इक तीर : कई निशाने
इक तीर : कई निशाने
वट सावित्री - ठक से सिर पर बेना लागल।
यह क्या नाटक लगा रखी हो ! सुबह से बक - बक सुनकर पक गया मैं ! जिन्हें अपने पति की सलामती चाहिये वे पेड़ के नजदीक जाती हैं। ई अकेली सुकुमारी हैं..."
- ड्राइंगरूम में रखे गमले को किक मारते हुए शुभम पत्नी मीना पर दांत पिसता हुआ झपटा और उसके बालों को पकड़ फर्श पर पटकने की कोशिश की।
मीना सुबह से बरगद की टहनी ला देने के लिए अनुरोध पर अनुरोध कर रही थी। पिछले साल जो टहनी लगाई थी वह पेड़ होकर, उसके बाहर जाने की वजह से सूख गई थी। वट - सावित्री बरगद की पूजा कर मनाया जाता है।
फर्श पर गिरती मीना के हाथ में बेना आ गया, बेना से ही अपने पति की धुनाई कर दी !
घर में काम करती सहायिका मुस्कुराते हुए बुदबुदाई,
"बहुते ठीक की मलकिनी जी ! कुछ दिनों पहले मुझ पर हाथ डालने का भी बदला सध गया।"
शुभम सहायिका द्वारा यह शुभ - समाचार घर - घर फैलने के डर से ज़्यादा आतंकित नज़र आ रहा था !