वो दौर... हास्य रचना😀
वो दौर... हास्य रचना😀
याद नहीं वो ज़माना कुछ खास
अजी हम तो छोटे थे ना !!
अब आपने कहा हैं तो
डालते हैं जरा जोर दिमाग पर
हां, तो हम कहां थे
अरे कहाँ थे से क्या मतलब भई
मालगुड़ी डेज के ज़माने में और कहाँ
छोड़िए जी इन्हें तो कुछ भी नहीं पता
अजी ये छोटे थे ना ....
अच्छा तो आप ही बता दीजिए
अभी बता देते हैं उसमें कौन सी बड़ी बात है
हां तो बात उस ज़माने की हैं जब हम छोटे थे
अरे भई ये क्या बात हुई
हम छोटे थे तो हमें कुछ याद नहीं
और तुम छोटे थे तो तुम्हें सब याद
होता हैं होता हैं कभी कभी ऐसा भी होता हैं
अच्छा?? हाँ
हां तो उस जमाने में आज की तरह डायटिंग वाली टीवी नहीं होती थी, अरे बताया तो था खेतों से सीधी ताजी हरी सब्जियां घर आती थी, गाय का शुद्ध घी काम में लिया जाता,, और तो और,,, अरे ये क्या तुम अपनी पुराण लेकर बैठ गए,,,,, सीधे सीधे मुद्दे पर आओ, अरे भई वहीं तो आ रहे हैं, हाँ तो जब खाना पीना सब कुछ शुद्ध मिलता था तो सीधी सी बात हैं टीवी भी अच्छी खासी हेल्थ वाली होनी ही थी। अब वो क्या हैं उस ज़माने में टीवी होता था कम और देखने वाले होते थे ज्यादा, तो टीवी ऐसी जगह पर रखा जाता था जहाँ से सब देख सकें, ,तो इसका नतीजा यह हुआ कि कभी टीवी पर कलर करवाने की सोची ही नहीं किसी ने, धूल मिट्टी तो अब लगनी ही थी तो कलर कराने से फ़ायदा भी क्या ! सो ब्लैक एंड व्हाइट ही होती ।
वैसे मानना पड़ेगा, दूरदर्शन धारावाहिकों का ऐसा उत्साह था कि बच्चे वैसा ही रोल करने लगते या बड़े होकर वैसा ही बनने की सोचते । हाँ वो बात अलग थी कि हमारे ऐसे ख़्वाब हर दूसरे दिन बदलते रहते, ,, पात्रों के अनुसार, ,वो हम छोटे थे ना तो!
वाकई दोस्तों!! मालगुड़ी डेज के साथ साथ धारावाहिकों की एक लंबी चौड़ी लिस्ट हैं जिन्हें बचपन में देखने का मज़ा ही कुछ और था।