हमारे वन

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बच्चो, क्या आप जानते हैं किस राज्य में देश के 75% वन हैं?"

"75% यानी कुल एक चौथाई वन ही बाकी के सारे क्षेत्रों को मिलाकर हमारे देश में हैं?"यामिनी ने आश्चर्य से पूछा।

"हां, इसका यही अर्थ है ।अब किसके पास इस प्रश्न का उत्तर है?"

"अब यह भी आप ही को बताना होगा, चाचा जी।"आंखें चुराते हुए अखिलेश ने कहा।

" तो सुनिए ,उत्तर पूर्वी भारत के 8 हिमालई राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर,मेघालय ,मिजोरम ,नागालैंड ,सिक्किम और त्रिपुरा अपने वनों के लिए जाने जाते हैं। यह क्षेत्र देश की 7.98 फ़ीसदी भूमि का हिस्सा है।एक चौथाई देश के वनों की भागीदारी इसी की है।यह राज्य देश के 75 फ़ीसदी वनों के दाता हैं। इनमें से पांच राज्य उत्तर पूर्वी भारत के ही हैं,जिनमें से विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय ,मिजोरम ,मणिपुर और नागालैंड है।"

"चाचा जी, इन सभी राज्यों के किस राज्य में सबसे अधिक वन हैं?"

"इन सभी राज्यों में सबसे ज्यादा वन मिजोरम में हैं। दुखद है कि यहां भी वन कटान किसी न किसी रूप में बना रहता है।असम और मणिपुर के अलावा सभी क्षेत्रों में वनों की स्थिति ठीक कही जा सकती है।" "इसका अर्थ तो यह हुआ कि यहां के बनवासी वृक्षों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं और वनों की स्थिति अच्छी है।यह तो बहुत सुखद बात है।"' श्रेया ने कहा।

"ऐसा नहीं है श्रेया,पिछले 10 वर्षों में उत्तर पूर्वी क्षेत्र में करीब 300 वर्ग मीटर वर्ग किलोमीटर वन घटे हैं। इनके अलावा नागालैंड,मिजोरम, त्रिपुरा ,अरुणाचल प्रदेश लगातार अपने वन क्षेत्रों को खो रहे हैं।"

"इन वनों के घटने के पीछे क्या स्थानीय लोग ही जिम्मेदार हैं ?अगर ऐसा है तो उनमें चेतना लाने की आवश्यकता है।"विनीता ने कहा।

"यहां के वनों की बिगड़ती स्थिति के पीछे विकास कार्यों के लिए लगातार वन कटान व शिफ्टिंग कल्टीवेशन भी जिम्मेदार है। वनवासी वन कटान कर खेती करते हैं। वनों की आग भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है,जो इन वनों को लगातार पिछले 2 दशकों से काफी क्षति पहुंचा रही है, खासकर शीतकाल के अंत में।इससे यहां के करीब 20 फ़ीसदी वनों को नुकसान हुआ है।" 

"यहां किस प्रकार के वन है चाचा जी?"कैलाश ने पूछा।

इन वनों में सबसे अधिक समृद्ध जैव विविधता पनपती है।यहां की वन संपदा में वन्यजीव और ऐसे पेड़- पौधे शामिल हैं जो दुनिया में एक अनोखा स्थान रखते हैं।"

"चाचा जी कल बड़े भैया बता रहे थे कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट के अनुसार पूर्वोत्तर के यह वन तमाम विपदाओं में फंसे हैं।"देवदत्त ने कहा।

"यह बिल्कुल सच है हिमालय के यह वन क्षेत्र तमाम विपदाओं में फंसे हैं।पारिस्थितिकी में इनका अमूल्य योगदान है,इसलिए इनकी सुरक्षा जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए बहुत आवश्यक है।"

"चाचाजी, हम अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं, कितना प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं! आखिर इसकी भरपाई किसी न किसी तरह तो होगी ही ?प्रकृति हमें दंड तो देगी ही।" सुलोचन ने चिंतित होकर कहा।

" ठीक कहते हो सुलोचन, सूखा पड़ जाना, तापमान का उत्तरोत्तर बढ़ते जाना या घटते जाना, बाढ़ का विनाश, भूकंप ! यदि हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करेंगे ,उसके संसाधनों का दुरुपयोग करेंगे तो प्रकृति के कोप का भाजन होना ही पड़ेगा। अच्छा हो कि हम समय रहते चेत जाएं।"

" जी चाचाजी, हम अपनी तरफ से पर्यावरण सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे, यह हमारा आपसे वादा है।"

" उचित कहा, बच्चो, तो फिर आज के लिए इतना ही, धन्यवाद।"

"नमस्ते चाचा जी, और आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।" सब बच्चों ने समवेत स्वर में कहा।



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