Sneh Goswami

Abstract

4.3  

Sneh Goswami

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हमसाया

हमसाया

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अंबाला के लिए छह बजे ट्रेन छूटती है और अभी पंद्रह मिनट बाकी थे। माँ दही मिश्री ले कर आयी ।माथे पर मंदिर के चंदन का तिलक लगाकर दही खिलाई । उनके पैर छूकर मदन पैदल ही स्टेशन चल पङा । बाहर जनवरी की ठंड अपना असर दिखा रही थी । इतने गरम कपङे पहने होने के बावजूद कंपकपी सी हो रही थी । घंटाघर पहुँचा तो देखा , उसकी घङी घंटाघर की घङी से पाँच मिनट पीछे है । 

तभी घंटी बजाता एक रिक्शावाला उसकी बगल से गुजरा । एक पतली सी कमीज ,मैली पैंट और पाँव में देसी सी चप्पल पहने सरदी को चुनौती देता हुआ । इससे पहले कि वह निकल जाता ,

"जी साब चलूँगा । "

उसके कुछ और बोलने से पहले ही वह उछलकर रिक्शा पर बैठ गया । स्टेशन पहुँच उसने जेब में हाथ मारा । पचास का एक नोट हाथ आया । उसने पसीना पोंछ रहे रिक्शावाले को थमाया और बिना उसकी ओर देखे प्लेटफार्म की ओर बढ गया ।



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