Archana Tiwary

Inspirational

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Archana Tiwary

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जाको राखे साईंया मार सके न कोय

जाको राखे साईंया मार सके न कोय

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 मीता, गीता कहां हो तुम लोग ?

घर में आते ही झरिया ने आवाज लगाई। बापू की आवाज सुन दोनों दौड़ कर गले से लिपट एक साथ बोल पड़ी -आज बहुत देर कर दी आपने आने में। अंधेरा होते ही हमें डर लगने लगता है ।झरिया ने कहा -"अंधेरे में डरने वाली बात क्या है"? अगर अंधेरे से डरोगी तो दुनिया वालों से सामना कैसे करोगी और अगर बहुत डर लगे तो राधा मौसी के पास चले जाना। झरिया की जान अपनी दोनों बेटियों में बसती थी ।पत्नी को गुजरे पाँच साल हो गए थे ।दो फूल से जुड़वा बेटियों को उसके हाथ में सौंप वह इस दुनिया से विदा हो गई थी। अब तो झरिया को अपने बच्चे के लिए मां और पिता दोनों की जिम्मेदारी निभानी थी। वह मजदूरी का काम करता था। इसकी वजह से पूरे दिन घर से बाहर रहना पड़ता था। सुबह जल्दी उठकर वह बच्चों के लिए खाना बनाकर काम पर चला जाता। दिनभर दोनों राधा मौसी के पास ही रहती थी।

आसपास के बच्चों के मां को देखकर दोनों कभी कभी इतनी उदास हो जाती कि बापू के आते हैं पूछ बैठती-" बापू मेरी मां कहां है, वह क्यों हमें अकेला छोड़ कर चली गई"? झरिया रुआंसा हो कहता- तुम्हारी मां बहुत अच्छी थी इसलिए भगवान ने उसे अपने पास बुला लिया और मैं क्या तुम्हारी मां से कम हूं ,तुम लोगों का ख्याल नहीं रखता क्या? दोनों एक दूसरे को देख आगे कुछ न कह पाती पर मां तो माँ होती है दोनों उनकी कमी महसूस करती थी ।जब झरिया घर पर न होता तो दोनों घर की सफाई करती और छोटे-मोटे काम करती।राधा मौसी भी उनदोनो बिन माँ की बेटियों को माँ जैसा ही प्यार करती थी ।घर के काम सिखाती।झरिया को हमेशा मजदूरी न मिलती तो कभी-कभी खाने की व्यवस्था करने में बड़ी कठिनाई होती। एक दिन गांव के मुरारी से पता चला कि गांव में एक ऐसा स्कूल है जहां बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खाना भी दिया जाता है बस ये सुनते ही झरिया खुश हो गया क्योंकि वह अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाना तो चाहता ही था और सबसे बड़ी बात यह थी कि वहां खाना भी मिलने वाला था। वह चाहता था उसकी बेटी पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए उसकी तरह उसे मजदूरी न करनी पड़े। दूसरे दिन गीता और नीता को साथ लेकर वह स्कूल पहुंच गया। वहां उनका दाखिला हो गया ।अब झरिया के चिंता दूर हो गई ।वह गीता को कहता -पढ़ लिख कर तुम भी अपनी मैडम की तरह बन मैडम बनना और छोटे बच्चों को पढ़ाना। उसने मन ही मन न जाने कितने ख्वाब देखने शुरू कर दिए थे ।एक दिन अचानक दोपहर में हरिया भागते हुए आया और सूचना दी आज स्कूल के खाने में शायद जहर था इसलिए कई बच्चे बीमार होकर अस्पताल में भर्ती है। उनमें से दो बच्चों की मृत्यु भी हो गई है। खबर सुनते ही झरिया के हाथ पैर सुन्न हो गए और दिमाग तो काम करना ही बंद कर दिया। गीता और गीता का ख्याल आया और वह काम ही छोड़ भागते हुए अस्पताल पहुंचा।

अस्पताल के बाहर लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाज और रोने की आवाज आ रही थी। उसकी दिल की धड़कन बढ़ने लगी। उसने अंदर जाकर इधर उधर नजर दौड़ाई और नर्स से बच्चों के बारे में पूछा। नर्स ने इशारे से एक कमरा दिखा दिया जहां स्कूल के बच्चों का इलाज चल रहा था। उसने बच्चों के बीच जाकर गीता मिता को ढूंढना शुरू किया। दोनों के न मिलने पर रोता हुआ कमरे से बाहर आ ही रहा था कि गीता की आवाज सुनाई दी ।पलट कर देखा तो दोनों उसी की तरफ आ रही थी। दोनों को देखते हैं झरिया दौड़ कर उन्हें गले से लगा चूमने लगा। मन में लगातार चल रहे नकारात्मक विचार को विराम लगा। आंख से आंसू टपकने लगे ।उसने गीता से पूछा -"तुम लोगों ने आज खाना नहीं खाया क्या" ? हाँ, बाबू आज हम दोनों ने सोचा कि आप रात में देर से आते हो और फिर खाना बनाते हो बहुत थक जाते हो इसलिए आपके लिए हम अपने हिस्से का खाना रख लिए थे ।इतना कहते हुए नीता ने बस्ते से खाना निकाला ।खाना को देखते हैं झरिया उसे ले दूर फेंक दिया । अपनी दोनों बेटियों को गले लगा कर ईश्वर को याद करते हुए उसके हाथ अपने आप जुड़ गए भगवान को धन्यवाद करते हुए बोल पड़ा- जाको राखे साइयां मार सके न कोई ।


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