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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

"हमारे मुहल्ले का कुआँ "

"हमारे मुहल्ले का कुआँ "

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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”===================शहर क्या ? यहाँ तक कि गाँवों में भी कुआँ विलुप्त प्रायः हो गया है ! अब जहाँ कुआँ है भी, वह निष्क्रिय ,खंडर और अवशेष मात्र रह गए हैं ! आने वाली नयी पीढ़िओं को कुआँ के विषय में पढ़ाना , खँड़रों को दिखाना होगा और परिभाषित भी करना होगा !आज कल पानी के स्रोत अनेकों हैं ! पर 50 –60 के दसक में कुआँ जीवनदायनी हुआ करता था ! मुहल्ले के लोग कुआँ पर आश्रित हुआ करते थे ! तालाब,नदियाँ और जल स्रोत का भी लाभ उठाते थे ! पर कुआँ के सिवा हमारे मुहल्ले और कोई साधन नहीं था !हमारे मुहल्ले को “करहलबिल” कहा जाता है ! यह बहुत छोटा शहर दुमका संथाल परगना भागलपुर प्रमंडल अंतर्गत स्थित तत्कालीन बिहार में था ! दुमका एक पर्वतीय क्षेत्र में बसा हुआ है ! घने जंगल और पर्वत शृंखलाओं घिरा था !हमारे मुहल्ले में एक बड़ा कुआँ था ! वह काफी गहरा था और उसके जगत काफी ऊँचे थे ! बच्चे न उसके ऊपर चढ़ सकते थे और ना कोई पशु का ही हदशा हो सकता था ! वह कुआँ श्री राम केशरी जी ने बनबाया था ! ये उनके घर से अलग अपनी खाली जमीन पर इसको बनबाया था ! कुछ दिनों तक वे ही हमारे वार्ड कमिश्नर रहे और बाद में वे दुमका नगरपालिका के सभापति बनें !उनकी उदारता ने कुआँ के चारों तरफ एक बड़ा चबूतरा बनबा दिया !लोग सुबह 4 बजे से अपनी -अपनी बाल्टी ,रस्सी और मिट्टी का घड़ा लाते थे ! अंधेरा होने के वजह से सब लोग अपने साथ टॉर्च भी लाते थे ! सबलोगों के साथ-साथ करीब तीन बड़े लोग रहते थे ! मिट्टी के घड़ों को रखने के लिए लोग अपने घरों से पुआल का गोल अड़चन बनाकर साथ लाते थे ! घड़ा लुड़क न जाय इसलिए घड़े के पेंदी के नीचे उसे रखते थे !हमारे घर से बारी -बारी 3 लोग पानी भरने के लिए कुआँ पर जाते थे ! एक आदमी कुएं से पानी निकलता था, दूसरा पानी को घड़े में डालता था और तीसरा व्यक्ति भरे हुये घड़े को कंधे पर ढ़ोकर घर ले जाते थे ! इस दौरान बातें नहीं लोग करते थे ,नहीं तो और भीड़ इकट्ठी हो जाती ! बातें इशारों -इशारों में होती थीं !हाँ , कोई धीमे स्वर से पूछ देता था ,—–” तुम्हारे कितने घड़े हो गए ?……… ““ भाई, आज क्या बात है ? पानी बहुत ले जा रहे हो ? क्या कोई विशेष बात ?”कोई धीमी आवाज में बोल उठता ,—–” क्या बताऊँ ? दो ससुराल से अतिथि आ गए हैं ! ना कोई खबर नहीं ना चिट्ठी ? आ धमक गए हैं ! पता नहीं कब तक डेरा जमाये रखेंगे ? …….कुछ भी हो ,सुबह 9 बजे उनको भी इस कुआँ पर लाएँगे और यहीं उनको नहलाना पड़ेगा !”अब बड़े ,बुजुर्ग और स्कूल कॉलेज जाने वाले लोग 9 बजे बाल्टी,रस्सी,लोटा और गमछा लेकर सारे दल बल के साथ कुआँ पर पहुँच जाते थे ! कोई पहले से स्नान कर रहा होता था तो हम अपनी बारी का इंतजार करते थे ! 30 -40 लोग स्नान करने के लिए कुआँ पर पहुँच ही जाते थे ! समय प्रर्याप्त होता था ! लोग एक दूसरे से बातें करते थे ! उनके दुख- दर्द को आपस में लोग बाँटते ! बड़ों को भैया ,चाचा और भाई साहब कह कर सम्बोधन करते थे ! हर घर की बातें लोग जान पाते थे ! किनकी शादी कब होगी इनकी खबर मिलती थी ! सुख -दुख की बातें कुआँ के इर्द गिर्द हुआ करती थीं !12 बजे बुजुर्ग महिलाओं की बारी रहती थी ! उनके साथ छोटे बच्चे भी कुआँ पर चले आते थे !एक दूसरे से बातचीत करना ,नयी पुरानी बातों को दुहराना और सबसे बड़ी बात आपस में प्रेम को सँजोये रखना इस कुआँ की खासियत थी !आज के इस दौर में कुआँ विलुप्त हो गया ! दूरियाँ बढ़ती चली गयीं ! और हम अंजान बनते चले गए ! किसी को कोई जानता और ना पहचानता है !============================डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”साउंड हेल्थ क्लिनिकडॉक्टर’स लेनदुमकाझारखण्डभारत18.05.2025 


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