Kameshwari Karri

Romance Inspirational

3.3  

Kameshwari Karri

Romance Inspirational

इस प्यार को क्या नाम दूँ?

इस प्यार को क्या नाम दूँ?

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मैं और निशा रायपुर में एक ही स्कूल में नवीं कक्षा में पढ़ते थे। उसके पिता प्रभाकर रेलवे में काम करते थे। इसलिए वे लोग रेलवे कॉलोनी में रहते थे और मेरे पापा प्रसाद एफ . सी . आई में काम करते थे फिर भी हम लोग रेलवे कॉलोनी में ही रहते थे। आप लोगों को यह सुनकर आश्चर्य होगा कि उस समय रेलवे के कर्मचारी उन्हें मिले हुए रेलवे क्वार्टर को किराए पर देकर खुद अलग एक छोटे से घर में किराये पर रह जाते थे। दूसरी जगह काम करने वाले भी किराया ज़्यादा होने पर भी इनके पास किराएदारों के समान रहने के लिए तैयार रहते थे क्योंकि कॉलोनी होने के कारण सारी सुख सुविधाएँ होती थी। इसलिए हम लोग भी रेलवे कॉलोनी में ही किराये पर रहते थे। मैं और निशा एक साथ एक ही रिक्शे में बैठकर स्कूल जाते थे। निशा के घर उसकी तीन बहनें और दो भाई थे। उसकी सबसे छोटी बहन एक साल की ही थी। उसके पिता रेलवे में बहुत बड़े ओहदे पर थे। इसीलिए उनके ऑफ़िसर्स क्वार्टर थे।निशा के दोनों भाई पढ़ाई पर कम और खेल कूद पर ज़्यादा ध्यान देते थे। प्रभाकर जी ने देखा कि उनके साथ काम करने वाला विनीत जो नया -नया ज्वाइन हुआ था बहुत होशियार था और अपना काम जल्दी से बिना ग़लतियों के कर लेता था। एक दिन प्रभाकर ने उसे अपने केबिन में बुलाकर उसके बारे में पूछताछ किया। विनीत ने बताया कि घर पर माँ रहती है तीन बहनें और एक बड़े भाई के सिवा कोई नहीं है तब प्रभाकर उससे कहते हैं कि मेरा एक काम करोगे। उसने कहा आज्ञा दीजिए सर मैं कर दूँगा। प्रभाकर ने कहा कुछ नहीं मेरे दो बेटे हैं जो पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते उन्हें ट्यूशन पढ़ा दोगे क्या ? विनीत ने कहा ठीक है सर पढ़ा दूँगा। बड़ा बेटा रमणा सातवीं में था और छोटा राजीव छठी में था। दूसरे दिन विनीत प्रभाकर के घर पहुँचा। प्रभाकर ने उसे अंदर बुलाया और अपने बच्चों से परिचय कराया। बड़ी बेटी रचना जिसने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और रेलवे के अस्पताल में कंपाउंडर का काम करती थी। दूसरी आशा थी जो घर पर ही रह रही थी। निशा नवीं में है उसे देखते ही विनीत की नज़र उससे नहीं हटी। वह उसे देखते ही रह गया। उसका मासूम सा चेहरा जब हँस रही थी तो एक दाँत दूसरे दाँत पर चढ़ा हुआ सुंदर दिख रहा था। प्रभाकर सर ने और किस किस से परिचय कराया उसका ध्यान ही न रहा ..बस उसकी नज़रें बार -बार निशा को ही देखना चाह रहीं थीं। अंत में प्रभाकर ने बताया यह दोनों ही लड़के हैं जिन्हें तुम्हें पढाना है रमणा और राजीव। उनकी तरफ़ मुड़कर कहा ये आप लोगों के नए ट्यूशन सर हैं। रोज शाम को आकर पढ़ा दिया करेंगे। पढ़ाई पर ध्यान दो। आज से ही शुरू हो जाओ ऑल द बेस्ट कहकर वहाँ से चले गए। 

पहली ही नज़र में विनीत को निशा भा गई थी। अब तो ऑफिस ख़त्म होते ही विनीत बिना नागा किए रोज उनके घर पहुँच जाते थे। निशा काम करते हुए इधर-उधर घूमती थी। विनीत की नज़रें भी उसके साथ ही पूरे घर में घूमती थी। विनीत बहुत अच्छा पढ़ाता था। जिससे प्रभाकर के दोनों बच्चे अच्छे नंबरों से पास हो गए। प्रभाकर को भी विनीत पसंद आने लगा। एक दिन निशा ने पिता से कहा उसे विनीत से गणित का एक सवाल पूछना है पूछ लूँ। प्रभाकर ने कहा क्यों नहीं तुम भी थोडी देर बैठ कर गणित के कठिन सवाल पूछ लिया करो। निशा भी भाइयों के साथ ही विनीत से गणित सीखने लगी। दोनों में दूरियाँ कम होने लगी। निशा के घर के सामने एक मैदान था। मैदान के उस पार विनीत का घर था। दोनों एक दूसरे से इशारों से बात करते थे। निशा के भी नवीं में अच्छे नंबर आए। भाइयों को भी अच्छे नंबर मिले। ज़िंदगी आराम से गुजर रही थी तभी एक दिन माँ ने इन दोनों को इशारों से बात करते हुए देख लिया। उन्होंने ने सोचा शायद मेरा वहम है छोड़ दिया। रात को घर में सब सोए हुए थे। माँ पानी पीने के लिए उठी तो उन्होंने देखा निशा का बिस्तर ख़ाली था। वे बेचैन हो हो गई और पूरे घर में ढूँढने लगीं !! बाहर के दरवाज़े को देखा तो वह अंदर से बंद नहीं था। उन्होंने धीरे-धीरे दरवाज़ा खोला तो ऊपर सीढ़ियों पर किसी के धीरे-धीरे बोलने की आवाज़ें आ रही थी। उन्होंने झांककर देखा तो निशा और विनीत बैठकर एक दूसरे से बातें कर रहे थे। माँ को देखते ही निशा भागकर घर के अंदर आ गई। माँ ने उसे दो चपत भी लगा दिया और कहा पिताजी को पता चला तो तेरी टाँगें तोड़ देंगे सँभाल अपने आपको अगली बार मैंने तुझे उसके साथ देखा तो पिताजी को बता दूँगी पढ़ाई भी छुड़वाकर घर में बिठा देंगे संभल जा कहते हुए सोने चली गई। 

अब निशा और विनीत को एक-दूसरे से मिलने में दिक़्क़तें आने लगीं। हम दोनों और मेरा भाई जो मेरे से छोटा था एक ही रिक्शे में स्कूल जाते थे। विनीत रिक्शे के पीछे -पीछे साइकिल पर आता था। कॉलोनी ख़त्म होते तक दोनों एक-दूसरे को देखते रहते थे। मेरे भाई ने मेरे घर में पिता जी को विनीत के बारे में बताया। पिताजी ने विनीत को बुलाकर डाँटा और कहा तुम्हारा ऐसे लड़कियों के पीछे जाना मुझे पसंद नहीं है क्योंकि मेरी बेटी भी उसी रिक्शे से स्कूल जाती है पढ़े लिखे हो नौकरी करते हो अपने मान सम्मान का भी ध्यान रखना चाहिए। मेरे घर में निशा से बात करने से मना कर दिया गया। मैं और निशा स्कूल में बात कर लेते थे। एक दिन निशा के पिता को निशा और विनीत के बारे में पता चल गया। विनीत का उनके घर आना बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना सब बंद हो गया। किसी तरह हम लोग ग्यारहवीं में पहुँच गए। जैसे ही हमने बारहवीं पास किया हम लोग रेलवे कॉलोनी से बाहर चले गए थे। मैं कॉलेज में पढ़ने लगी निशा की कुछ ख़बर नहीं मिली। 

सालों बाद मेरी भी शादी हो गई और मैं विशाखापट्टनम आ गई। मेरे दो बच्चे भी हो गए। मैंने निशा के बारे में खोज ख़बर करने की कोशिश की। अपने भाइयों से भी पूछा। वे भी व्यस्त हो गए थे उन्हें भी कुछ नहीं मालूम था। मेरे पति का तबादला हैदराबाद हो गया। मैंने वहीं अपना बी एड करने का फ़ैसला किया और कॉलेज में एडमिशन लिया। पहले ही दिन जब क्लास में मैंने कदम रखा पीछे से किसी ने मेरी आँखें बंद किया। सब दूसरे साथी देखने लगे कि माजरा क्या है ? उसने मेरी आँखों से हाथ हटाया और मेरे सामने खड़ी हो गई ......निशा थी मेरी तो आँखें खुली की खुली रह गई। हम दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और एकटक देखने लगीं दोनों में कोई बदलाव नहीं आया था। क्लास में मेम आ गई और हमें पढ़ाने लगीं। जैसे ही क्लासेस ख़त्म हुए हम दोनों बाहर की तरफ़ भागे। हमें बैठकर बहुत सारी बातें करनी थी। मैंने कहा डिग्री के बाद मेरी शादी हो गई। मेरा एक बेटा और एक बेटी है। पति बैंक में काम करते हैं। अब तुम अपनी कहानी सुनाओ तुम्हारी शादी कैसे हुई विनीत ही तुम्हारा पति है न। माता-पिता की मंज़ूरी से हुई या भागकर ? कैसे हुई बता ना !!!!

निशा ने कहा रुक न !! बताती हूँ। इतनी उतावली क्यों हो रही है सुन जैसे ही हमारी बारहवीं की परीक्षा ख़त्म हुई तुम लोग तो वहाँ से चले गए थे। मैंने तो सोचा था बस विनीत से शादी करके घर बसा लूँगी पर मुझे भी मालूम है कि यह उतना आसान नहीं है। हम दोनों का मिलना भी मुश्किल हो गया था। मेरे ऊपर मेरे भाई बहनों का ही पहरा था। उसी समय मुझे पता चला कि विनीत ने आत्म हत्या करने की कोशिश की है। उसके ऑफिस के एक दोस्त ने जो मेरे पिता के नीचे काम करता था बताया ! मैंने बड़ी मुश्किल से जल्दी से एक नोट लिखा और उस व्यक्ति के हाथ में पकड़ा दिया कि विनीत को दे देना। मैंने विनीत के लिए लिखा था कि कोई भी ऐसे कदम नहीं उठाना क्योंकि अगर मेरी शादी हुई तो तुमसे ही और किसी से नहीं। बस उसे हिम्मत मिली और उसने अपने दोस्तों की सहायता से मंदिर में शादी का इंतज़ाम करा लिया। पिता के नीचे काम करने वाले उसी दोस्त की सहायता से एक दिन मैं घर से भाग गई। हम दोनों ने शादी कर लिया। दूसरे दिन पिताजी को पता चला। उन्होंने पुलिस स्टेशन में विनीत के ख़िलाफ़ बेटी को भगाकर ले जाने की कंप्लेन कराई। पुलिस ने जब तहक़ीक़ात किया तो उन्हें पता चला कि दोनों ही मेजर हैं और अपनी मर्ज़ी से उन्होंने शादी की है। इसलिए उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। प्रभाकर को भी कह दिया गया कि उन्हें छोड़ दें। प्रभाकर ने भी घर में सबसे कह दिया कि वह मेरे लिए मर गई है इसलिए आज से उसका नाम भी इस घर में नहीं लेना। मैं विनीत के घर पहुँच गई। वहाँ उनके घर वालों ने खुले दिल से मेरी आवभगत की। बस यही हुआ था।पिताजी ने कई सालों तक मुझसे बात नहीं की पर जब मेरा बेटा हुआ वे उसे देखने आ ही गए। माता-पिता अपने बच्चों पर ज़्यादा दिन ग़ुस्से से नहीं रह सकते हैं न। अब मैं खुश हूँ एक बेटा और एक बेटी हैं। स्कूल की नौकरी प्यार करने वाला पति और आराम की ज़िंदगी बस मुझे पीछे की घटी घटनाओं को याद ही नहीं करना था। 

मैंने कहा सच ही कहा तुमने बीते हुए लम्हों को याद करके आज की ख़ुशियों को कोई मूर्ख ही ख़राब सकता है। मुझे बहुत ख़ुशी हुई निशा तुम्हें देख कर कहते हुए हम दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया। जैसे ही बी.एड. हुआ वह वापस रायपुर चली गई। आज भी फ़ोन पर घंटों बातें करते हैं। अब दोनों को बहू और दामाद आ गए हैं पोता नाती भी हो गए हैं। उन्हीं की बातों से हमारा पेट भर जाता है। वह बैंगलोर में बेटे के साथ रहती है और मैं अपने बेटे के साथ हैदराबाद में रहती हूँ। कभी-कभी सोचती हूँ इस प्यार को क्या नाम दूँ ? 



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