हमसाया
हमसाया


अंबाला के लिए छह बजे ट्रेन छूटती है और अभी पंद्रह मिनट बाकी थे। माँ दही मिश्री ले कर आयी ।माथे पर मंदिर के चंदन का तिलक लगाकर दही खिलाई । उनके पैर छूकर मदन पैदल ही स्टेशन चल पङा । बाहर जनवरी की ठंड अपना असर दिखा रही थी । इतने गरम कपङे पहने होने के बावजूद कंपकपी सी हो रही थी । घंटाघर पहुँचा तो देखा , उसकी घङी घंटाघर की घङी से पाँच मिनट पीछे है ।
तभी घंटी बजाता एक रिक्शावाला उसकी बगल से गुजरा । एक पतली सी कमीज ,मैली पैंट और पाँव में देसी सी चप्पल पहने सरदी को चुनौती देता हुआ । इससे पहले कि वह निकल जाता ,
"जी साब चलूँगा । "
उसके कुछ और बोलने से पहले ही वह उछलकर रिक्शा पर बैठ गया । स्टेशन पहुँच उसने जेब में हाथ मारा । पचास का एक नोट हाथ आया । उसने पसीना पोंछ रहे रिक्शावाले को थमाया और बिना उसकी ओर देखे प्लेटफार्म की ओर बढ गया ।