Priyanka Gupta

Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Inspirational

ईर्ष्या

ईर्ष्या

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मैंने बचपन से यही सीखा था कि कभी किसी से ईर्ष्या मत करो। दीमक जैसे वृक्ष को खोखला कर देती है, वैसे ही ईर्ष्या इंसान को खोखला कर देती है। ईर्ष्या भी झूठ बोलने के समान एक बड़ा पाप ही है। हमें अपने से बेहतर कर रहे लोगों से जलना नहीं चाहिए, बल्कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा रखनी चाहिए।

लेकिन प्रतिस्पर्धा तो तब ही हो सकती है, जबकि अवसर भी समान रूप से मिले। अवसरों में समानता न हो तो अच्छी से अच्छी योग्यता भी धरी रह जाती है। मुझे अपनी भाभी आरती से कभी -कभी बहुत ईर्ष्या होती है। मुझे क्या, आरती से तो हर लड़की को ईर्ष्या होगी। उसका पति यानी कि मेरा छोटा भाई रचित उसे प्यार और सम्मान ही नहीं देता, बल्कि उसके सपनों में रंग भरने में भी सहयोग करता है।

अरे, अपने छोटे भाई और उसकी पत्नी की कहानी सुनाते -सुनाते, मैं आपको अपना परिचय तो देना भूल ही गयी। मैं, शालिनी, पिछले 5 वर्षों से विवाहित जीवन का आनंद ले रही हूँ। सबको तो यही लगता है कि मेरे से ज्यादा खुश भला कौन होगा। मेरे पति सुकेश डिप्टी कलेक्टर जो हैं।


डिप्टी कलेक्टर से शादी ऐसे ही थोड़े न हो जाती है। मेरे लिए जब यह रिश्ता आया था तो मेरे पति ने साफ़ -साफ़ कह दिया था कि उन्हें अपनी पत्नी का नौकरी करना पसन्द नहीं है। जब मैंने अपने मम्मी -पापा को कहा कि, " मैं अपने आत्मसम्मान और पहचान को बनाये रखने के लिए नौकरी करना नहीं छोडूंगी। बेहतर होगा कि आप इस रिश्ते के लिए इंकार कर दे। "

लेकिन मेरे मम्मी -पापा ने मेरी बात मानने से साफ़ इंकार करते हुए मुझे इमोशनल ब्लैकमेल करके इस शादी के लिए तैयार कर लिया था। शादी के बाद से आज दिन तक मैं केवल श्रीमती सुकेश बनकर रह गयी हूँ। सुकेश से मुझे कभी न तो सम्मान मिला और न ही कभी अपने सपनों को पूरा करने की अनुमति, सपने पूरे करने में सहयोग तो दूर की बात है। प्यार करते हैं या नहीं, इसके बारे में मैंने कभी सोचा नहीं। क्यूंकि अगर सम्मान ही नहीं करते तो प्यार कहाँ से होगा ?


मैं अपने घर में,नहीं -नहीं सुकेश के घर में अपनी मर्ज़ी से परदे तक नहीं लगा सकती। घर के हर छोटे से लेकर बड़े फ़ैसले तक सुकेश खुद ही लेते हैं| अगर मैं कभी कुछ सुझाव भी देना चाहूँ तो यह बोलकर चुप करा दिया जाता है कि सारा दिन घर पर रहती हो, तुम्हें क्या समझ होगी? तुम हाउसवाइव्स को बाहर की दुनिया का कुछ पता तो होता नहीं, वैसे भी घर के कामों के लिए कौनसा अक्ल चाहिए| अब अक्ल कम है तो, उसका इस्तेमाल सोच -समझकर करना चाहिए| सुकेश के यह शब्द मेरे आत्मसम्मान को छलनी करते रहते हैं| 

पहले तो नौकरी छुड़वा दी और अब जब कभी मैंने अपना बिज़नेस शुरू करना चाहा तो यह कहकर मना कर दिया कि मैं इतना कमा तो रहा हूँ और तुमसे कोई बिज़नेस नहीं होगा । सुकेश हर बार यह भूल जाते हैं कि मैंने मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी और शादी से पहले तक मैं नौकरी करती थी।

सुकेश के एकदम उलट रचित ने आरती को उसकी बेकरी शुरू करने में मदद की| आरती को न केवल कच्चा माल खरीदने में बल्कि कस्टमर ढूंढने में भी मदद की| आज जब आरती की बेकरी अच्छी चल रही है, अच्छा मुनाफा कमा रही है तो मेरे खुद के मम्मी -पापा आरती की तारीफ करते नहीं थकते|


अब तो मेरे मम्मी -पापा तक भी हर मामले में आरती की सलाह ही मानते हैं,उसी से मशविरा करते हैं और जब कभी मैं कुछ कहती हूँ तो यह कहकर मुझे चुप करा देते हैं कि, " अरे बेटा, आरती बहुत समझदार है, अपनी बेकरी इतने अच्छे से चला रही है, इतने कम समय में इतना अच्छा मुनाफा कमा रही है| "

तब मैं मम्मी -पापा को बोलना चाहती हूँ कि, " आपके कारण ही मैं आज केवल एक शो पीस बनकर रह गयी हूँ| बाहर जिसकी कोई दुनिया नहीं है और घर के अंदर जिसका कोई महत्व नहीं है| ", लेकिन बोल नहीं पाती|

आज मम्मी के जन्मदिन पर मैं उनके लिए बड़े प्यार से टसर सिल्क की साड़ी लायी थी| आरती मम्मी के लिए चंदेरी सिल्क की साड़ी लायी थी| बातों-बातों में जब मैंने साड़ी की कीमत बताई तो आरती ने बोला कि, "दीदी, आपको तो दुकान वाले ने लूट लिया| आप तो साड़ी महंगी ले आयी| ऐसी साड़ी तो मैं आपको सस्ते में दिलवा देती| "


आरती की बात सुनकर सभी लोग हँसने लगे और कहने लगे कि,"आरती,शालिनी तुम्हारी जितनी समझदार थोड़े न है| "

लेकिन आज सबका मजाक मुझे पसंद नहीं आया और मैंने भी बोल दिया कि,"अगर आरती जितना सहयोग मुझे मिलता तो मैं भी पता नहीं कहाँ की कहाँ होती| आप सब को आरती की उपलब्धियाँ नज़र आती हैं, लेकिन रचित का उसको मिलने वाला सहयोग नज़र नहीं आता| रचित जैसा अच्छा पति हो तो हर लड़की आरती बन सकती है| पहले अपनी खुद की बेटी के पंख क़तर दो और फिर दूसरों की उड़ान से उसकी उड़ान की तुलना करो|"

"अरे बेटा, कैसी बातें कर रही है? आरती तेरी भाभी है| तुझे उसके लिए ख़ुश होना चाहिए, उससे जलना नहीं चाहिए।" मम्मी ने मुझे कहा| 

"मम्मी खुश हूँ, लेकिन जलती हूँ| आपने मेरे लिए रचित जैसा जीवन साथी क्यों नहीं ढूँढा?" ऐसा कहकर मैं वहाँ से निकल गयी थी।

शायद मम्मी-पापा को मेरा दर्द समझ आ गया था। उन्होंने कुछ दिनों बाद मुझे फ़ोन करके पूछा ,"बेटा शालिनी ,तुम्हें लिखने का भी शौक था न ?क्या शादी के बाद लिखना बंद कर दिया ?"


मैंने कहा ,"मम्मी ,अपने व्यवहार के लिए मैं आपसे माफ़ी चाहती हूँ। लेकिन कब तक अपना दर्द केवल पन्नों के जरिये ही अभिव्यक्त करूँ ? इसलिए न चाहते हुए भी आपको इतना कुछ बोल दिया। "

मम्मी ने कहा ,"इसका मतलब बेटा तू अपने दिल की बातें कहीं न कहीं तो लिख ही रही है। रचित किसी पब्लिशर को जानता है ,तू अपनी दिल की बातें सही से लिख ले एक किताब के रूप में। "

मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। मैंने कहा ,"लेकिन मम्मी सुकेश ?"

इतने में रचित ने फोन ले लिया था और कहा ,"दीदी ,जीजू की आप चिंता मत करो। उसका भी मेरे पास समाधान है। आप अपनी किताब में लेखन का सारा श्रेय जीजू को देना। जब भी आपकी किताब का विमोचन करेंगे ,तब जीजू को मीडिया आदि द्वारा इतना श्रेय दे देंगे कि जीजू चाहकर भी कुछ नहीं बोल सकेंगे। एक बार आप आत्मनिर्भर हो जाओगे तो वैसे ही जीजू अपना रौब आप पर उतना झाड़ नहीं पाएंगे। धीरे -धीरे वह भी समझ जाएंगे। "


रचित की बात मानकर मैंने अपनी डायरी को एक किताब का आकार दिया। रचित ने अपना वादा निभाया। उसने पब्लिशर को मेरी किताब दिखाई और रचित के अनुसार ,"पब्लिशर को मेरी किताब का कंटेंट बहुत पसंद आया। "

किताब के विमोचन के लिए सुकेश के बॉस को आमंत्रित किया गया। सुकेश के बॉस ने भी सुकेश की बहुत तारीफ की और रचित के कहे अनुसार," सभी मीडिया पर्सन और अन्य उपस्थित लोगों ने सुकेश को एक अच्छा जीवनसाथी बताया।"

इतने लोगों से अपनी प्रशंसा सुनकर सुकेश अपना मन मसोस कर रह गए। मेरी किताब बेस्टसेलर में शामिल हो गयी थी। कई भाषाओं में अनुवादित की गयी। अब मैं आत्मविश्वास से पूर्ण आत्मनिर्भर औरत थी। मैंने आरती से माफ़ी मांगते हुए कहा ,"आरती ,तुमसे ईर्ष्या की ;उसके लिए मुझे माफ़ कर देना। "

लेकिन आरती ने मुझे गले लगाते हुए कहा ,"दीदी ,आज आपकी ईर्ष्या की वजह से ही मैं एक बेस्ट सेलर लेखक की भाभी हूँ। मेरी सहेलियों के बीच मेरा मस्तक हमेशा गर्व से ऊँचा होता है। हम सभी को इतनी प्रसन्नता देने वाली ईर्ष्या अच्छी ही थी। "


सुकेश कुछ दिनों तक कटे -कटे रहे ,लेकिन फिर वह भी समझ गए थे कि मैंने अब अपने पंख खोल लिए हैं और मेरी उड़ान रोकना अब संभव नहीं। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि ,"तुम्हें जो करना है ,वह करो। लेकिन घर और बच्चे की जिम्मेदारी उठाने में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। "

मैं इतने में ही संतुष्ट थी। उनका सहयोग मिलने में अभी शायद और वक़्त लगे ,लेकिन असहयोग तो समाप्त हो ही गया था। 

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