हरि शंकर गोयल

Comedy Romance

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हरि शंकर गोयल

Comedy Romance

जीना इसी का नाम है

जीना इसी का नाम है

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आज सुबह सुबह श्रीमती जी ने पनीर सैंडविच बनाई नाश्ते में। बहुत ही स्वादिष्ट थीं बस थोड़ी मिर्च तेज थीं। कह भी नहीं सकते कि मिर्च तेज है वरना हमें पुरुषवादी सोच और नारी उत्पीड़क कह कर गरिया दिया जाता। इसलिए खामोश रहना ही बेहतर समझा। 


लेकिन आंखों का क्या करें ? ये सब राज खोल देतीं हैं। टप टप आंसू गिरने लगे। श्रीमती जी का ध्यान जैसे ही आंसुओं पर गया वे घबरा गई। 

पास आकर बोली "क्या हुआ " 

हमने कहा " आपकी सैंडविच इतनी शानदार हैं और हमने इनकी प्रशंसा नहीं की तो आंखों को बुरा लग गया। वे प्रशंसा कर रहीं हैं तुम्हारी "। हमने मुस्कुराते हुए कहा। 


वे मेरे आंसू पोंछने लगीं। मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की कि देखो तुम मुझे फिर से पुरुष वादी घोषित करा रही हो। लोग कहेंगे कि मैं तुम पर अत्याचार कर रहा हूं। इसलिए मुझे ही पोंछने दो न " 


मेरे आंसू पोंछते पोंछते वे रोने लगीं। मैंने कहा " हे देवी , अब मैंने कौन सा ऐसा पुरुष वादी काम किया है जिससे आपके कोमल दिल को ठेस पहुंची है ? मैं अपने जाने अनजाने गलत कार्यों के लिए क्षमा याचना करता हूं " 


मेरे मुंह पर हाथ रखते हुए वे बोलीं " खबरदार जो अब एक शब्द भी मुंह से निकाला तो। मैं आपके सब व्यंग्य समझती हूं। माना कि आप अच्छे व्यंग्यकार हैं लेकिन इतने सालों से आपके साथ रह रहकर आपको और आपके व्यंग्यों को समझने लगी हूं। मेरी ही मति मारी गई थी जो मैंने गुस्से में आकर मिर्च ज्यादा डाल दीं" 


मेरे लिए यह आठवां आश्चर्य से कम नहीं था। धड़ाम से जैसे धरती पर गिरा। अब समझ आया कि आज इतनी तीखी सैंडविच क्यों बनी हैं। मैंने कहा " हे देवी , आपके दास से ऐसा कौन‌ सा गुनाह हो गया है जिसकी ऐसी भयंकर सजा मिल रही है उसे। कम से कम हमारा अपराध तो बता दो जिससे आगे हम ऐसी धृष्टता करने की हिम्मत नहीं कर सकें " 


हमारी चिकनी चुपड़ी बातों से वे खुश हो गई और नीची नजरें करके पास ही बैठ गई। कहने लगी " हमसे बहुत बड़ा अनर्थ हो गया जी। हमें माफ कर दो ना " 


हमने कहा "आप भी हमारी तरह गोल गोल घुमाना सीख गई हो। सही मायने में हमारी अर्द्धांगिनी हो। अब तो खुलासा कर दो कि सेवक से क्या खता हो गई है " 


आंखें तरेरते हुए कहने लगी कि पहले ये दास , सेवक शब्द अपने शब्द कोष से निकाल कर फेंको। आप तो हमारे हृदय सम्राट हैं। हमें ये सब सुनना अच्छा नहीं लगता है " 


हम फूलकर कुप्पा हो गये। चलो, हम वो तो नहीं हैं जो हम समझते हैं। पर आज श्रीमती जी को अचानक क्या हो गया है। कभी हमें पाषाण हृदय कहा करतीं थीं , आज हृदय सम्राट कह रहीं हैं। कैसी बहकी बहकी बातें कर रहीं हैं। हमने कहा " देवी , पहेलियां बुझाने में ही आज इतवार की छुट्टी गुजर जाएगी क्या ? फिर इश्क की वर्षा कब करोगी " ? 


किस्से का पटाक्षेप करते हुए कहने लगीं " आपने कल परसों एक कविता लिखी थी ' औरत और पतंग' उसे पढ़कर हमें अच्छा नहीं लगा। हम औरत हैं। सजीव। कोई निर्जीव थोड़ी ही हैं , पतंग की तरह " ? 


मैंने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा " बीच में बोलने की गुस्ताखी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं देवी। मगर ये तो उपमा है देवी। हम तरह तरह से उपमा देते रहते हैं देवी। हर उपमा का वस्तुत: वही अर्थ निकले, आवश्यक तो नहीं, देवी। आप हमें न जाने कितने बार 'पत्थर' कह चुकीं हो, मगर हमने तो इसे कभी अन्यथा नहीं लिया " 


" हां हां , जानती हूं। बस, उसी बात को लेकर मन में गुस्सा था इसलिए आज सबक सिखाने के इरादे से सैंडविच में जानबूझकर मिर्च ज्यादा डाल दीं। मुझे पता नहीं चला कि इतनी ज्यादा हों जाएंगी कि आपके आंसू आ जाएंगे "। उनका गला भर आया था। 


हमने उन्हें अपने सीने से लगाते हुए कहा " देवी , जब मैं आपकी आंखों की तुलना शराब के प्याले से करता हूं। आपकी चाल को तीखा खंजर बताता हूं , तब तो आप बहुत खुश होती हैं। ये दोनों चीजें भी तो निर्जीव हैं। लेकिन तब तो आपने मुझे पुरुषवादी सोच , नारी उत्पीड़क नहीं कहा। आप हो सकता है कि मेरे बिना रह जाएं पर मैं आपके बिना बिल्कुल नहीं रह सकता हूं। आप तो नारी हैं। महान हैं। सक्षम हैं। आपको हम पुरुषों की क्या आवश्यकता है। मगर हम तो पुरुष ठहरे। हमारा तो पत्ता भी आपके बिना नहीं खड़कता है।आप हमें कुछ भी कह लेतीं हैं मगर हम आपको कुछ नहीं कहते। न रूठ सकते हैं न गुस्सा हो सकते हैं। इन सब पर आपने पेटेंट करा रखा है। और तो और आपके पास तो "एक कोप भवन" भी है मगर हम मर्दों के पास तो वो भी नहीं हैं। आप तो चार औरतें मिलकर हमारे बारे में जली कटी सुनाकर अपनी भड़ास निकाल लेती हो। अगर गलती से भी आपके बदन पर हमारा हाथ लग जाए तो आप डोमेस्टिक वायलेंस का प्रकरण तुरंत थाने में दर्ज करा देती हो। और तो और भारतीय दंड संहिता की धारा 498 में दहेज मांगने के आरोप में सीधा अंदर करा सकती हो। आप हमें जली कटी रोटी खिलाकर अपना मूड बतला देती हो। बिस्तर पर तकिये से दीवार खेंच देती हो। हम तो इनमें से कुछ भी नहीं कर सकते हैं न। फिर भी हम पुरुष निर्दयी , पत्थर , असभ्य , असंस्कृत , दुष्ट , निर्लज्ज और न जाने क्या क्या हैं। देवी , आप ही हमारा मार्गदर्शन करें कि हम किस तरह से जिंदा रहें " हमारा गला रुंध गया। 


वो हमसे बुरी तरह लिपट गई। कहने लगी " हमने नारीवाद पर एक लेख पढ़ लिया था उसी से ऐसे विचार आ गए थे। मुझसे भूल हुई जो मैंने भावावेश में सैंडविच तीखी बनाईं। मुझे क्षमा कर दो न " 

और वे सुबकने लगीं। 


हमने कहा " हे प्राणेश्वरी , आपकी तीखी सैंडविच भी हमें उतनी ही प्रिय हैं जितने तीखे आपके नैन। आपकी टेढ़ी मेढ़ी बातें भी उतनी ही प्रिय हैं जितनी टेढ़ी आपकी नाक। आपके लंबे बालों की तरह ही आपके लंबे लंबे सीरियल देखने की आदत। अब और कैसे तारीफ करें आपकी ? हमको तो ऐसे ही तारीफ करना आता है। इतनी सी बुद्धि है हममें। हम आप स्त्रियों की तरह महा ज्ञानी तो हैं नहीं "।


हमारे मुंह पर अपनी उंगली रखकर उन्होंने हमें खामोश कर दिया। 



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