इस जिंदगी में मुझें
इस जिंदगी में मुझें
इस जिंदगी में मुझें बहुत कुछ सीखने को मिला है,
अपने बचपन से ही मुझें अपने जीवन पर पूरा भरोसा है,
जोड़ना चाहते है वह लोग आज हमें अपनों से
जिसने कभी रिश्तें बनाये थे, पर निभाना नहीं जानते थे।
आज वह लोग भी अपनी भावनाओं को रखकर
हमारे साथ अपने सुझाव देते रहते हैं।
निश्चित रूप से आज वह भी अपनी काल्पनिक दृष्टि से हमें देखतें है।
निःशब्द निःसंदेह आज जो भी है, अपनी जीवन से परे कुछ नहीं।
यूँ तो वक़्त हम सबके पास बहुत होता है, औऱ
जिंदगी हम सबके पास होकर भी नहीं होती है।
पल-पल, हर पल, हर पहर पर पहरेदार मिलेंगे तुम्हें भी
जब तक कि तुम अपने जीवन को ख़ुद-ख़ुद से बदलने की चाह रखों।
आसान नहीं है कठिन रास्तों पर चलना।
मंज़िलें नहीं हाथों में किसकी पार करना।
मुश्किलें बहुत आती जाती भरोसा रखना।
आसान नहीं है मुश्किलों को पार करना।
वक़्त कब किसी का सही होता है,
जब वक़्त वक़्त का कभी होगा नहीं।
यूँ तो महफ़िलों से होकर सजी महफिल होगी।
जीवन की कीमत और मेहनत
पूरी लग्न से करनी और समझनी होगी।
कब किसी को कोई किनारा मिलता है,
जहाँ नाविक जब दरिया पार कराता है,
कश्ती पर मुसाफ़िर जब सवार होता है,
किनारे पे नाविक मुसाफ़िर पहुंचाता है।
यूँ तो हर बार-बार-बार वही होता है,
जब कोई अपना भी अपना होकर पराया लगने लगता है।
रिश्तों से उलझी रिश्तों कि रिश्तेदारों को
कभी कोई फ़िक्र नहीं होती है,
जब कोई रिश्तें ही रिश्तेदारों के काम आते नहीं।
रिश्तें बनाना यूँ तो बहुत आसान होता है,
पर उन रिश्तों को समझना और निभाना बहुत मुश्किल होता है।
जब सही वक़्त हो तब,
रिश्तें भी साथ निभाते है,
जब रिश्तों पर भरोसा हो
तो रिश्तें भी निभातें है।
परवाह किये बिना कभी किसी पर कोई भरोसा नहीं होता,
जब बेमतलबी रिश्तें अपनों से जिसने बनाये थे।
पर उन रिश्तों को निभाना नहीं जानते थे।
तोड़ देते है वह लोग बेमतलबी के रिश्तें,
छोड़ देते है वह लोग बेख़बर होकर रिश्तें।
नहीं जानते निभाना वह जब फ़िज़ूल हों,
बिन मतलब सबसे जब तोड़ देते रिश्तें।
ज़िक्र करना क्या अब जब किनारा पार नाविक कराता हो।
कभी किसी नाव में भी छेद किनारे से पहले ही हों जाता।
जब दरिया पार कश्ती लेकर नाविक करता किनारा पार हो।
तब कश्ती भी छोड़ देती किनारा साहिल को पहुंचाना हो।
उलझनों से बंधे होते हैं रिश्ते, जो रिश्तों से अधिक ओझल होते हैं,
किनारों पर साहिल भी पहुंचने से पहले सोचता होगा,
क्या वो आज एक किनारे से दूसरे किनारे पर पहुंच पायेगा
"हां" शायद ही पहुंच पायेगा उस किनारे गर नाविक करा दें यह दरिया पार जब।
उलझनें रिश्तों की कैसे सुलझाओगे,
जब रिश्तें अपने रिश्तेदारों को सही निभाना आता नही।
तोड़ देते है, वो बेमतलबी का रिश्ता जब अपना होकर भी
बेमतलबी का बेफ़िक्र जिस कदर हो।
परहेज़ नहीं होती कभी किसी को रिश्तों की कोई,
अपनों से जिसने कभी कोई रिश्तें बनाये थे, पर निभाना नहीं जानते थे।
