ये कैसा सम्मान
ये कैसा सम्मान
"बोलो चुप क्यों हो , तुम कुछ बोलते क्यों नहीं ! क्या हो रहा हैं ये सब..."
गृह स्वामिनी की अनायास आई आवाज़ सुन छबेली के शरीर में बिजली सा करंट दौड़ता है और वह आभा जी के पीछे छुप जाती हैं । नंद किशोर जी अपनी पत्नी आभा को यूं अचानक घर आते देख सहम जाते हैं । उन्हें कहां पता था कि आभा इतनी जल्दी काम खत्म कर लेगी और समय से पूर्व ही घर आ जायेगी।
दोस्तों ! नंद किशोर जी और आभा दोनों पति पत्नी हैं। जहां एक तरफ शहर के जाने माने समाज सेवी हैं नंदकिशोर जी तो वहीं दूसरी तरफ़ महिला सुरक्षा समिति की प्रमुख हैं आभा जी। सुंदर , गौरवर्ण बिलकुल अपने नाम के अनुरूप हैं आभा जी , जिन्हें सब प्यार से आभा दी पुकारते हैं । महिलाओं के बीच बहुत ही लोकप्रिय हैं आभा दी । नंद किशोर जी की भी अपनी एक अलग ही धाक हैं शहर भर में । हर कोई उन्हें सलाम ठोकता हैं।
आज सुबह दोनों पति पत्नी सुबह की चाय की चुस्कियों के साथ अपना मन खोल रहे थे । कितनी सुहानी सुबह थी वो जब आभा अपने पति के साथ बाहर घूमने का प्लान बना रही थी। आखिर एक छुट्टी का ही तो दिन मिलता हैं दोनों को जब दोनों ज्यादा से ज्यादा वक्त एक दूसरे के साथ बिताते ।
हां तो दोस्तों ! ऐसी रोमांटिक सुबह में अचानक आभा जी को कोई फोन आया और उन्होंने झट अपनी साथी महिलाओं को फोन पर कुछ कहा और तुरंत घर से बाहर चली गई ,ये कहते हुए कि थोड़ा समय लगेगा ,आकर घूमने चलेंगे।
अब घर में छबेली और नंद किशोर जी ही रह गए थे। कई दिनों से नंदकिशोर जी छबेली पर कुछ ज्यादा ही मेहरबां हो रहे थे । आज जब आभा यूं बाहर चली गई तो मौका पाकर नंद किशोर जी ने अपने घर काम करने वाली छबेली को गंदी नजरों से देखा और उसके साथ गंदी हरकतें करने लगे ।यह सिलसिला कहीं दिनों से चल रहा था मगर नंद किशोर जी ने छबेली को धमकी दे रखी थी कि अगर उसने किसी को कुछ बताया तो वो सबके सामने उसे ही बदनाम कर देगा ।
छबेली बेचारी डरी सहमी सब कुछ सहती रहती और अकेले में रोती रहती । उसकी मां ही पहले आभा जी के यहां काम करती थी । एक दिन अचानक छबेली की मां बीमार हो गई और वह बीमारी के चलते काम पर जाने में असमर्थ हो गई। वह स्वाभिमानी थी इसलिए जब आभा जी ने पैसों से उसकी मदद करनी चाही तो उसने लेने से इंकार कर दिया और छबेली को काम पर भेज दिया। मजबूरन न चाहकर भी आभा जी को उसकी बात माननी पड़ी और आभा ने छबेली को काम पर आने की हां कर दी। बस ऐसे ही चलता रहा और एक दिन जब आभा बाहर से घर लौटी तो ..."घिन्न आती हैं मुझे तुम पर ... तुम्हें अपना पति कहते हुए, गरीबों का कोई आत्म सम्मान नहीं होता क्या ! वो बेचारी अपनी मां का इलाज करवाने के लिए यहां काम कर रही हैं .... पढ़ने की बजाय घरों में बर्तन झाड़ू कर रही हैं और तुम ... तुम उसकी मदद करने के बजाय इस नजरिए से देखते हो उसे ,अगर आज मैंने अपनी आंखों से तुम्हारी हरकतें ना देखी होती तो .... वो बेचारी तो कुछ कह भी नहीं पाती! किस मुंह से तुम खुद को समाज सेवी कहते हो जब खुद अपने ही घर में बेटियों की इज्ज़त की धज्जियां उड़ाने में लगे हो!"
अपनी हरकतें जब पत्नी के सामने आई तो नंद किशोर हक्का बक्का रह गया । उसे मानो काटो तो खून नहीं । शहर भर में उसकी बहुत इज्ज़त थी । अभी कुछ दिनों पहले ही तो उसे सर्वोच्च समाज सेवी का पुरस्कार मिला था अपने गांव की एक बेटी की इज़्ज़त बचाने पर...तो क्या वो सब महज़ एक दिखावा था जो चंद कागज़ के टुकड़ों पर खरीदा गया था ! पैसों के बल पर अर्जित किया गया सम्मान क्या सम्मान की श्रेणी में माना जायेगा ।
हकीकत तो कुछ और ही थी जो आज सामने आ गई आभा के। कितना प्रेम करती थी वो अपने पति को .... आज़ ये सब देखकर उसका तो कलेजा छलनी हो गया । उसकी आंखों में खून दौड़ रहा था , किसी सदमे से कम नहीं था यह सब आभा के लिए ...एकाएक शिथिल हो कर वही सोफे पर धड़ाम से बैठ गई आभा । घर से निकलने से पहले कितने सपने देखे थे उसने उस सुहानी सुबह में.... पल भर में सब चूर चूर हो गए। स्वयं को शहर का बड़ा समाज सेवी कहलाने वाला आज अपनी ही पत्नी के सामने शर्मसार खड़ा था।
दोस्तों ! कथनी और करनी में बहुत अंतर होता हैं । ऐसे लोग समाज के सामने खुद को साफ़ सुथरा दिखाते हैं वहीं पीठ पीछे छबेली जैसी मासूम मजबूर लड़कियां इनकी हवस का शिकार होती हैं। सचेत रहें और सुरक्षित रहें ।
