Shwetambari Tiwari

Inspirational

4.2  

Shwetambari Tiwari

Inspirational

पापा का होना

पापा का होना

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पापा का होना और आपको आवाज लगाना बहुत बड़ी बात होती है

आज फादर डे है मेरे पापा मुझे बहुत याद आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि बस वो आज ही याद आते हैं। अब जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है पापा रोज अक्सर याद आने लगे हैं। पापा का चेहरा याद आता भी है तो वह बचपन वाला ही है जब वह पूर्ण रूप से सशक्त थे। अपने अंतिम दिनों में तो डिमेंशिया पार्किंसन ने उन्हें 4 साल का बच्चा बना दिया था। अपने हाथ से खाना भी तो भूल चुके थे वो। उस समय को याद करती हूं तो सोचती हूं पापा के साथ मम्मी ने भी कितना कष्ट सहा था। उस समय हम बस भगवान से यही प्रार्थना करते थे कि ईश्वर अब बस पापा को इन कष्टों से मुक्ति दो। लेकिन आज जब पापा सब मोह माया बंधन को छोड़कर बहुत दूर जा चुके हैं तो दिल यह मानने को तो तैयार ही नहीं होता कि आज मेरे पास मेरे पापा नहीं है। कितने भाग्यशाली होते हैं वह लोग जिनके पास उनके पापा होते हैं आवाज लगाने के लिए उनकी सुनने के लिए और अपनी सुनाने के लिए। हम हिंदुस्तानियों के लिए क्या मदर डे क्या फादर डे हमारा तो हर दिन ही अपने माता-पिता, सास ससुर के साथ ही बीतता है। ऐसे में किसी एक दिन को मनाने का क्या औचित्य है। इसके विषय में भी सभी अपने अपने हिसाब से सोचते हैं पर कुछ भी सही 1 दिन के लिए ही सही कम से कम हम हम अपने माता पिता को याद तो कर ही लेते हैं और याद कर लेते हैं उनके साथ बिताए अपने उन पलों को जोकि अब ईश्वर ने दिए हैं हमें हमारे बच्चों के साथ बिताने के लिए। सोचती हूं भगवान कभी नाइंसाफी नहीं करते। इसीलिए वह शादी के बाद सास ससुर को आपके माता पिता बना देते हैं और हम उन्हीं में अपने माता पिता को ढूंढने का प्रयास करते हैं। सालों लग जाते हैं सास ससुर को माता पिता बनते बनते और समझते समझते। उम्र का एक दौर लेकिन ऐसा भी आता है जब आपको उनकी भी ऐसी परवाह होने लगती है जैसे आपको अपने सगे मां बाप की होती है। उनके तानों में भी आपको उनका प्यार नजर आने लगता है। कुछ लोगों को बहुत जल्दी अपने दूसरे मां-बाप मिल जाते हैं। कुछ लोगों को सालों बाद मिलते हैं और कुछ लोग शायद ऐसे भी होते हैं जिन्हें पूरी जिंदगी अपने दूसरे मां-बाप मिलते ही नहीं है। ऐसे में क्या करें मुझे तो यही लगता है कि अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें कि जो आपको ईश्वर ने दिया है वह आपको जरूर मिले। जब भी आप किसी भी रिश्ते में सच्चे मन से प्रयास करते हैं तो सफलता तो प्रभु देते ही देते हैं। बिना किसी स्वार्थ के अगर हम किसी भी रिश्ते में आगे बढ़ते हैं बढ़ते ही जाते हैं तो देर से ही सही उस रिश्ते को भी हमारे होने का एहसास होने ही लगता है। बहू के लिए बेटी बनना या शायद बहू बनना भी बहुत मुश्किल होता है। मुझे लगता है शायद दामाद के लिए भी ऐसा ही मुश्किल होता होगा बेटा बन पाना या दामाद ही बन पाना। हम ईमानदार कोशिश तो कर सकते हैं और हर कोशिश सफल होकर ही रहती हैं ऐसा मेरा खुद का ईश्वर पर अनुभव और विश्वास है। और हम से सीख कर ही तो हमारी आने वाली पीढ़ी अपने माता पिता सास ससुर को प्यार करना सीख पाएगी और फिर बन पाएगा हमारी पुरातन संस्कृति की तरह हर दिन मदर डे फादर डे और हमारे आने वाले कल को मिल पाएंगे वह संस्कार जो उनकी जड़ों को मजबूत करेंगे।



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