झीलों के जीवन दाता

झीलों के जीवन दाता

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आज हम बात करेंगे आनंद मल्लिगावाद की जिनसे हम प्रेरणा ले सकते हैं पित्ताशय उन्होंने बेंगलुरु की पहली फ्रीडम लेक कयालासनाहल्ली झील को अतिक्रमण से मुक्त कर नया आयाम दिया है। उन्होंने बेंगलुरु की करीब 130 लेक कम्युनिटी को भी तकनीकी सहयोग देकर झीलों को जीवनदान दिया है। वे जलामृत नामक कम्युनिटी की तकनीकी कमेटी में भी शामिल हैं।

कयालासनाहल्ली झील छत्तीस एकड में फैली एक विशाल झील थी।जिसके एक हिस्से पर किसानों का अतिक्रमण था और शेष भूमि पर उद्योगों का डंपिंग ग्राउंड। यह देखकर उन्होंने अपनी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों के आगे इस झील को साफ करने में मदद देने का प्रस्ताव रखा। वे राज़ी हो गए और सनसेरा फाउंडेशन ने 17 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी।इसके साथ ही झील विकास प्राधिकरण समेत अन्य सरकारी अधिकारियों ने सहयोग दिया और इस झील के पुनरुद्धार का काम शुरू हुआ।

 वे झीलों की बायोडायवर्सिटी, इकोलॉजी, हाइड्रोलॉजी जैसी किसी चीज़ के बारे में नहीं जानते थे। उन्होंने एक साल शोध व अध्ययन किया। 180 से अधिक झीलों का दौरा व निरीक्षण किया और उसके बाद अप्रैल 2017 में इस झील पर काम करना शुरू किया। यहां उन्होंने 23 फीट पानी रोकने के लिए जगह बनाई और साढे 3 किलोमीटर लंबा बांध बनाया। जो मिट्टी निकाली, उससे पांच द्वीप बनाए और मियावाकी तकनीक से 5600 पौधे लगाए। दक्षिण भारत में सबसे बड़ा मियावाकी जंगल इसी झील में है। इस कार्य में आईटी प्रोफेशनल्स ने वॉलिंटियर के रूप में काम किया। इसे फ्रीडम लेक का नाम दिया गया। इस तरह आज बेंगलुरु की 300 झीलों में से यह एकमात्र झील है, जिसका पानी पीने लायक है। इस झील में स्टील, कंक्रीट जैसी किसी आधुनिक सामग्री का इस्तेमाल नहीं हुआ है। पौधों से ही इसकी फेंसिंग हुई है।आज किसान यहां के फलदार पेड़ों से भी कमाई कर रहे हैं।

इस अच्छे काम के लिए उन्होंने 16 साल पुरानी नौकरी छोड़ दी है। वह आखिरी दम तक यही करना चाहते हैं। उनका लक्ष्य 2025 तक 45 झीलों को पुनर्जीवित करना है। उन्होंने savelakes.com प्लेटफार्म लॉन्च किया है, जिस पर झीलों के पुनरुद्धार से संबंधित ब्लोगस, तस्वीरें और वीडियोज साझा होते हैं।इन्होंने' लेक रिवाइवरस कलेक्टिव' नाम से ग्रुप बनाया है। जिसका उद्देश्य देश की झीलों को पुनर्जीवित एवं संरक्षित करना है। इसके तहत इन्होंने 22 शहरों की पहचान कर ली है। इसके अलावा उनकी योजना 35 लाख पेड़ लगाने और दुनिया भर में साढे चार लाख लोगों को झील निर्माण के कार्य में प्रशिक्षित करने की है। 


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