हमारी अधूरी कहानी

हमारी अधूरी कहानी

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"हाय मेरा बेटा, ये दिन देखने से पहले मैं मर क्यों नहीं गयी,"

लगभग रोज सीमा जी ये शब्द खुद के लबों को रूबरू करती थी, राज जो लगभग 3 सालों से व्हीलचेयर पर था, हाँ वो सब महसूस करता था, पर खामोशी को उसने अपना जीवन बना लिया था।ऐसा नहींं था राज, एक हंसती खेलती शख्शियत का ऐसा हाल वक़्त के हालत की मजबूरी थी जिसके आगे राज हार गया।


3 साल पहले


"कितना वक्त लगाती हो फोन उठाने में और एक मैं की मरा जा रहा हूँ तुमसे मिलने के लिए।


"अरे बाबा उठा तो लिया, माँ के साथ थी इसलिय देर हो गयी , बोलो क्या हुआ?"


"आज मिलने के लिए बोला था तुमने ,भूल गयी।"


"नहींं भूली, याद है शाम को 5 बजे रोज गार्डन में।"


"वक़्त ही नहीं निकल रहा कब ये 5 बजेंगे और मैं अपनी शीना से मिलूँगा।"


"5 बजे रोज गार्डन में इंतज़ार करते वक़्त वो बस उसी की झलक के लिए पागल था, सच मे पागलों की तरह प्यार करता था उसे।"


"गुलाबी रंग में जब वो उसे नजर आयी तो जैसे नजरें थम ही गयी थी, वो खूबसूरत तो थी ही, जाने कितने ही दिलों की धड़कन हुआ करती थी वो, सब एक नजर के दीवाने थे उसके, बहुत से लड़को ने उसे प्रपोज किया, पर ना जाने क्यों उसने मुझे हाँ की, मैं बहुत किस्मत वाला था कि मुझे शीना मिली , मैं उसे कभी नहीं खोना चाहता अब। "


"क्या देख रहे हो ऐसे घूर घूर कर?"


"तुम्हेंं ही देख रहा हूँ औऱ किसे देखूँगा, देखो शीना मेरी बात मानो हम भाग कर शादी कर लेते है, मेरी माँ नहींं मानने वाली इस रिश्ते के लिए, और मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता।"


"मान जाएंगी राज , वो माँ है, तुम्हारी खुशी से बढ़कर भला और क्या हो सकता है उनके लिये, मेरी माँ भी मान गयी ना ,हाँ पापा थोड़े नाराज है पर वो भी मान जाएंगे।"


"ओह तो सवारी कहाँ से आ रही है, फिर उस कलमुँही के पास गया था, ना जाने क्या हो गया है तुझे, क्यों उसके चक्कर में पड़ा है।"


"क्या क्या सोच रखी थी मैं, एक ही बेटा है मेरा, बड़ी सुंदर दुल्हन लेकर आऊँगी मेरे बेटे के लिए सब देखकर मुँह ताकेंगे, रुतबा होगा रुतबा , पर तूने ना जाने क्या देखा उसमें, ना ही वो हमारी हैसियत के है ना ही उनकी हमारी कोई बराबरी, लोग क्या कहेंगे कि बेटा प्यार में पागल हो गया।"


"पर माँ शीना भी तो बहुत सुंदर है ये सब आप उसके साथ भी तो कर सकते हो, बस बात पैसों की है जहाँ आकर आपकी सोच अटक गई, क्या मेरी खुशियों की कीमत आप पैसों से लगा रही है।"


"ना जाने कैसा जादू किया है तुझ पर उस लड़की ने, उसके आगे कुछ तुझे नजर ही नहीं आता, बर्बाद कर देगी तुझे एक दिन देखना, माँ की फिक्र नहीं है तुझे , जन्म दिया इतने प्यार से बड़ा किया, सारी ख्वाहिशों को पूरा किया

 "

"हाँ बस माँ मैं समझ गया क़ीमत माँग रही हो उस वक़्त की जो आपने मुझ पर लुटाया, ये मेरी भी जिद है तू मेरा मरा मुँह देखेगा।"


"ये कैसी कशमकश है एक तरफ़ मेरा प्यार औऱ एक तरफ माँ की बेवज़ह ज़िद , इसमें मेरा क्या कसूर है, मुझे किस बात की सजा मिल रही है , मैंने तो कोई भी फ़र्ज़ निभाने में कभी कोई कमी नहीं रखी , ना जाने कितनी अनगिनत बातें राज के दिल को टुकड़ो में बिखेर रही थी।"


"भैया उठो जल्दी माँ की तबियत खराब हो रही है। मैंने जैन अंकल को फोन किया है वो आते ही होंगे"


"क्या हुआ माँ को , पापा कहा है , पापा माँ के पास ही है आप बस जल्दी चलो"


"पसीने से लथपथ राज बदहवास हो रहा था, क्या मेरी जिद की वजह से माँ की तबियत खराब हुई है, माँ को कुछ हो गया तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊँगा।"


"माँ "

"राज , और साँसे भारी होती जा रही थी, इस हालत में भी माँ को एक ही चिंता थी मैं शीना को हमेशा के लिए छोड़ दूं।"


"ये डॉ आया क्यों नहीं अभी तक , पापा के चेहरे की हालत उनके दिल का हाल बता रही थी, एक पल भी वो माँ के बिना रह नहींं सकते थे, आज पहली बार माँ को ऐसी हालत में देखा हम सबने।"


"आज माँ के सिवा मुझे कुछ याद नहीं आ रहा था, जैसे एक पल में , मैं अपनी यादों के उन हिस्सों को भूल चुका था जो मैंने शीना के साथ संजोये थे।

जी लूँगा मैं उसके बिन , पर माँ की जान की कीमत पर नहीं।"


"भैया डॉ आ गए।"


"आप निश्चिंत रहिये, मुझे देखने दीजिये

 "

"नब्ज की रफ़्तार बढ़ रही थी , तभी डॉ ने माँ को एक इंजेक्शन लगाया जिससे उनकी हालत सामान्य हुई, "


"बाहर आकर डॉ ने कहा कि घबराने की बात नहीं है , रक्तचाप बहुत ज्यादा बढ़ गया था , हाँ पर ध्यान रखिये की वो किसी मानसिक तनाव से ना गुजरे वरना दिमाग की नसें फट सकती है।"


"3 दिन हो गए थे , पर एक बार भी मैंने शीना से बात नहीं की, जिसे कभी मुझे फ़ोन करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी आज उसके इतने मिस कॉल्स मैं ऐसे नजरअंदाज कर रहा था जैसे वो कोई अजनबी हो।"


"तभी रोहित मेरा दोस्त मुझे बाहर मिलने आया" 


"क्या हुआ तुझे राज , तू ठीक तो है ना, तू शीना के फोन क्यों नहीं उठा रहा, वो परेशान हो रही है"

 

"मैं नहीं आ सकता यार उसे कह देना की मुझे देखने लड़की वाले आ रहे है , लड़की करोड़पति है, और बहुत सुंदर भी, अब हमारे बीच कुछ नहीं हो सकता "


"ये तुझे क्या हो गया राज, क्या मैं तुझे जनता नहीं या, अब तक जिसे जनता था वो कोई और धोखेबाज था, शीना तो तेरी जिंदगी है, तेरा प्यार , तू ऐसे कैसे कर सकता है।"


"हाँ मैं बेवकूफ था, ये प्यार व्यार कुछ नहीं होता , असली जिंदगी में पैसा होना चाहिए , और वो मुझे क्या दे सकती है, बस सुंदर थी दिल बहला रहा था, इसका मतलब ये नहीं की मेरी पूरी जिंदगी सौप दूं उसे"


"जा कर कह देना उसको।"


"कहने की कोई जरूरत नहीं, शीना ने कहा था जब मैं तुझसे मिलूँगा तो अपना फ़ोन चालू रखूं, ताकि वो खुद सुन सके कि तू ऐसा क्यों कर रहा था।"


"फ़ोन चालू था, शीना, क्या अब भी तुम राज से बात करना चाहोगी।"


"नहीं रोहित, मुझसे गलती हो गयी जो मैं मिडिल क्लास लड़की प्यार के सपने सजा रही थीं , पर अपनी औकात भूल गयी थी। अच्छा हुआ राज ने याद दिला दी।"

"कह देना उससे आज से वो आजाद है, मैं मर गयी उसके लिए।"


"घर पहुँचते ही राज ने सबसे पहले माँ से यही कहा कि मेरे लिए लड़की देखना शुरू कर दो, आप जो कहोगी मैं वही करूँगा"


"क्या , ये तू कह रहा है, आज मेरी परवरिश जीत गयी, और तुझे सच गलत का अंतर समझ आ गया, मैं तो कबसे तेरे लिए लड़की देख रखी थी , बस अब तू देखले, लड़की ने लंदन से अपनी पढ़ाई की है , माँ बाप भी बहुत रूतबा रखते है, "


"बस तू पसंद कर ले"

"माँ मुझे लड़की पसंद है, आप बस शादी की तैयारियों को देखो, "

"पर बेटा एक बार तो।"

"नहीं माँ मुझे कुछ नहीं देखना ,आपने देखी ना बस मैंने भी देखली"


"माँ को तो जैसे जन्नत मिल गयी , आज जैसे उसे सबसे बड़ी जीत हासिल हुई।"


"शादी की तैयारियाँ वक़्त और महूर्त के हिसाब से तय कर दी गयी , अब तो बस उस शुभ घड़ी के आने की देर थी जब राज की जिंदगी में नैना ,आने वाली थी ।"


"वो वक़्त भी आया जब राज दूल्हा बना पर आज भी वो अपनी दुल्हन में शीना को ढूंढ रहा था जिसका बड़ी बेदर्दी से उसने दिल तोड़ा था, आसान नहीं था, अपने खुद के दिल के टुकड़ों को कैसे मैने समेटा मैं ही जानता हूँ , पर आज मैं माँ से हार गया, हार गया मेरा प्यार।"


"आज मैं अपने बेटे को खुद सेहरा पहनाना चाहती हूँ "


"लाल रंग की शेरवानी खूब जंच रही है मेरे राज पे। "


"लो तैयार हो तुम अब अपनी दुल्हन को लाने के लिए, और मैं बेसब्र हूँ।"


"मैं अभी आती हूँ।"


तभी राज के फ़ोन की घंटी बजी, "रोहित तू , क्या हुआ सब ठीक है ना"


"तू खूनी है राज , आज से तेरा मेरा कोई वास्ता नहीं, तू बेरहम है आज तेरी वजह से शीना,,,"

"शीना क्या , वो ठीक तो है ना रोहित , मेरा मन घबरा रहा है"


"वाह राज "


"शीना अब तेरी जिंदगी मे कभी लौट के नहीं आएगी, चली गयी वो हमेशा के लिए तुम्हें छोड़ के, मर गयी वो, आत्महत्या कर ली उसने, और एक बात सुनेगा तो तेरे जमीन तले पैर ना रहेंगे, वो माँ बनने वाली थी तेरे बच्चे की "


"तुझ जैसा इंसान मैंने अपनी पूरी जिंदगी मे नहीं देखा।तुझे भगवान कभी माफ नहीं करेगा, तू कातिल है"


"राज के पैरों तले जमीन नहीं थी, ये क्या तुमने शीना, बदहवास हालात में वो भागा , पर उसकी चौखट पर उसे पैर रखने की भी इजाजत नहीं मिली, ये उसकी जिंदगी का सबसे बुरा पल था ,"उधर घर पर सब राज का इंतजार कर रहे थे, तभी पता चला राज का एक्सीडेंट हो गया "


माँ के हाथ से पूजा का थाल जमीन पर गिर कर बिखर गया ठीक वैसे ही जैसे राज की खुशियों का संसार एक पल में खत्म हो गया था, माँ ने जो खुशी जबरदस्ती अपने बेटे की किस्मत में रखनी चाही वो दहलीज़ से लौट गई, क्योंकि वो तो उसकी किमस्त ही नहीं थी, जो उसकी किस्मत में थी वो उसकी रूह को अपने साथ ले गयी पर जिस्म को यही छोड़ दिया।अस्पताल में राज बेहोशी की हालत में आई .सी. यू. में था आज माँ को कपङे बेटे को इस हाल में देख पछतावा हो रहा था, की वो माँ होकर अपने बेटे के दिल को समझ नहीं पाई, और वो बीमारी का नाटक कर बैठी जो उसने डॉ जैन के साथ मिलकर किया था , ताकि वो राज को उस लड़की के पास जाने से रोक सके, और वो कामयाब भी हो गयी, लेकिन अपने बेटे को आज उसने हमेशा के लिए खो दिया


लगभग 15 दिन अस्पताल में रहने के बाद राज को छुट्टी मिल गयी, पर अब वो एक जिंदा लाश था, जिसे व्हीलचेयर के जरिये घर ले जाया जा रहा था, ना वो कुछ बोलता था, ना कुछ महसूस कर रहा था, ऐसा लग रहा था कि वो जिंदगी में जीना ही नहीं चाहता था, जैसे डॉ ने  कहा कि कोई दवाई कुछ काम नहीं कर रही थी, क्योंकि राज जैसे कुछ ठीक ही नहीं करना चाहता था।आज माँ जीत तो गयी थी पर हमेशा के लिए अपने बेटे को हार कर,और राज और शीना कभी ना मिलने के लिए बने थे।



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