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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

“ जाने कहाँ गए वो दिन ”

“ जाने कहाँ गए वो दिन ”

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समय को बदलते हुए करीब से देखा है ! कल को देखा है, वर्तमान को देखता हूँ और कुछ भविष्य का भी अवलोकन करूंगा ! सकारात्मक परिवर्तन की आँधियों ने विश्व के स्वरूप को बदल दिया ! सारा परिवेश बदल गया ! हम विकास के पथ पर अग्रसर होने लगे ! नए -नए यंत्रों का आविष्कार ने एक नई क्रांति ला दी ! हरेक क्षेत्र में हम आवध गति से आगे अग्रसर होते जा रहे हैं ! हमारे स्कूल, कॉलेज और तकनीकी शिक्षण संस्थान का आमूल परिवर्तन होने में कई दशक लगे ! पढ़ने और पढ़ाने की रीति बदल गयी ! पर मैं नहीं भूला वह दिन और निकल पड़ा उसकी ही तलाश में !जहाँ मेरी प्रारम्भिक पढ़ाई हुई थी वह आज भी बरकरार है ! आजकल यह माध्यमिक विध्यालय डांगालपारा कहलाता है ! यह आज दो मंज़िला बन गया है ! लड़के- लड़कियों के बैठने, प्रसाधन, विजली, कंप्युटर और खेलने के लिए साधन महज़ूद हैं ! पर मैं तो उन दिनों को याद कर रहा हूँ जो, इन साधनों से हम महरूम थे !दुमका कहचरी के पास हटिया के बगल में नगरपालिका दुमका के बिल्कुल सटे तीन कच्चे दीवारों के रूम बने थे !

जमीन कच्ची थी ! लड़के -लड़कियाँ अपने साथ बोरियाँ लाती थीं और जमीन पर बिछा के बैठती थीं ! शिक्षक के लिए एक कुर्सी और एक छोटा टेबल होता था ! उन दिनों बिजली नहीं होती थी ! क्लास का एक लड़का या एक लड़की की ड्यूटी होती थी कि वह गुरु जी को पंखा झेले ! बैसे मेरा जन्म 23.दिसम्बर 1951 दुमका में ही हुआ था ! 1959 से 1963 तक मुझे पहली क्लास से पाँचवीं क्लास तक पढ़ना पड़ा ! हरेक लड़के -लड़कियों को बारी -बारी से अपने -अपने क्लास को सप्ताह में शनिवार को लिपाई करनी पड़ती थी ! अपर्याप्त संसाधनों के अभाव में हमलोगों को दूर गांधी मैदान जाना पड़ता था ! खेलने- कूदने के लिए ना साधन था ना जगह थी ! बस उस समय जो पढ़ाई जाती थी वो हृदय में घर कर जाती थी ! शिक्षक मारते भी थे तो प्यार भी करते थे !

हम शिक्षकों को झुक कर प्रणाम करते थे ! उन्हें हरेक शनिवार शनीचरा ( पैसे ) देने की प्रथा थी ! कोई छात्र यदि क्लास नहीं आता था तो उसी क्लास के कुछ छात्र उसके घर पहुँचकर उसे उठा लाते थे ! कोई बीमार हो जाता था तो उसकी सेवा में कुछ छात्र भेजे जाते थे ! लोगों में प्यार था और आत्मीयता ! आज स्कूल वही है जो मेरे काल में था पर उसी आत्मीयता की तलाश में हम आज तक कर रहे हैं “ जाने कहाँ गए वो दिन ”


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