कबाड़ से जुगाड़
कबाड़ से जुगाड़
रसोई से निकले तेल के खाली डिब्बे एक तरफ़ इकट्ठे कर लिए थे ताकि कबाड़ में दे सकूं।
एक दिन मेरी काम वाली बाई ने मुझसे कहा ," दीदी! आप ये खाली डिब्बे मुझे दे दो।"
मैंने सोचा शायद सामान भरने के लिए मांग रही होगी, बाजार से खरीदकर लाने की बजाय यदि मुझसे लेगी तो दो पैसे भी बच जायेंगे .. मैंने हां कर दी।
वो फिर बोली," दीदी ! मैं इनमें बहुत सारे फूलों के पौधे लगाऊंगी । एक तुलसी जी का पौधा भी लगाऊंगी और जिस तरह से आप इन डिब्बों पर रंग करके इनके सुंदर गमले बनाती हो ना वैसा मैं भी बनाऊंगी इसलिए तो आपसे ले रही हूं ।"
ये सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई कि उसने मुझसे कुछ सीखा तो सही, साथ ही इस बात की तसल्ली भी थी कि जो मेरे लिए अब समय की कमी के कारण कबाड़ बन चुका था अब वह उसके लिए जुगाड़ हैं
" दीदी! ये लीजिए शगुन का एक रुपया ... मैं मुफ़्त में नहीं लूंगी, पाप लगेगा।"
उसकी ये बात सुनकर हम दोनों जोरों से हंस दिए।
