Tusharika Shukla

Tragedy

4.0  

Tusharika Shukla

Tragedy

जब मेरी मौत हुई थी ...

जब मेरी मौत हुई थी ...

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"अरे खाना यही खा लेते... पापाजी!", "नहीं नहीं अब तो घरे ही खैये जा के ।" ,"अरे सुनो तो उम्र नैया अब इतेक की बनाओ यही खालो?" नहीं ..नहीं...हम तो सब बना लेंगे तुम्हे भी टिफिन भिजवा दे कहो तो(हलका सा मुस्कुराते हुए)....और टेडी छड़ी के सहारे एकदम सीधे नानाजी मजबूती से जल्दी जल्दी गांधी जी जैसे चलते जारहे थे, घर पहुंचते ही कालू जोर जोर से भोकने लगा ,एहसाह उसका कुछ अजीब था इसबार मानो कह रहा हो यही बैठ जाओ कुछ वक़्त.............................................भूखा होगा सोच कर नाना ने दो रोटी डाल कर कहा ,खाओ इसे ,अब मत भोकना जोर जोर से.          और कपकपाते हाथ और डगमगाते क़दमों से चल दिए दूसरे कमरे में...

ये हां ...हां यहां ठीक रहेगी ये पन्नी यही टांग देता हूं.ये कपड़े खान टेलर से पूरे हजार मै सिलाय है सन्नो की शादी में जो पहन ना है भई.(और कुछ सोचते हुए दूसरे कमरे मै चल दिए ) इस बुढ़ापे में कुछ खाने को जी नहीं करता और ये बहुएं तो ऐसा खाना खिला के मार ना दे और हल्की सी मुस्कान से कहा आज रायता बनाया जाय... हम्म.....दिन भर काम करने का जुनून आज भी वही था , दिवानी के पद से रिटायर हुए ना जाने कितने बरस हो गए पर शायद किरदार से रिटायर वो कभी नहीं हो पाय............

रायता....आहा! खयाल आते ही मुंह मै पानी आगया, कटोरा भर रायता खुद बना के ऐसे बैठते मानो जिंदगी का सारा सार ,सारा रस वो एक कटोरे रहते मै रहा हो..ख़ैर धीरे धीरे खाना तो खाया पर आज कुछ मन अजीब सा था मानो पहली बार शरीर मै छुपे हुए पुलिसिया को पहली बार लगा हो की आज शरीर को छुट्टी चाइए . वो वहीं बैठे रहे.....आत्मा थक चुकी होगी शायद... थोड़ी देर बाद सोफे के सहारे उठे, पर जोश कहा कम था फिर गांधी चाल के साथ पहुंच गए बर्तन भी खुद ही माजने , एक काम के लिए किसी का सहारा नहीं लिया कभी ....सब काम हो गया अब थोड़ा आराम किया जाय ह्म्म.......कहते हुए बिस्तर पर करवट ली और लेट गए फिर शायद कभी उठना ही ना हो पाए..................................कान्हा की याद आती है..जो इस घर होता तो क्या घर पूरा सर जो उ ठा लेता , कल सुबह ही मन भर खिला आउंगा ....!

वक़्त का सितम था, या उम्र की मजबूरी ,शरीर में किसी वजह से जहर बनने लगा था, मतलब शरीर बेेेसुध हो गया था.जाने कयू आज मुझे भी यहां कुछ बैचैनी सी हो रही हैं, मानो अंदेशा होगया था कि कुछ ग़लत होने वाला है..... बहुत ग़लत.......... 

ट्रिं ट्रिन ..!!!!! 

  बैल बजने की नहीं नहीं ये तो शायद किसी काफोन आरा था..इतनी सुबह से कौन है पापा? 

मामा का फोन है. अच्छा क्या हुआ? सब ठीक तो है? 

   उन्होंने कुछ जबााब न दिया, बस सफेद गमछा कंधे पर रख तेजी से बाहर की ओर बढ़ गये. घर मै किसी से भी पु छने पर जवाब मै केवल स्न्नाटा मात्र था, थोड़ी देर बाद मां के चीीखने की आवाज आई हड़बड़ाहट में देखा तो माां लगातार बस रोयेे जा रही थी..ना सवालों का जवाब था ना आसुओं पर रोक बस तो गम का एक उमड़ता बादल. पापा ने कहा था नाना अब नहीं रहे.............

सफेद से शांत चादर में,वहीं पुलिस की चौड़ी छाती के साथ सोए हुए थे गहरी नींद मै.....बहुत गहरी.......मानो सपनो का संसार इतना सुहाना हो जैसे उठ के अभी सबको सुनाएंगे  सपने मै क्या देखा... पर शायद सपना ज्यादा मनमोहक रहा होगा..... सब रों रहे थे मां का तो होश में रहना कठिन था. जिस पिता ने बचपन से हर जिद पूरी की आज ये जिद पूरी न कर सके...बचपन से इतना बड़ा किया हाथ पीले कर डोली में बिटिया को विदा किया, वो आज खुद सबसे फिर कभी न आने का अनकहा वादा कर के विदा होने जा रहे थे... हमेशा के लिए.....बचपन से आज तक की सारी यादों का चलचित्र सामने आ रहा था.घुमाना , खिलाना, डांट से बचाना,और ना जाने कितने तोहफे और वो आशीर्वाद का हाथ ..वो जगह जिसके खाली रहने का मलाल मुझे उम्र भर रहेगा...जििसे कभी भी कोई नहीं भर पायेगा ... कभी नहीं..... 

सब रो रहे थे, आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे, सब दुःखी थे क्युकी नाना हम सब को छोड़ कर बहुत दूर चले गए... 

मैं आज सबसे ज्यादा रो रहा था , क्युकी आज मेरी भी मौत हुई थी ..

मै वो रिश्ता जिसकी मौत भी आज नाना के जाने से हुई थी... मैं भी आज जिंदा जलााया गया था...ये आग तो ठंडी हो गई ,पर मै जल रहा हूं...

 और हमेशा जलता रहूंगा इस विरह की आग में.....पर अगर कुछ जिंदा है तो यादें , घर दीवाल , आंगन का पेड़, बगिया..सब कुछ कहानियां कहते है .....कुछ किस्से कुछ यांद को संजोए हुए , लोग तो अक्सर छोड कर चले जाया करते हैं, पर सिखा कर और देख कर जााते है ये कड़वा सच "की दुनिया की भीड़ में कौन अपना है और कौन पराया .............


"आज वो गुुुुम सा बैठा था मानो समझ गया था कि अब वो अकेला रह गया है......बिल्कुल अकेला..."



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