डॉल्फिन
डॉल्फिन
गाने सुनकर गुनगुनाने का हक सिर्फ़ हम इंसानो को है। मेरी यह गलतफहमी उस वक़्त खत्म हो गई, जब मैंने ये न्यूज सुनी कि, "सड़कों पर डॉल्फिन''निकली।बस फिर क्या था? मुझे फिल्म का वो डायलाग याद आ गया-- आज तुम खुश तो बहुत हुए होंगे!
अभी मेरा यह डायलाग पूरा ही हुआ था कि एक और डायलाग फाइटर प्लेन की तरह कानों में घुस गया-- " खामोश! "
ये आवाज इतनी जोर की थी कि मैं वाकई खामोश हो ग ई। सामने जल सुन्दरी " डॉल्फिन" को देख कर मेरे मुँह से कुछ भी नहीं निकला। क्योंकि आज वो मुझे सुन्दरी के विपरीत कुछ और दिखाई दे रही थी।
पर हाँ, उसका डायलाग ही इतना दमदार था कि इसे सुन कर कोई भी डायरेक्टर उसे फिल्मों की हीरोइन बना दे।खैर यह तो मेरी स्थिति थी।अब जरा उसकी बात कर ले जिसकी वजह से यह " डॉल्फिन- पुराण" लिखनी पड़ी।
मेरे डायलाग पर डॉल्फिन कहने लगी-- क्यों न होऊ मैं आज खुश! आज तो मेरा पार्टी करने, नाचने- गाने का दिन है। क ई वर्षों से इस बॉलीवुड माया-नगरी में आने की लालसा थी। मगर कभी सोचा ना था कि मेरा हीरोइन बनने का ख़्वाब इस तरह और इतनी जल्दी पूरा होगा।
वो तुम्हारी भाषा में कहते हैं न," अपना भी टाइम आयेगा, आयेगा ।" सो आ गया ना! भगवान वास्तव में सबकी सुनता है, मुझे भी अभी - अभी अहसास हुआ।
मैं आम - नागरिक होने के नाते उसकी बातें सुनने के अलावा और कर भी क्या सकती थी? डॉल्फिन अपनी बातों में मुझे ऐसे फंसा रही थी जैसे हम कांटे में मछली फंसाया करते थे। वो कहते हैं न,जैसा कर्म, वैसा फल ।
वह आगे बोली-- क्यों लगती हूँ ना, मैं मिस यूनिवर्स !मेरे पास हाँ में जवाब देने के सिवा और कोई चारा था भी नहीं, खुद को उससे बचाने के लिए।
मेरी हाँ सुन कर वो कुछ गुनगुनाने लगी, मानो वो अब मुझे गाने का टेलेन्ट दिखाना चाह रही थी--
" मैं निकली पानी लेके,
ओ, मैं निकली पानी लेके,
रस्ते में ईक रोड़ आया,
ओ मैं फिर वहां घूम आयी ।"
मैं यह सोच कर हैरान रह ग ई कि वाकई यह डॉल्फिन तोमल्टी टेलेन्टेड है।उसकी दमदार एन्ट्री, दमदार संवाद अदायगी, मिस यूनिवर्स जैसी खुबसूरती और तो और गाने का टेलेन्ट, भला उसे मैं कैसे भूल सकती हूँ।
