हुआ यूं कि
हुआ यूं कि
एक बार की बात है ,मैं किसी काम से अपने विद्यालय ( पूर्ववर्ती विद्यालय) में गया हुआ । दरअसल मुझे किसी विद्यालय में नामांकन कराने के लिए जिला शिक्षा पदाधिकारी से हस्ताक्षर करवानी थी और मेरे विद्यालय त्याग प्रमाणपत्र सह चरित्र- प्रमाणपत्र को सत्यापित करवानी थी । हमें जिस विद्यालय में दाखिला करवानी थी वहाँ के शिक्षकों द्वारा हमें बताया गया था कि विद्यालय के प्राचार्य की सहायतार्थ यह काम पूरा होगा । मैं विद्यालय के किरानी से उपर्युक्त बातें कही लेकिन उन्होंने इससे साफ पल्ला झाड लिया फिर मैं जब बोला कि यह कैसे संभव होगा तब उन्होंने मुझे खुद जाकर काम करने की बात कही । साथ में चढ़ावे की भी बात कही ,सुनकर यह मन बहुत स्तब्ध हुआ। लेकिन कुछ कह नहीं कह पाया लेकिन इतना जरूर कहा की "देखिए सर कुछ उपाय कीजिए मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं ।" दरअसल उन्होंने कही थी कि पाँच सौ - सौ की पत्ती चढ़ाने की बात कही थी ।
लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी और बोले कि वहाँ इतना तो देना ही पड़ेगा क्योंकि इतने से यानि पाँच सौ - हजार से तो वहाँ शुरूआत ही होती है । मैं चुपचाप उनकी बात सुनती रही । फिर वहाँ मध्य विद्यालय के शिक्षक को साथ लेकर आवेदन- पत्र को अग्रसारित करवाने गया लेकिन वो उसमें भी हिचक रहे थे अंतत: शिक्षक के दबाव के कारण उनको बात माननी पड़ी और वे अग्रसारित कर दिये।
