क्या तरीका है।"


मैंने उनके लॉन में पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा कर कहा।

"बस कुछ देर आपसे बात करनी है। प्लीज़ बहुत ज़रूरी है।"


वह मान गए। मैं उनके साथ वाली कुर्सी पर बैठ गया। मैंने उन्हें सारी बात बताई। सुनकर वह गंभीर हो गए। मैंने कहा,

"सर, सरिता ही पार्क वाली लड़की है जो संगीत सिखाती है।"


"हाँ वही सरिता है।"

अब वह मेरी जिज्ञासा समझ चुके थे। उन्होंने मुझे सरिता के बारे में बताया।


पाँच साल पहले सरिता छत से गिर कर घायल हो गई। भागती दौड़ती चंचल सरिता व्हीलचेयर पर आ गई। लेकिन उसने जीने की इच्छा नहीं छोड़ी। इसका नतीजा यह हुआ कि शारीरिक अक्षमता भी उसे रोक नहीं पाई। 


आज भी वैसे ही ज़िंदादिल है जैसे पहले थी। हालांकि, तकलीफों की कोई कमी नहीं है।

मेरे भीतर की मायूसी गायब हो गई। एक सजीवता ने मेरे रोम रोम को उमंग से भर दिया।


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