जाना ना दूर कभी
जाना ना दूर कभी
सोनिया से शादी के खिलाफ़ होने की वजहों में एक वज़ह थी सोनिया का रोहन से उम्र में चार साल बड़ी होना। साथ ही सोनिया अपनी विधवा मां के साथ रहती थी जिनके पास अपनी बेटी की शादी में लुटाने के लिए बेहिसाब ना धन दौलत थे ना ही बढ़ चढ़कर दिखावा करने वाले रिश्तेदारों की भरमार थी। जयाजी के लिए जो थी सोनिया ही थी। चाहे कलेजे का टुकड़ा कहें या जीने का सहारा । सोनिया के लिए भी उसकी मां ही रोहन के आने से पहले पूरी दुनिया थीं।
रोहन और सोनिया की मुलाक़ात एक संगीत आयोजन में हुई थी। सोनिया एक उम्दा गीतकार थी और रोहन एक उभरता हुआ युवा संगीतकार था। जबसे रोहन ने सोनिया के लिखे गीतों को सुना था, वह उसका कायल हो गया था और प्रशंसक भी। वह सोनिया के लिखे गीतों को अपने धुनों से स्वरबद्ध करना चाहता था। इसी सिलसले में दोनों मिलने लगे और फिर एक-दूसरे के गुणों और स्वभाव से पहले प्रभावित फिर, आकर्षित होते चले गए।
सोनिया जानती थी रोहन उससे उम्र में लगभग चार साल छोटा है, इसलिए वह अपनी भावनाएं छुपाने की कोशिश करती थी। लेकिन लवों पर जो बात आकर रूक जाए उसे आंखें ही नहीं हाव-भाव और हया भी कह जाती है।
सोनिया की हिचकिचाहट रोहन ने महसूस कर लिया था और वह इससेे सोनिया को बाहर लाने के लिए उसे अपने साथ पूरी तरह सहज रखने का प्रयास करता था। बातों बातों में अपना प्यार भी जताता और शरारतों से सोनिया का दिल भी धड़काने की गुस्ताख़ी कर गुज़रता था। जज्बातों को कहां तक सोनिया रोक पाती जब रोहन हर पल उसके सामने रहने लगा था।
रोहन के सताइसवें जन्मदिन पर जब रोहन ने खुद आगे बढ़कर सोनिया का हाथ मांग लिया था जयाजी से उस दिन जहां सोनिया और जयाजी रोहन की जिन्दग़ी का हिस्सा बनकर खुदको भाग्यशाली समझने लगे वहीं रोहन के परिवार में इस बेमेल जोड़ी को लेकर तनाव और विरोध शुरू हो गया जो रोहन और सोनिया की शादी के बाद रिश्ते तोड़कर रोहन और सोनिया से ख़त्म हो गया जो आजतक जुड़ नहीं पाया।
ऑपरेशन थिएटर के बाहर जयाजी के साथ बैठे हुए रोहन को सोनिया के साथ गुजारा हुआ हर पल ,हर लम्हा याद आ रहा था और याद आ रहे थे सोनिया द्वारा लिखा हुआ एक गीत जो सोनिया ने अपने रोहन के लिए लिखा था।
वो गीत था..
पल-पल गुज़रती जिन्दग़ी में तुम लाए हो ठहराव
बेमक़सद थी, थी बोझिल-सी , थी खुदसे मैं अनजान
एक तुम्हारी मौजूदगी से भर गया मेरा खाली आसमान।
पल-पल गुज़रती जिन्दग़ी...
बेरंग हवाओं में भी, तूने रंग भर दिए
दूर थी इन वादियों से, तूने संग इनके कर दिए
डरती थी जिस अहसास से, अब वही दिल का सुकूं है
चाहे सुबह हो या शाम सबमें, तेरा ही रूप-रंग क्यूं है
बस बन तुम मेरा जहां।
पल-पल गुज़रती जिन्दग़ी....
चुलबुली ये बारिश की बूंदें, तुम जैसी लगती हैं
छूकर मुझे तेरी तरह ही शरारतें करती हैं
मचलती लहरों का खुमार अब मैं समझी हूं
किनारों पर जबसे हाथ थामे तेरे साथ चली हूं।
तुमने कराया मेरा इनसे पहचान।
पल-पल गुज़रती जिन्दग़ी.......।।
इस गीत के एक-एक शब्द सोनिया के दिल की बातों को बयां करते हुए रोहन के मन की गहराईयों में जाकर बस गए थे। वह एक क्षण के लिए भी अपनी सोनिया से जुदा होने का ख्याल नहीं आने देना चाहता था। जयाजी अपनी इस छोटी सी बसे बसाए संसार को खोने के डर को आंखों में आंसू बनकर भी नहीं आने देना चाहती थी इसलिए रोहन का मजबूत सहारा बनकर बैठी हुई थीं। मन ही मन यही प्रार्थना दोनों कर रहे थे की उनके जीने का सहारा ना टूट जाए वरना वो दोनों भी बिखर जाएंगे इस तरह कि, शायद फिर जुड़ ना पाएं।
रोहन रह-रहकर खुदको कोस रहा था सोनिया के साथ हुए हादसे के लिए। वह जयाजी से कह रहा था, अगर वो सोनिया को अपने परिवार वालों से मिलने से रोक लेता तो ये हादसा नहीं होता। सोनिया ने सोचा मेरे संगीत को सर्वश्रेष्ठ संगीत का पुरस्कार मिलने पर भी मेरे परिवार वाले नहीं आए लेकिन हमारे अपने संगीत स्टूडियो के उद्घाटन समारोह में सबकी मौजूदगी, सबका आशिर्वाद और साथ मुझे नए मुकाम हासिल करने में बेहतर साबित होगा। लेकिन उसका अपमान कर मेरे परिवार ने उसे इतना आहत कर दिया की वह आंसुओं का वेग रोक नहीं पाई और रोते हुए कार चलाती हुए वह गलत रोड़ पर कार मोड़ते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो गई। अगर, मेरी सोनिया को आज कुछ भी हो गया तो मैं भूल जाऊंगा की वो मेरा परिवार है और मैं उनका कोई हिस्सा था कभी।
तभी, आपरेशन थिएटर की लाल बत्ती बन्द होती है और जयाजी खड़ी होती हैं रोहन का बाजू पकड़े हुए।
डॉक्टर के पास दोनों धड़कते कलेजे पर काबू करते हुए जाते हैं। और बहुत उम्मीद से डॉक्टर को देखते हैं दोनों।
डॉक्टर ने जरा मायूस होते हुए कहा की, सर पर गहरी चोट लगने के कारण वो कौमा में चली गई हैं। लेकिन खतरे से काफ़ी हद तक बाहर है सोनिया।
खबर सुकून देने वाली नहीं थी लेकिन रोने बिलखने या बिखरने वाली भी नहीं थी। उम्मीद थी सोनिया जल्द ही खतरे से पूरी तरह बाहर भी होगी और हंसती खिलखिलाती हुई उनके साथ भी होगी। जी जान से जयाजी अपनी बेटी की और रोहन अपनी जीवनसाथी का ख्याल रखेगें । दोनों के प्यार की खातिर सोनिया को ठीक होकर आना ही पड़ेगा। आना ही पड़ेगा।
दो साल सात महीने बाद सोनिया कौमा से बाहर आई। आंखें खोली तो सामने जयाजी और रोहन को रोते हुए पाया। सोनिया के आंसू भी झलक पड़े। काफ़ी देर तक तीनों एक-दूसरे को देखकर बस रोते रहे।
सोनिया को पता चला वो दो साल साल महीने तक कौमा में थी। इस दौरान उसकी मां और उसके पति रोहन पर एक-एक दिन कितना मुश्किल गुज़रा होगा वह अच्छी तरह समझती है।
मां के कमरे से बाहर जाने पर सोनिया अपना हाथ थामे पास बैठे रोहन से पूछती है, अगर मैं कौमा से बाहर कभी नहीं आती तो.... ?
रोहन मुस्कुराते हुए सोनिया के माथे को चूमकर कहता है मैं इंतज़ार करता तुम्हारा आज भी, कल भी और हमेशा हमेशा करता सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार।