समय का निर्णय
समय का निर्णय
माँ आओ ना, कितना, मज़ा, आ रहा है।
सुमन आँगन में बारिश का आनन्द लेती हुई माँ को बुला रही थी। इतनी देर में तिरछी बारिश आने लगी। सारी बैठक पानी से भर गई। वह अंदर आकर अपने कपड़ों को समेटती हुई जल्दी-जल्दी पोछा लगाने लगी। उसी समय दरवाज़े की घण्टी बजी। उसने आधे भीगे कपड़े, बाल बिखरे हुए ऐसी हालत में दौड़ते हुए दरवाज़ा खोला। देखा तो तीन जन खड़े थे। कहा हमें मिश्रा जी से मिलना है।
सुमन ने कहा आइये अंदर बैठिए और पापा जी को उनके आने की खबर देने ऊपर चली गई। पापा जी से पता लगा कि वे उसीको देखने आए हैं। उसकी शादी नहीं हो रही थी। वह पापा से बोली पहले क्यों नहीं बताया अब मुझे इस हालत में कौन पसन्द करेगा।
वह अपने कमरे में जाकर रोने लगी। मम्मी ने मनाया तब जाकर चुप हुई।
चाय-नाश्ता हुआ। कहने लगे लड़की को बुलाइये। सुमन को बुलाया गया । परिवार बड़ी हैरानी से उसे देख रहा था। दोनों शायद लड़के के माता-पिता थे एक साथ बोल उठे यह है आपकी बेटी । मेरे पापा जी बोले जी यही सुमन बेटी है। उसी समय उन्होंने लिफाफा और मिठाई देते हुए कहा कि आज से सुमन हमारी बेटी हुई हमें पसन्द है। बधाइयों का दौर चलने लगा। सुमन का परिवार भी हैरान था। समय डिसीज़न ले चुका था।