परिवार, प्रेरणा और नैतिक मूल्य
परिवार, प्रेरणा और नैतिक मूल्य
एक ग़रीब मध्यम परिवार अपने तीन बच्चों के साथ रहता था। माता पिता उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते थे। बच्चे भी अनमोल और नैतिक मूल्यों से भरपूर थे। बहुत दिन बीत गए। हम वहाँ से दूसरी जगह स्थानांतरण हो कर चले गए। फिर उनसे नहीं मिले।
एक दिन एक लड़की हाथों को मसलती बड़े ही तीव्र वेग से विद्यालय में दाखिल हुई। पहचानते देर नहीं लगी यह तो मेरे पड़ोस की नन्ही सी बच्ची थी अब इतनी बड़ी हो गई है। उसने बताया कि आज से इस विद्यालय में साइंस पढ़ाने के लिए नियुक्त हुई हूँ। मेरे दोनों भाई इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। मैं यहाँ से सीधी कॉलेज के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाती हूँ तब सारे खर्च चलते हैं।
ऐसे लोग स्वाभिमानी भी होते हैं। हम मदद करके उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते थे। सुबह जाड़े के दिनों में दस किलोमीटर से लूना पर आना गर्म कपड़े के नाम पर एक पतला सा स्वेटर। उसे सलाह देते कि इतनी ठण्ड में तुम बीमार पड़ जाओगी। दो स्वेटर ही पहन लिया करो वह फीकी हँसी हँस देती।
हम सब लंच में इकट्ठे खाते थे पर वह लड़की बहाना बना देती थी। एक दिन मैंने उसे ज़ोर देकर साथ में लंच करने को कहा। उसने संकोच करते हुए लंच बॉक्स खोला उसमें थोड़े जले हुए आलू के कतले थे जैसे कम तेल में बने हों। हमने बड़े ही प्यार से उसका टिफिन शेयर किया।
वह हमेशा सब्जेक्ट की तैयारी करती मिलती। उसने पीजीटी केमिस्ट्री के लिए केंद्रीय विद्यालय की परीक्षा दी। और पीजीटी के पद पर आसीन हो गई। घर की सारी कमियाँ एक एक करके दूर होती दिखाई दे रही थीं। उसकी कर्मठता, लगन और स्वाभिमान ने कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया।