हमारी बहू श्रवण कुमार है
हमारी बहू श्रवण कुमार है
सिया एक बहुत ही सुंदर, समझदार व संस्कारी लड़की है। परिवार की अहमियत व बड़ों को सम्मान तथा छोटों को प्यार देकर सबका दिल जीतना बहुत अच्छे से जानती हैं। मां की ढेरों दुआएं व आशीर्वाद लेकर पति अमन के साथ ससुराल की दहलीज पर अपना पहला कदम रखा। अमन विदेश में एक बड़ी कंपनी में कार्यरत है और छुट्टी लेकर भारत आया हुआ है। महीने भर बाद उसे विदेश लोटना है और इस बार सिया के साथ जाने की भी सब तैयारियां पूरी हो गई थी। घर में नई बहू के आने से खुशी का माहौल है। सासु मां सुशीला जी व ससुर प्रकाश जी सिया को बहू के रूप में पाकर खुशी से फूले नहीं समा रहे। सिया के अच्छे स्वभाव ने सबका दिल जीत लिया। अब अमन और सिया के विदेश जाने का समय नजदीक आने लगा। दोनों सास ससुर के चेहरे पर छाई उदासी सिया से छिपी न रह सकी। भरोसा दिलाया रोज दिन में दो बार वीडियो काल पर ढेर सारी बातें किया करेंगे तब जाकर सुशीला जी व प्रकाश जी के दिल को थोड़ी तसल्ली हुई।
सोमवार को सिया और अमन की फ्लाइट थी। सब तैयारियां पूरी हो चुकी थीं लेकिन ठीक एक दिन पहले रविवार को सुशीला जी अचानक से बाथरूम में फिसल गई। पैर में फ्रैक्चर की वजह से प्लास्टर लगवाना पड़ा। अब सिया परेशान हो रही थी उनके जाने के बाद सासुमां व घर की देखभाल अकेले पापा जी कैसे कर पायेंगे। बस यही सोचकर उसने कुछ दिन यही रहने का निर्णय किया ताकि सासु मां की सही देखभाल हो सके और उनके ठीक होते ही निश्चिंत होकर अमन के पास चली जायेगी। उसकी बात मानते हुए अमन अकेला विदेश लौट गया और सिया ससुराल में रहते हुए पूरे जी जान से एक अच्छी बहू का फर्ज निभाने लगी।
सुशीला जी के पैर को पूरी तरह ठीक होने में चार महीने लग गए। ठीक होते ही उन्होंने प्रकाश जी से सिया को भिजवाने की बात की। प्रकाश जी ने भी सहमति देते हुए खुद जल्द ही सब प्रबंध करने मे जुट गए। लेकिन इसी बीच एक दिन प्रकाश जी के सीने में जबरदस्त दर्द हुआ। जैसे तैसे सिया सासुमां की मदद से उन्हें गाड़ी में बिठा अस्पताल लेकर गई। दिल का दौरा पड़ने से उनकी हालत काफी नाजुक थी। डाक्टर अपना इलाज कर रहे थे और इधर सिया सास ससुर को संभालते हुए एक आदर्श बहू के साथ साथ बेटे का फर्ज भी बखूबी निभा रही थी। उसकी निस्वार्थ सेवा की बदौलत प्रकाश जी स्वस्थ होकर घर आये लेकिन अभी कमजोरी बहुत महसूस हो रही थी। अमन को पता चला तो पापा को देखने कुछ दिन के लिए भारत आया। इस बार सिया को साथ चलने की जिद्द करने लगा। सास ससुर ने भी सिया को जाने को कहा परन्तु ससुर जी हालत को देखते हुए उसका मन न माना। अमन से बोली, पापा जी अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं है, ऐसे में अगर दोबारा कुछ ऊंच नीच हो गई तो दोनों बुजुर्ग अकेले क्या करेंगे। जहां इतने दिन हमने सब्र किया है कुछ दिन और सही। बस एक बार पापा जी बिल्कुल ठीक हो जाए फिर मैं निश्चिंत होकर हमेशा के लिए आपके पास आ सकती हूं।
अमन कुछ न बोल पाया लेकिन उसके चेहरे से निराशा साफ दिख रही थी। एक बार फिर उसे अकेले लौटना पड़ा और संस्कारी सिया सास ससुर को मां बाप का दर्जा देते हुए खुशी से अपनी जिम्मेदारियां निभाने लगी। कुछ ही दिनों में सिया ने घर में खुशखबरी सुनाई और प्रकाश जी व सुशीला जी अपनी सब परेशानियों को भूलकर आने वाले नन्हे मेहमान का इंतजार करने लगे। तभी एक दिन बैल बजने पर सिया ने दरवाजा खोला तो सामने कोरियर वाला अमन द्वारा सिया के नाम भेजा कोरियर लेकर खड़ा था। उत्सुकतावश सिया वहीं खड़े खोलने लगी लेकिन अचानक से पेपर पढ़ते हुए बेहोश होकर जमीन पर गिर गई। सास ससुर ने संभाला। डाक्टर को बुलाकर चैक करवाया तो उन्होंने बोला अचानक से लगे किसी सदमे की वजह से ऐसा हुआ है। इस बार तो सब ठीक रहा लेकिन कोशिश कीजिए दोबारा ऐसा न हो। प्रकाश जी समझ नहीं पा रहे थे आखिर उनकी हँसती खेलती बहू के साथ ऐसा क्या हुआ है तभी उनकी नजर फर्श पर पड़े उस पेपर पर पड़ी। उठाकर देखा तो इस बार सदमे की उनकी बारी थी। अमन ने सिया के लिए तलाक के कागजात भेजे थे। खुद को बड़ी मुश्किल से संभालते हुए अमन को फोन लगाया। अमन ने बड़ी बेरूखी से कहा अगर शादी के बाद भी उसे अकेले ही रहना है तो भला ऐसी शादी का क्या फायदा। प्रकाश जी ने अमन को फौरन भारत लौटने को कहकर फोन काट दिया।
कुछ दिनों में अमन के लोटने पर मां पापा ने उसे पास बिठा अच्छे से समझाते हुए कहा, तुम्हारी अनुपस्थिति में सिया न सिर्फ बहू बल्कि बेटा बनकर सुख दुख में हमारे साथ रही। हर जिम्मेदारी खुशी से निभाती रही जो तुम्हारा फर्ज था। तुमसे दूर रहकर भी मन से तुम्हारे रिश्तों को निभाया उसने। सच में श्रवण कुमार पुत्र के बारे में सुना था लेकिन हमारी तो बहू श्रवण कुमार हैं और हमारे जीते जी हमारी ऐसी बहू के साथ कुछ भी बुरा करने के बारे में मत सोचना। ठंडे दिमाग से सोचने पर अमन को भी अपनी गलती का अहसास हो गया और झट से सिया से माफी मांग ली।
अगले हफ्ते मम्मी पापा और सिया अपने घर को किराए पर देकर खुद विदेश अमन के पास जा रहे हैं। कुछ चिर परिचित, रिश्तेदार मिलने आए। उनमें से किसी ने बधाई देते हुए कहा, आपका बेटा तो सचमुच श्रवण कुमार है, जिसकी वजह से आपको विदेश घूमने को मिला। प्रकाश जी बोले, नहीं जी, हमारा बेटा नहीं बहू श्रवण कुमार है और ऐसी बहू पाकर हम तो धन्य हो गए।
