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Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

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Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

इसीलिए मैं सिन्दूर नहीं लगाती day-24 (laut aana musafir)

इसीलिए मैं सिन्दूर नहीं लगाती day-24 (laut aana musafir)

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लावण्या एक आत्मनिर्भर सुलझे हुए विचारों की लड़की है। वह अपने दिल और दिमाग का भरपूर इस्तेमाल करती रही है। जब बातें उसे समझ नहीं आती उनका वह लकीर की फ़कीर बनकर अनुसरण भी नहीं करती है । किसी भी विचार ,सिद्धांत आदि को अपनाने से पहले वह, उसे तर्क की कसौटी पर परखती है और फिर ही अपनाती है । 

लावण्या की अभी एक महीने पहले ही मोक्ष से शादी हुई है। लावण्या और मोक्ष लम्बे अरसे से एक -दूसरे को जानते थे। दोनों के घरवालों की रजामंदी से दोनों की शादी हुई ।

"लावण्या बेटा ,यहाँ आओ और एक बात तो सुनो जरा।" लावण्या के ससुर जी ने एक दिन उससे कहा।

लावण्या ने सोचा कुछ महत्वपूर्ण बात होगी ,इसलिए पापा उसे बुला रहे हैं। वह पापा के पास आकर बैठ गयी।

"तुम्हें पता है सिन्दूर लगाने से पति की उम्र लम्बी होती है। तुम सिन्दूर लगाया करो। "ससुरजी ने कहा।

लावण्या अपने ससुर जी से कोई बहस नहीं करना चाहती थी, क्यूंकि वह अच्छे से जानती थी कि , उससे कोई फ़ायदा नहीं होगा ।वैसे लावण्या ने अपने ससुरजी से ऐसे किसी निर्देश मिलने की कभी कोई कल्पना नहीं की थी। इससे पहले उसकी सास भी उसे २-४ बार सिन्दूर लगाने के लिए कह चुकी थी।

इसीलिए उसने बात को वहीं समाप्त करने के लिए कहा ,"ठीक है पापा। " और वह वहां से उठकर चली गयी।

लावण्या सिन्दूर नहीं लगाती थी क्यूंकि उसे मोक्ष यानि अपने पति की लम्बी उम्र के लिए सिन्दूर लगाने की जरूरत महसूस नहीं होती थी। उसका मानना था कि अगर पति -पत्नी दोनों एक दूसरे के दोस्त बनकर रहेंगे ,एक दूसरे को सहयोग करेंगे , एक दूसरे का और एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करेंगे तो दोनों ही लम्बी उम्र पाएंगे।

फिर मोक्ष भी तो लावण्या की लम्बी उम्र के लिए सिन्दूर ,बिंदी आदि कुछ नहीं लगाता था;फिर लावण्या ही क्यों लगाए लावण्या को सिन्दूर लगाने या न लगाने के मुद्दे पर बहस करना भी अच्छा नहीं लगता था। लेकिन सिन्दूर न लगाने के कारण किसी भी महिला को जज करना भी उसे अच्छा नहीं लगता था । उसे सिन्दूर लगाने वाली महिलाएं कहीं से भी ओल्ड फाशिवेद नहीं लगती थी। लेकिन बस सिन्दूर लगाने क तर्क उसके गले नहीं उतरता था । 

वह कभी -कभी हेयर स्टाइल और अपनी ड्रेस के अकॉर्डिंग सुंदर दिखने के लिए सिन्दूर लगा लेती थी, लेकिन पति की लम्बी उम्र के लिए नहीं। क्यूंकि जिस बात पर उसे विश्वास नहीं ,वह उस बात का अनुसरण करने में यकीन नहीं रखती थी।

लावण्या की स्वयं की बुआ ने भी एक बार उसे टोक दिया ,"लावण्या , तू सिन्दूर ,बिंदी ,बिछुए कुछ क्यों नहीं पहनती ?बिलकुल शादीशुदा नहीं लगती। "

लेकिन अपने में ही मस्त रहने वाली लावण्या ने बुआ के ताने को अपनी तारीफ के जैसे लिया और बुआ को बोला,"थैंक यू बुआ। "बुआ का मुँह खुला के खुला रह गया।

लावण्या कई बार सोचती थी कि, "मैं तो किसी को नहीं कहती कि आप सिन्दूर मत लगाओ या बिछुए मत पहनो। सबकी अपनी -अपनी पसंद है। जिसको अच्छा लगता है, वह लगाए और पहने। जिसे नहीं लगाना वह न लगाए . हम उसे क्यों बार-बार टोकते हैं ? हम लड़कियां क्या इतनी कमजोर हैं कि हमारी हर छोटी से छोटी चीज़ को लेकर हमें टोक दिया जाए ?हमें जज किया जाए ?हमें एहसास दिलाया जाए कि हम कुछ गलत कर रहे हैं."

लावण्या के ऑफिस में भी सिन्दूर और बिंदी को लेकर एक जूनियर तक ने उसे बोल दिया था कि," मैडम, आप शादीशुदा जैसे दिखते नहीं हो। सिन्दूर नहीं लगाते हो न। "

तब लावण्या सिर्फ उसे इतना ही कह पायी थी कि ,"यह मेरा निजी मामला है ,आप इस बारे में बात न ही करें ."

लावण्या एक महिला थी, शायद इसलिए ही जूनियर की अपनी बॉस से इस तरीके का सवाल पूछने की हिम्मत हो गयी थी । 

लावण्या के ऑफिस में ही सुमनजी भी काम करती थी । सुमनजी हमेशा अपनी मांग सिन्दूर से भरी हुई रखती थी चेहरे पर बड़ी सी लाल बिंदी लगाती थी । लावण्या ने कभी उन्हें सिन्दूर और बिंदी के बिना नहीं देखा था । तीज, गणगौर, करवा चौथ हो या कोई और तैयार हो सुमनजी के हाथ बिना मेहँदी के नहीं रहते थे । 

सुमनजी भी लावण्या को जब -तब सुहाग की रक्षा और सुहाग चिन्हों को लेकर टोकती रहती थी ।अपने से उम्र में बड़ी सुमनजी की बात का लावण्या ज़रा भी बुरा नहीं मानती थी और उनकी बात को हँसकर टाल जाती थी । 

लावण्या ने सिन्दूर न लगाने को लेकर लोगों की बातें कई -कई बार सुनी। किसी ने ताना मारा ,किसी ने शिकायत की ,किसी ने पीठ पीछे उसे नारीवादी, घर तोड़ने वाली औरत और भी पता नहीं क्या -क्या कहा ?लेकिन धीरे -धीरे सब उसे बिना सिन्दूर और बिंदी के देखने के आदी हो गए और सबने उसे सिन्दूर न लगाने पर कुछ भी कहना छोड़ दिया।

इसी बीच सुमनजी के पति की मृत्यु हो गयी । एक महीने तक शोक मनाने के बाद, जब सुमनजी ऑफिस आयी तो पहचानी नहीं जा रह थी ।उनक अस्तित्व की पहचान बन चुकी लम्बी सी सिन्दूर की रेखा गायब थी । बड़ी सी लाल बिंदी की जगह ,उन्होंने छोटी सी काली बिन्दी लगा रखी थी । 

"सुमनजी ,आप ऐसे अच्छे नहीं लगते । आप पहले जैसे ही रहा करो।" न चाहते हुए भी लावण्या ने सुमनजी के हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा । 

"अब मैं इस लायक नहीं रही । ",सुमनजी की कहते -कहते रुलाई फूट गयी । 

"आप पितृसत्ता की खोखली दलीलों के चक्कर में मत पड़ो । अगर आपको सिन्दूर और बिंदी लगाना पसंद है तो आप लगाओ । मैं आपक साथ हूँ । "लावण्या ने कहा और सुमनजी को गले से लगा लिया ।

"कैसी घटिया सोच है ? शायद यही पितृसत्ता है कि पहले विवाह होते ही स्त्री को सुहाग चिन्ह लगाने के लिए कहो और जब उसे इन सबकी आदत हो जाए तब इ दिन कह दो कि तुम्हें अब से यह सब नहीं लगाना । अच्छा ही है कि मैं सिन्दूर नहीं लगाती।" सुमनजी को सांत्वना देने के बाद, अपनी डेस्क पर आकर बैठी हुई लावण्या ने अपने आप से कहा ।  

लावण्या अब समझ गयी थी कि अपने विचार के साथ मजबूती के साथ खड़े रहो तो लोग धीरे -धीरे ही सही आपके विचार को माने भले ही नहीं ,लेकिन उसे महत्व जरूर देने लग जाते हैं। आप जो भी परिवर्तन दुनिया में देखना चाहते हैं, शुरुआत खुद से करनी होती हैसिन्दूर न लगाना सिर्फ इस बात का प्रतीक है कि ,"लावण्या और मोक्ष एक दूसरे के जीवन साथी हैं, इसमें कोई एक स्वामी और दूसरा दासी नहीं हैदोनों साझेदार हैं सिन्दूर लगाने या न लगाने से उनके आपसी प्यार , विश्वास और सम्मान पर किसी प्रकार का कोई फर्क नहीं पड़ताउनका रिश्ता सिन्दूर का मोहताज नहीं है "


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