हमारे जमाने में तो
हमारे जमाने में तो
अक्सर शादी वाले घर में जो धूमधाम होती हैं वो अब कम हो चुकी थी। कुछ ख़ास रिश्तेदारों के बीच विवाह बाद की जरूरी रस्में करवाई जा रही थी ।दूल्हा दुल्हन के रूप में माधवी और शुभम की जोड़ी सीता राम की जोड़ी लग रही थी । वे दोनों पारिवारिक सदस्यों के बीच घिरे होकर भी सबसे बचते बचाते एक दूसरे को निहार ही लेते थे और ऐसे में जब दोनों की निगाहें टकराती तो मानों दिल के सभी तार एक साथ बज उठते। फिर कोई देख न लें सोचकर वापिस नीची निगाह कर लेते ।
खैर धीरे धीरे समय बीतता गया । अब माधवी ससुराल की घर गृहस्थी मे रम चुकी थी और शुभम भी अपनी नौकरी में व्यस्त था ।
शादी को लगभग एक साल गुजरने को था ।एक दिन अचानक माधवी की तबियत बिगड़ी उसका जी घबराने लगा । आनन फानन में डॉक्टर को दिखाया गया ।घर में चारों तरफ़ खुशख़बरी फैल गई कि बहू गर्भवती हैं ।
माधवी शुभम की तरफ़ देखकर शरमा गई और शुभम ने भी उसको अपने आगोश में ले लिया।
अब तो माधवी को सासू मां की तरफ़ से आवश्यक हिदायतें रोज़ मिलने लगी ..."बहू घर का काम करते रहना ,बहू फ्रीज़ का ठंडा मत खाना ,एकदम गर्म चीज़ भी मत खाना । कभी कभी उसे घबराहट होती तो सास कहती एक साथ भरपेट खाना मत खाया कर ... थोड़ा थोड़ा दो तीन बार खा लिया कर। "
सासू मां ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा-
"बहू ऐसी अवस्था में जहां तक संभव हो सकें, घर का काम करते रहना चाहिए , मुझे देखो अभी भी हाथ पैरों में फूर्ति हैं । हमारे तो सारे बच्चे काम करते करते ही हो गए ,कहां उस ज़माने में बेड रेस्ट होता था ,दिन भर घर का काम करते ,खूब खाते और चक्की (दो पट वाले पत्थरों पर ) पीसते, मजाल जो ऑपरेशन की नौबत आ जाए ,पर हां अपनी सेहत का ध्यान सबसे पहले रखना ।"
ऐसे ही धीरे धीरे समय बीतता गया और माधवी ने प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया । आनंद और गरिमा मम्मी पापा बन गए और घर में एक नए सदस्य के आने से रिश्तों की भी पदोन्नति हो गई। दादा दादी अपनी पोती की बलाइयां लेते नहीं थकते ।
अब दिन भर कैसे गुजर जाता गरिमा को पता ही नहीं चलता । घर का काम करते करते बीच बीच में बच्ची को संभालती ,कभी दूध पिलाती तो कभी नेपी बदलती... फिर दादी के पास छोड़ काम में लग जाती । एक दिन अचानक से गरिमा की पुरानी सहेली का फोन आया दोनों ने आपसी बातें की ,एक दूसरे के हाल चाल पूछे । माधवी की सहेली ने फोन पर कहा कि ,"तू भी अब योगा क्लास ज्वाइन कर लें वरना शरीर बेडौल हो जायेगा बच्ची होने के बाद।"
माधवी ने अपनी सहेली की बात सास को बताई तो सास ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और पास बैठकर बोली ,"बहू ! ये योगा वोगा तो सब आजकल की ज़रूरत हैं। हमारे ज़माने में तो दालें, मसालें, गेंहू सब घर में पीसे जाते । खेत की मुंडेर से मेहंदी के पत्ते लाते और घटौले में पीसते ,फिर कपड़े से छानकर एक डिब्बे में भर लेते।"
माधवी सास की बात बड़ी ध्यान से सुन रही थी।
"बस बहू! मैं तो इतना ही कहना चाहती हूं कि जहां तक परेशानी न हो काम करते रहना चाहिए । शरीर भी चुस्त और मन भी चुस्त। आलस्य भी छू मंतर और दिमाग में भी फालतू ख्याल नहीं आयेंगे । "
माधवी अब और भी दिलचस्पी से सास के जमाने की बातें सुन रही थी।
" देख बहू ! हमारे जमाने का योगा तो ऐसा ही होता था अब तू चाहे तो नए जमाने का योगा भी कर लेना पर मेरी सलाह भी मान लेना ।"
" जी सासू मां! मैं अपने बच्चे का ध्यान रखते हुए जितना हो सकेगा उतना तो जरूर करूंगी और सुबह सुबह मन की शांति के लिए अपना वाला योगा भी कर लूंगी । माधवी ने सास की बात खत्म होने पर तपाक से कहा।
बिलकुल सही कहा पुराने और नए योगा का वैसा ही मिक्सअप होगा जैसे हम दोनों ने एक दूसरे को मिक्सअप कर लिया हैं। इतना कहकर दोनों सास बहू खिलखिलाकर हंस दी।
