अब और निभ॔या नहीं
अब और निभ॔या नहीं
माधुरी को बचपन में एक सूनी डगर पर कुछ मनचलों द्वारा किया गया वो जघन्य कांड जीवन भर नासूर की तरह चुभता रहा।
किसी से कह भी तो न पायी वो माँ ने ही तो समाज का नाम देकर चुप करा दिया था। पिता भी तो बस एक जगह से दूसरी जगह उस काली रात से पीछा छुड़ाने के लिए तबादले कराते रहे।पर उसके बाद पुरूष जाति से ही नफरत सी हो गयी थी उसे।प्रथम का बार बार उसकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाना उसे हमेशा शकिंत करता और वो उसे झिड़क कर आगे बढ़ जाती।
स्कूल में जब उसने एक बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना सुनी तो बस ठान बैठी नहीं सहने देगी वो उस बच्ची को वो सब जो उसने सहा है एक बार फिर वही सब दोहराया जा रहा था जो कभी उसके साथ दोहराया गया था। समाज का भय दिखाकर उस केस को बंद करने की गुजारिश आरोपी के घरवालों ने भी की थी।गुजारिश नहीं धमकी ही दी थी उन लोगों ने।
फिर बच्ची के माँ बाप भी तो अपने दूसरे बच्चे के हित के लिए उस केस को बंद कराने के पक्ष में थे
पर माधुरी ने भी जिद पकड़ ली थी कि वो उस बच्ची को न्याय दिला कर ही रहेगी। उसे पता था कि अगर आज उसने सच्चाई का साथ नहीं दिया तो एक और माधुरी सहेगी जीवन भर इस नासूर को।
सो उस बच्ची के माता-पिता को समझा कर पहुंच गई पुलिस स्टेशन और खड़ी रही हर मुश्किल में उस बच्ची की ढाल बनकर।
आज जब आरोपी जेल की सलाखों के पीछे है तो उसे खुद को भी लग रहा है कि ये उसी की मुहिम है जिसे वो जीत गयी है।
बरसों बाद न्याय मिला है उसे। अभी तक उसका अतीत जैसे उसका पीछा कर रहा था।कसूरवार न होते हुए भी कसूरवार ही ठहराती जाती रही वो दुनिया की नजरों में।उसने निजात पाने ली है उस डर से जो शाम होते ही दबे पांव समा जाता था उसके भीतर।
आज जी भर देखा है माधुरी ने प्रथम को थाम लिया है उसका हाथ जो न जाने कब से चल रहा था उसके साथ उसकी हिम्मत बनकर उसकी हाॅ के इंतजार में।
अब बस एक मंजिल और तय करनी है उस बच्ची की हिफाजत करके उसे समेटना है ऐसे कि याद न रह पाये उसे उस बीते हुए कल की कड़वी यादें सपनों में भी। जीये अपने हर लम्हें को वो जिसकी है वो अधिकारिणी।