इंद्रधनुषी झंडा
इंद्रधनुषी झंडा


इंद्र धनुषी झंडा ये कहानी नहीं है परियों की राजा रानी या फिर एक लड़के और लड़की की। ये कहानी तो है लडके - लडके , लड़की- लड़की या फिर किन्नरों और इनके ही जैसे कई औरो की अपनी दुनिया की।
हाँ इनकी भी होती है एक दुनिया जिसमें झांक कर भी स्त्री पुरुष देखना नहीं चाहते या न देखने न जानने का दिखावा करते हैं। उन्हें तो सदियों से नफरत ही रही है इस दुनिया से या वो नकारते ही रहे हैं सदा से उनके वजूद को। नहीं मानते वे कि पनप सकता है प्यार दो समलैंगिकों में भी और शादी भी कर सकते हैं वो पता नहीं ये सोच गलत है या सही अगर मैं अपनी बात करूँ तो दिल कहता है न ये सही नहीं है ये तो
ईश्वर की बनायी प्रकृति के खिलाफ है उसके नियमों के विरुद्ध है तो दिमाग कहता है दूसरों के जीवन का फैसला लेने का अधिकार हमें दिया किसने।यकीनन ईश्वर ने तो नही और ये नियम भी तो मनुष्य ने अपने हित साधने के लिए ही तो बनाए हैं। खैर मेरी कहानी है उस इंद्रधनुषी झंडे की जिसे बेन नामक व्यक्ति ने बनाया था और जिस झंडे का नाम है एलजीबीटीक्यू रेन बो फ्लैग। बेन जो एक किन्नर था उसने अपने जैसे ही लोगों के हित के लिए यह झंडा बनाया था पहले गाढे गुलाबी रंग के झंडे को इस आंदोलन के लिए चुना गया पर यह तो नाजी मूवमेंट का प्रतीक था जो खुद ही प्रतीक था हिंसा का और इसी हिंसा से मुक्ति पाने के लिए ही तो आवश्यकता हुई थी एक झंडे की जिसके नीचे सदियों से शोषित वर्ग अपनी बात आमजनों तक पहुंचा सके वो भी बिना किसी को नुकसान पहुंचाये।
इसलिए इसे हटा कर रेन बो फ्लैग को चुना गया पर पहले इस झंडे में आठ रंग थे फिर सात रंगों को चुना गया हर रंग की अपनी पहचान थी। तीस व्यक्तियों ने अपने हाथों से इसमें रंग भरे। इसका नाम एलजीबीटीक्यू यानि लेस्बियन, गे, बाइसैक्सुअल, टास्जैन्डर, , क्विंटल इनमें सबके नाम को मिला कर बना वैसे ही इस झंडे के साथ रंगों की अपनी पहचान है। लाल रंग जीवन दायी उर्जा का प्रतीक है।नारंगी रंग प्रतीक है हीलिंग ऊर्जा का।पीला रंग प्रतीक है प्रकाश अर्थात सूर्य का।हरा रंग प्रतीक है प्रकृति का। आसमानी रंग प्रतीक है जादुई शक्ति का।
बैगनी रंग प्रतीक है झंडा तो बन गया और शुरू हुई एक नई क्रांति की शुरुआत। वो क्रांति जो थी पक्षपात , हिंसा और अन्याय के खिलाफ। बेन और उसके साथियों ने इस अन्याय के खिलाफ दुनिया भर में प्रदर्शन शुरू कर दिये और हाँ संगठन में शक्ति होती है।तो जब सब लोग मिलकर एक साथ खड़े हुए तो फिर सरकारों को भी झुकना ही पड़ा उन्हें उनका हक देने के लिए और आज तो भारत में भी धारा 377 के तहत उनके अस्तित्व को स्वीकार कर लिया गया है।और वो अपनी पहचान भी बना रहे हैं।सिर्फ एक दूसरे के हमसफ़र बनकर ही नही बल्कि समाज को दिशा दिखा कर भी।आज ही एक किन्नर को पहला न्यायधीश नियुक्त किया गया है। और सचमुच इस कामयाबी में इंद्रधनुषी झंडे का योगदान कम नहीं है।