इंसानी फरिश्ते
इंसानी फरिश्ते
"हे ! भगवान इतने दिनों बाद आज दुकान खोली है, इस कोरोना की वजह से कितने दिन दुकान बंद थी, पिछले तीन महीनों से कुछ भी नहीं कमाया है, .......हे ! भगवान थोड़ी दया दिखाना" ... रामदीन पूजा करते हुए भगवान को बोल रहा था।
कोरोना वायरस की वजह से उसकी दुकान पिछले तीन महीने से बंद थी, उसकी गली के अंदर छोटी सी मिठाई की दुकान थी।
उसके परिवार में कुल छः लोग थे, वो और उसकी पत्नी, दो लड़के और दो लड़कियां, बच्चे सारे छोटे थे इसलिए वो अकेला ही घर की सारी जिम्मेदारी उठा रहा था बच्चे अभी स्कूल में जाते थे।
हम मध्यम वर्ग की यही समस्या है कि ना हमें गरीबों की तरह सरकार से कोई सहायता मिलती है और ना ही अमीरों की तरह बाप - दादा की संपत्ति जिससे पेट भर सके।
इतने दिनों बाद उसने दुकान खोली थी लेकिन उसकी नमकीन और मिठाई नहीं बिक रही थी, कोरोना की डर से लोग अब दुकान में कम आते, पिछले तीन महीनों से कोई कमाई ना होने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति खराब होने लगी थी।
वो बैठा - बैठा सोच रहा था ... " हे ! भगवान क्या करूँ, महीनों से दुकान बंद थी, अब खुली है फिर भी लोग डर के मारे नहीं आ रहे है ...... इतनी साफ सफाई करता हूं, सारे क़ानूनी नियम मानता हूं, ....पता नहीं ये बुरा वक़्त कब निकलेगा "
तभी.... "अरे ! सुनिए भाई साहब " एक आदमी ने रामदीन से कहा "जी कहिए " रामदीन बोला।
"ये लीजिए 1 लाख रुपए " उस आदमी ने कहा।
" माफ़ कीजिए मैंने आपको पहचाना नहीं और ये पैसे " रामदीन बोलते - बोलते चुप हो गया।
"अरे भाई साहब लगता है, ...आप भूल गए, 8 महीने पहले मेरी बेटी की शादी थी ....उसमें आपने ही तो खाना बनाया था ....क्या खाना बनाया था आपने, ...सभी लोगों ने आपके खाने की बहुत तारीफ की थी, आप को याद हो शायद... मैं 10 महीने पहले आया था ....अपनी बेटी की शादी के लिए खाना बनाने का ऑर्डर देने..... तब पैसों की कुछ कमी थी, तो एडवांस नहीं दे पाया तब आपने कहा था कोई बात नहीं जब पैसे आ जाए तब दे देना, मेरी भी तो 2 बेटियां हैं "
"मेरी बेटी की शादी के बाद में कुछ दिन उसके ससुराल गया था किसी काम से और फिर ये लॉकडाउन हो गया .....अब जा के लॉकडाउन खुला है तो आपको आपकी पेमेंट देने आया था " उस आदमी ने रामदीन को याद दिलाते हुए कहा।
"बहुत -बहुत धन्यवाद, मैं तो भूल ही गया था पर आपको याद रहा इतना ही काफी है " रामदीन उस आदमी को धन्यवाद करते हुए बोला।
"कैसी बात करते है ......रामदीन जी ....अभी तो मेरे बेटे की शादी बाकी है, उसमें भी आपको ही खाना बनाना है" ऐसा कहकर वो पैसे देकर मुस्कुराता हुआ चला गया।
रामदीन सोचने लगा "मैं तो भूल ही गया था.... क्यूकी उसने कोई एडवांस नहीं दिया तो खाते में लिखा ही नहीं था ....
पर आदमी अच्छा था .....ईमानदार था.... इसलिए मुझे पैसे दे गया"
उसने कान्हा की मूर्ति की तरफ देखा .. कान्हा को धन्यवाद करने के लिए .....उसे लगा जैसे कान्हा उसे देख कर मुस्कुरा रहे हो और कह रहे हो कि " मैं आज भी सब की सुनता हूं .. मुझे सब पता है, ....इस दुनिया में इंसानियत और अच्छे लोग आज भी जिंदा है.... कब, किसे और कहा किसको - कितना देना है ......किसके, लिए क्या अच्छा है में सब जानता हूं"
"राधे - राधे"
" जय श्री कृष्णा"