वो स्त्री है
वो स्त्री है
बात कोई नई नहीं है ,जो स्त्री आज अचानक से बलिदान देने लगी है, अनादि काल से ही सती ने अग्नि मै समाकर, सीता ने पति धर्म निभाने हेतु, लक्ष्मण बिछड़न से उर्मिला व्यथा , द्रोपदी का चीर हरण हो या राधा का अधूरा मिलन पग पग पर नारी स्वाभिमान की गाथा भरी पड़ी है , वहीं आज कलियुग का आइना बन गया है, अनेकों सीता है जिन्हें अपने चरित्र की सिद्धि हेतु परीक्षा देनी पड़ती है , हर कदम द्रोपदी जैसा डर लगता है ,और डर लगता है उस सभा से को तब भी चुप थी और आज भी मूक दर्शक बनी देखती रहती है, और हा,कृष्ण नहीं है यहां बचाने के लिए, सतयुग हो , द्वापरयुग हो , या कलियुग हो ,नारी हर बार स्वाभिमान के लिए लडना जानती है ,पर जोहर! नारी को जोहर करने का ख्याल आता है भले है रजामंदी हो ,पर जीवन भला किसको बुरा लगेगा खेर,समाज से डरी नारी के में मै समाज के सवालों का उसकी अभिलाषाओं का एक सैलाब सा उमड़ता है, और जब वह सैलाब का जवाब नहीं दे पाती तो उसे आग मै कूद जाना कई अधिक सुख देता है , नारी ने अब क्या हासिल किया है हर कोई लिखना जानता है ,पर को नहीं करपाई तो क्यू? आज भी कन्या लड़ रही है सिक्षा पाने के लिए, विवाह से बचने के लिए, अपने सपनों को जीने के लिए ,और नजाने कितनी ही बाते....बहुत लंबी रेस है इस जंग की काल और युग बीत गए पर स्त्री दशा उसकी व्यथा वहीं की वहीं , बहरी चकाचौंध केसा भी हो ,अंतर्मन का विशाल असीम संसार निर्जीव सा शून्य पड़ा है अकेला ....बिल्कुल अकेला....!
