हर्ज

हर्ज

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"ये इन्सान कहाँ भागे जा रहें है ? एक दूसरे को गिराते हुए,रौंद्ते हुए,धक्का देते हुए एक दूसरे से आगे जाने की होड़ मे लगे है।अविवेकी और संवेदनहीन से" "ये इन्सान नहीं हैं,इन्सान की ही एक प्रजाति है।कठपुतलीयाँ कहते है इन्हे।" "कठपुतलियाँ--माने ?" "मतलब,--

ये विवेक शून्य और संवेदना से परे,भीड़ तंत्र के अनुयायी है।भीड़ तंत्र की कोई भी आज्ञा बिना सोचे समझे,बिना तर्क के ये लोग तत्काल पालन करते है" "ओह दुखद।--यानि की इनके पास दिल और दिमाग होता ही नही, फिर तो ये इंसानियत को विनाश की ओर ले जायेंगे "

"हाँ मित्र ,सही समझा तुमने, इन्होने भीड़तंत्र की आज्ञा से हमारा परित्याग कर दिया है।"

"पर हमें इन्हें नहीं छोड़ना चाहिये, चलो, चलकर इन्हे कठपुतलियों से इन्सान बनाये।"

"तुम्हे विश्वास है मित्र दिल,क्या ये संभल जायेंगे" "कोशिश करने मे हर्ज ही क्या है विवेक भाई।'

अपना विवेक और संवेदनाये खोये हुए लोग दूसरों के इशारे पर कठपुतली बनकर रह गये है वर्तमान में।


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