आम का पेड़

आम का पेड़

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आज सुबह से ही गुस्से में था रमोला जी के बगीचे की शोभा बढाता 18 साल पुराना आम का पेड़। उसी की ही छाँव के नीचे बैठकर रमोला जी को कहते सुना था उसने अब आम में वो स्वाद नहीं रहा।


पहले वो आम का एक पौधा था जो बड़ी शान से अपने परिवार के साथ बाग में रहता था। वही देखा और सुना था पहला फल, देवता को भोग लगाया जाता था और फिर मिल बांट कर ही आम खाने का मजा लेते थे सब।


पर यहाँ तो एक एक आम पर रमोला जी की तीखी नजर रहती है और मीना जी वैसे तो सुबह से शाम टीवी देखने और सोने में गुजारती थी पर गरमी आते ही कामवाली रिंकी की निगरानी में लगे जाती। कहीं वो कच्चे आम न तोड़ ले। रिंकी तो फिर भी कामवाली थी पर वो दोनों तो आम अपनी पोतियों को भी नहीं छूने देती है।


बेचारा आम का पेड़ बच्चो को उदास देख खुद भी उदास हो जाता और जब गुस्से में वो बच्चे आम तोड़ने के लिए पत्थर मारते तो उनके पत्थर खाता। फिर एक दिन रमोला जी ने कच्चे आम ही तोड़ लिए। आम के पेड़ ने सोचा शायद कच्ची कैरी का अचार बनेगा आज, तो वाह मजा आ जायेगा। मसालों की खुशबू से पूरा घर महक उठेगा, पर यह क्या उन्होंने तो उन आमों में कार्बाइड लगा दिया। लो भला कोई ऐसे करता है क्या? अब घर के फल भी कार्बाइड से पकेंगे। फिर पता चला रमोला जी की बिटिया आ रही है। उन्हीं के स्वागत की तैयारी हो रही है। खैर बिटिया रानी ने भी मुँह बनाते बनाते आम खाये और साथ में बोलती गई "अब आम में वो स्वाद नहीं रहा"


उधर आम का पेड़ सोच रहा था मेरे फलों का भोग भगवान जी को कब लगेगा, अड़ोस पड़ोस में भी तो फलों को बांटना बनता ही है।अब आम के फल पक चुके है और आम के पेड़ को फिर आशा जागी है। अब शायद मोहल्ले के बच्चे उसके फलों का स्वाद चख पायेंगे पर ये क्या मीना जी ने तो आमों को फिर पेटियों में बंद कर दिया और अब जब बाहर निकालेंगी वो गल चुके होंगे।


डायबिटीज होने के बावजूद उनके सुबह दोपहर और शाम के खाने में आमों की उपस्थिति अनिवार्य है। पर किसी को खिलाकर खाने का भाव ही नही है, तो भला आमों में भी वो स्वाद कहाँ से आयेगा? जो उसके फलों को बाजार के फलों से अलग करें। खैर आज फिर बहुत उदास है बेचारा आम का पेड़।


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