जहाँ चाह वहाँ राह
जहाँ चाह वहाँ राह
रोहित को आज अपनी दुनिया पूरी तरह बिखरी नज़र आ रही थी। अस्पताल के बिस्तर पर लेटे रोहित को ईश्वर से ढेर सारी शिकायतें थीं। उसका बावरा मन किसी पंछी की तरह यादों के गलियारों में भटक रहा था।
रोहित को अच्छी तरह से याद है, जब उसकी पाँचवी सालगिरह पर माँ ने उसे स्केट्स उपहार में दिये थे। रोहित को उन स्केट्स से इतना लगाव हो गया था कि वह घर में भी हर समय स्केट्स पहन कर घूमता था। कुछ ही समय में रोहित स्केटिंग में इतना पारंगत हो गया था कि घर की सीढ़ियाँ भी स्केट्स पहन कर चढ़ उतर लिया करता था।
उम्र के साथ स्केटिंग के प्रति रोहित की दीवानगी बढ़ती जा रही थी। उसने पहले अपने स्कूल की स्केटिंग प्रतियोगताओं अपना परचम लहराया फिर अंतरविद्यालय प्रतियोगिताओं में। धीरे धीरे उसकी ख्याति दूर-दूर तक होने लगी थी। रोहित ने अपने शौक़ को ही अपना कैरियर बना लिया था। बाइस वर्ष की छोटी सी उम्र में रोहित देश का सबसे अच्छा स्केटर बन गया था।
पर कहते हैं न, ईश्वर ने हम सब के खाते में सुख और दुख बराबर रखे हैं, बस कब कौन सा पलड़ा भारी हो जायेगा कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही एक काला दिन रोहित के जीवन में भी चार दिन पहले आया था जब दिल्ली जाते समय रोहित की ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी। इस दुर्घटना में रोहित के प्राण तो बच गये थे परन्तु उसके दोनों पैर सीट के बीच में फँस जाने के कारण बुरी तरह ज़ख़्मी हो गये थे और संक्रमण पूरे शरीर में न फैल जाये इसलिये डॉक्टरों को उसके दोनों पैर काट कर निकालने पड़े थे।
अब रोहित क्रूर नियति के आगे बेबस था। उसके मन में एक ही विचार आ रहा था-
“हे भगवान, मुझे बस तुम अपने पास बुला लो, मैं ऐसी बेबस ज़िन्दगी नहीं चाहता.... मैं अब स्केटिंग कभी नहीं कर पाऊँगा....स्केटिंग में ही मेरे प्राण बसते हैं....यही मेरा सपना है....मुझे ऐसी जिन्दगी नहीं चाहिये जिसमें मेरे सपनों के लिये कोई जगह न हो।“
यह सोचते सोचते उसकी आँखों से आँसू बह निकले। पास बैठी उसकी माँ ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा-
“तू बिलकुल भी उदास मत हो रोहित, मैं शाम को जब घर से आऊँगी तो तेरे लिये कुछ जादुई चीज़ लाऊँगी, जिससे तू फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा और अपने सारे सपने भी पूरे कर सकेगा।”
“क्या सच ? कैसे माँ ?” रोहित ने उत्सुकता से पूछा।
“ये मैं शाम को ही बताऊँगी पर एक शर्त पर...वादा कर कि तू अब बिलकुल नहीं रोयेगा।“ माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।
शाम को जब माँ आयीं तो उनके हाथ में लैपटॉप था। लैपटॉप खोल कर उन्होंने उसमें “नाचे मयूरी“ नामक फ़िल्म लगा दी जिसमें नायिका सुधा चंद्रन अपना एक पैर दुर्घटना में गँवाने के बाद भी, कृत्रिम पैर की सहायता से अपने नृत्यांगना बनने के सपने को पूरा करती है।
यह फ़िल्म देखकर रोहित के चेहरे पर नई चमक आ गई, उसे अब भली भाँति पता था कि उसे अब आगे क्या करना है।
अब वह अपने दृढ़ निश्चय से दुनिया का सबसे बेहतरीन स्केटर बनना चाहता था और अपने सारे सपने पूरे करना चाहता था।
किसी ने सच ही कहा है- “जहाँ चाह वहाँ राह।“