Vaishno Khatri

Children Stories

3.9  

Vaishno Khatri

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नियति

नियति

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बिट्टू बिट्टू, तुम्हारे पापा जी पेड़ के नीचे बैठे रो रहे हैं। पुरानी यादें उसके सामने नाचने लगीं। पापा जी की कोई औलाद नहीं थी ,उसे अनाथ आश्रम से ले आए। नाम रखा बिट्टू। वह और उनकी पत्नी बहुत प्यार करते थे ।तीन साल पँख लगा कर उड़ गए तभी भाई हो गया। उसके बाद उसका बुरा समय शुरू हो गया। उसे प्रताड़ित कर घर से निकाल दिया था। उसने विचारों को झटका दिया और दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा। देखा कि पापा जी रो रहे हैं पास में कुछ कपड़े बिखरे पड़े हैं। उसने उनके पैर स्पर्श किए तो पिता जी गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगे। 

वह बड़े प्यार से उनको घर ले आया छोटा सा मकान था। मैकेनिक था थोड़ी ही आमदनी थी जिसमें वह उसकी पत्नी और बच्ची गुजारा करता था। पिता जी बीमार थे डॉक्टर ने लगभग एक लाख का खर्चा बताया। उसने घर गिरवी रख दिया। पत्नी के जो थोड़े से जेवर और अपना स्कूटर भी बेच दिया। सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी।

एक दिन पिताजी ने वकील को मिलने के लिए बुलाया कुछ बातें की और भेज दिया।कुछ सालों के बाद पिता जी चल बसे। नियति को यही मंजूर था। सत्रह दिन बाद वकील आया और वसीयत पढ़ कर सुनाई जिसमें उनका अपना घर और फिक्स डिपॉजिट अपने सगे बेटे के नाम कर गए थे। वह तो खुश था पर दूसरे पापा जी को कोस रहे थे।



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