इंद्रधनुष से रंग
इंद्रधनुष से रंग
नंदिनी की शादी सत्रह साल की उम्र में तय हो गई थी। बड़ी बहन के साथ उसके लगन की तारीख भी लिखवा दी गई। नंदिनी की मासूमियत थी कि रंगीन चूड़ियां, रंगीन कपड़े, मेहंदी, रंगीन बिंदी, हर कपड़े के साथ मैचिंग ही सब पहनूंगी बस यही सोच के वो मन ही मन खुश हुए जा रही थी। शहर के लोग इस बात को ना समझ पाएं शायद, पर गांव के परिवेश में पली हर लड़की को इसका एहसास होगा।
जैसी ही लड़की बड़ी होती है उस हल्के रंग के ढीले ढाले कपड़े, बाल एक दम गूथे हुए, सूट का दुपट्टा इधर से उधर ना हो जाए इसलिए ढेर सारी पिन, गर्दन झुका के चलना, ये सब शामिल कर दिया जाता है उसकी ज़िंदगी में। इसलिए बहुत से लड़कियां तो इस सबसे आज़ादी पाने के लिए ही शादी के लिए हां कर देती थी।
नंदिनी की खुशी का भी यही राज था के अब ये हल्के रंग के ढीले ढाले कपड़ों को छोड़कर, चटक रंग के कपड़े पहनेंगे। रंगीन चूड़ियां, पाजेब; जहां चलूंगी बस छन छन की आवाज़। ये सब सोचकर ही नंदिनी के चेहरे पर अलग ही नूर आ रहा था।शादी हुई, नंदिनी की खुशकिस्मती थी कि पति भी उसे खुशमिजाज मिला।नंदिनी के लिए चटक रंग के कपड़ों से लेकर पूरी मैचिंग का सामान वो खुद ही ले आता था ।
नंदिनी खुश थी और अपने पाजेब की छन छन के साथ पूरे घर में उसने संगीत की सी धुन ही फैलाई हुई थी, जिसे सुन उसका पति श्याम भी खुश रहता था।नदिनी के घर जुड़वा बच्चे पैदा हुए; एक बेटा,एक बेटी। घर में खुशियों की लहर सी दौड़ गई। औरतें आंगन में गीत गा रही थी।नंदिनी ने श्याम से कहा -"मैं बेटी को भी सुन्दर रंगीन कपड़े पहना सकती हूं क्या?"
श्याम -" क्यूं नहीं, मेरी लाडो के आने से तो इन्द्रधनुष के सारे रंग जैसे मेरे आंगन में आ गए हैं, मै खुद इसे कभी फीका नहीं पड़ने दूंगा।"
नंदिनी खुश थी, और खुशी के आंसू बह निकले।
श्याम एक से एक चटक रंग के फ्रॉक अपनी बेटी के लिए लेकर आया।दिन यूंही बीत रहे थे कि अचानक जैसे नंदिनी के रंगों में भंग पड़ गई।
नंदिनी के पति श्याम की एक रोड ऐक्सिडेंट में मौत हो गई।नंदिनी की उम्र सिर्फ 22 साल की थी, उस वक़्त। उसका तो पूरा संसार ही तहस नहस हो गया।नंदिनी और उसके बच्चों का विलाप देखकर जैसे आसमान भी रो पड़ा हो, उस रात खूब बारिश हुई।अगले दिन चूड़ी उतरवाई की रस्म हुईं।हमारे समाज का वो काला सच जिसके बारे में कभी किसी बेटी को पहले पता ही नहीं होता, वरना कोई भी लड़की शादी ना करे ; और शादी करनी भी पड़ जाए तो सपने ना देखे।जैसे ही नंदिनी का देवर रस्म के लिए आगे बढ़ा, नंदिनी ने उस पत्थर को छीनकर, अपनी चूड़ियों की बजाय अपने सिर पर ही पत्थर मार लिया, और बेहोश हो गई।
ये समाज फिर भी कहां किसी के दिल की बेबसी सुनता है, अपनी रस्में निभाता रहा और उस मासूम को फूल से पत्थर कर दिया।ये भी ना सोचा कि पत्थर हो गई तो इसके मासूम बच्चों को कौन प्यार देगा.??वो 2 साल के बच्चे बिलख बिलख कर रो रहे थे -" हमे मां के पास जाना है, पापा के पास जाना है ।"
जब बच्चों को नंदिनी के पास लाया गया तो बच्चे डर गए, ये हमारी मां नहीं है।
"नंदिनी को सफेद लिबास पहने, बिखरे बाल, माथे पर बंधी पट्टी, रो रोकर लाल हुई आंखें, सूखे होठ, हाथों में टूटी हुई चूड़ियों के निशान।"
इन सबको देखकर बच्चे इतना डर रहे थे कि मां के पास ही नहीं गए।फिर नंदिनी की सास ने कहा -"इसको रुलाओ नहीं तो बच्चे रुल जाएंगे, अगर सदमे में चली गई तो।"नंदिनी को रुलाने के लिए, श्याम की तस्वीर पर हार चढाने से लेकर, नंदिनी के गाल पर थप्पड़ तक मारे गए।
नंदिनी तो जैसे अपना हसना, रोना, दुख सब श्याम के साथ ही खो चुकी थी।फिर जैसे ही उसकी ननद उसकी रंगीन चूड़ियों से भरा बक्सा लाई तोड़ने के लिए तो नंदिनी की चीख निकली,-"दीदी!! रहम करो, तुम्हारा भाई तो चला गया, उसकी यादें तो रहने दो।"ननद भाभी खूब गले मिलकर रोई। तब नंदिनी ने खुद को संभाला तो बच्चों के बारे में पूछा।नंदिनी की ननद ने नंदिनी को नहलाया, बाल बनाए तब बच्चे उसके पास आए।सब रिश्तेदार आए और चले गए।
किसी ने भी ये नहीं कहा कि अभी तो बच्ची है फिर से इसका घर बसाने की सोचो।किसी के दिल में ये दया नहीं अाई की कैसे इसके बच्चे इसे टूटी हालात में देखेंगे।खैर, इस समाज को बस अपनी रस्मो के अलावा किसी की फिक्र नहीं।जब भी होली का त्योहार आसपास होता, नंदिनी की तबीयत खराब होने लग जाती!उसे रंगों से इतना प्यार था और अब सब रंग जैसे गायब हो हो गए हो उसकी जिंदगी से!!फिर भी अपने मन को मारकर जीना तो था ही!नंदिनी ने सिलाई का काम शुरु किया और अपने बच्चों को पाला।जब बेटा बेटी 15 साल के हुए, तब नंदिनी की उम्र 35 साल की थी बस।
एक दिन बेटे ने कहा -" मां तुम ये सफेद, काले रंग ही क्यों पहनती रहती हो ?"
नंदिनी -" बेटा, यही नियम है समाज का पति के जाते ही सब रंग भी औरत की ज़िंदगी से चले जाते हैं।"
बेटा -" पर मां तुम तो कहती हो, पापा छोटी को इन्द्रधनुष बोलते थे।"
नंदिनी -" हां, बोलते थे बेटा!"
बेटा -" तो इन्द्रधनुष में काला और सफेद कोई रंग नहीं है मां। "
नंदिनी -" बेटा!! तुम अभी बच्चे हो, तुम्हे नहीं पता।"
बेटा -" मां मैं इतना भी बच्चा नहीं हूं, अगर बच्चे मां बाप की ज़िंदगी में रंग भरते हैं, तो बच्चे भी अपनी मां को परेशान देखकर खुश नहीं होते हैं। क्या तुम हमे परेशान देखना चाहती हो?"
नंदिनी -" नहीं बेटा!! तुम ही तो मेरे जीने की आखिरी उम्मीद हो। तुम्हारे पापा की आखिरी निशानी। तुममें ही मैं उन्हें देखती हूं।"
बेटा- " अगर पापा हममें ही है तो तुम क्यों कहती हो की तुम्हारी ज़िंदगी के रंग भी वो साथ ले गए?? पापा की निशानी तुमसे कह रही है, तुम्हारा भी हक है सब रंगों पर। क्या अब भी मेरी बात नहीं मानोगी? पापा के लिए भी नहीं?"
नंदिनी को लगा जैसे श्याम ही उसके सामने खड़ा होकर उससे ज़िद्द लगाए बैठा है । आंसूओं का सिलसिला बंद नहीं हो रहा था, इतने में नंदिनी की ननद और बेटी, मां के लिए रंगीन लिबास ले आई।
नंदिनी की ननद -" भाभी!! इन बच्चों की बात सही है, मेरा भाई इनमें ही तो है। मुझे माफ़ करना, मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाई। शायद मेरा भाई भी आज खुश होगा। उसकी खुशी के लिए ये रंग फिर से भर दो अपनी ज़िंदगी में।
बेटा -" हां, मां इन रंगों पर तुम्हारा भी हक है।"
नंदिनी -" श्याम तुम सही थे ये बच्चे इन्द्रधनुष है हमारी ज़िन्दगी के।"और नंदिनी ने बच्चों की बात मान ली।कुछ दिन बाद होली का त्योहार आया। मां ने बड़ी चाव से बच्चों के लिए पकवान बनाए , होली पूजन हुआ!!अगले दिन जब सब रंगो से खेल रहे थे तो नंदिनी के बच्चों ने मां को भी रंग लगा दिया!!
नंदिनी की ननद ने भी कहा!!भाभी मेरे भाई के बच्चों की दुनिया को भी रंगीन कर दो!अपने घर से अब ये पुराने रिवाजों का टोकरा होलिका दहन में साथ ही जला दिया हमने।सबने एक दूसरे को रंग लगाया और नंदिनी की दुनिया फिर से रंगीन हो गई।