स्त्री
स्त्री
नई शताब्दी की नई सोच वाले मनुष्यों ने सब खोज कर ली , पर वैज्ञानिक युग के आडम्बर में कुछ व्यथाये आज भी इस युग के लिए ब्लैक होल की दुनिया के समान अछूती होती जा रही है , इस की गणना तो फिर भी बुद्धिीवियों के द्वारा किए जाने की असीम संभावनाएं है , किन्तु वो जो आसमां से ऊंचा सागर से गहरा है न जाने कौन सी सभ्यता में मानव एक स्त्री के मन की व्यथा को समझ पाएगा .....
फेमिनिस्टों से भरी कलियुग की झोली एक हैशटैग से सांस भर के मीटू पर आकर दम तोड़ देती है! जिससे बटन कस जाते है नेताओं के , फॉलोअर्स की रेस में आगे निकल जाते है कुछ गलियों के युवा नेता , रेटिंग के तकाज़े पर कस जाते है कुछ पत्र ,सब आगे निकल जाता है , और अगर कुछ वहीं की वहीं रह जाता है तो स्त्री की व्यथा जो हर युग में समान ही रही ! पितृसत्तात्मक व्यवस्था का बिगुल फूंक कर अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ते हुए आज के मॉडर्न लोग , स्त्री को पुरुष की भांति बराबर लाना चाहते है....खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी..... कलम को हथियार बना के जब किसी युग के इतिहास और एक स्त्री की वीरता को परिभाषित किया जाता है तो एक ओर उनकी वीरता शौर्य को प्रदर्शित कर स्त्री समाज का नाम रोशन किया जाता है वहीं दूसरी ओर कहते है "लड़ी उस वीरता से जैसे मर्द " संबोधित कर फिर शून्य पर लाकर खड़ा कर दिया जाता है .....खैर लड़ाई बहुत लंबी है.
