जैसी करनी वैसी भरनी
जैसी करनी वैसी भरनी
मायके के सारे सदस्य एक साथ बोल उठे, “सीमा तुम्हें अपने पति के साथ सुलह कर लेनी चाहिए। उसकी गलतियों को माफ़ कर देना चाहिए”
कल की ही तो बात है सीमा के पति अशोक ने उसे घर से निकाला था, कारण थी कोई नर्स। उसके कारण वह रोज मारपीट करता था। सीमा बेचारी जुल्म सहकर भी घर को बचाने में लगी थी और पति उसे निकालने में। एक दिन अति हो गई अशोक ने उसे इतना मारा कि शरीर का कोई हिस्सा बिना चोट के नहीं बचा था। वह अधमरी सी रिक्शे पर बैठकर घर पहुँची। मायके वाले उसकी हालत देखकर रो रहे थे। वह रोज़ अपने आप को कोसती और रोती रहती।
एक दिन उसने डिसाइड कर लिया कि रोने से कुछ नहीं होगा, मैं अपना जीवन अच्छी तरह काटूँगी। उसने बारहवीं की थी, डी.एड किया और स्कूल में प्राथमिक शिक्षिका बन गई। मायके वालों ने एक कमरा दे दिया था ताकि उसका आत्मविश्वास कायम रहे। उसका मज़े से जीवन कट रहा था।
कुछ सालों बाद घर के बाहर एक आदमी अधमरा सा पड़ा कराह रहा था।
जब पहचाना तो वह उसका पति था। भाई उठाकर अंदर ले आया। उसके घावों को पोंछा, तीमारदारी की और दवाई दी। तब जाकर बोलने काबिल हुआ। उसने बताया तो समझ में आया कि उसने नौकरी छोड़ दी थी वह उस नर्स के साथ मज़े से रह रहा था। नर्स कमाती और यह मज़े करता। बाद में इसकी हरकतों से तंग होकर नर्स ने इसे निकलने को कहा पर वह नहीं माना और सीमा के समान मारपीट करने लगा। एक दिन नर्स ने अपने भाइयों से मिलकर उसे पीटा और घर से निकाल दिया।
अब कोई ठौर न था। कहाँ जाए तो सीमा की याद आई। उसके घर आ गया पर दरवाज़ा खटखटाता उससे पहले ही वह गिर गया।
अब सीमा से रोज माफ़ी मांगता कि अब मैं सुधर गया हूँ, माफ़ कर दो, मुझे फिर रख लो। घरवालों ने माफ़ कर दिया, तुम भी कर दो।
पर वह कभी नहीं मानी। भविष्य में भी उसने माफ़ नहीं किया। हमेशा के लिए उसने अपना जीवन अकेले ही काटा।