V Aaradhya

Inspirational

4.5  

V Aaradhya

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हिम्मत का मीटर चालू

हिम्मत का मीटर चालू

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माँ का रिपोर्ट आए आज छठा दिन था. अनंत सुबह हाथ में दास्ताना पहनकर माँ की ऑक्सीजन रीडिंग देखने गया तो एकबारगी उसका मन बैठ गया. उसे लगा कि अगर ऐसे ही माँ का ऑक्सीजन स्तर गिरता रहा तो शायद उन्हें अस्पताल में एडमिट ना करना पड़े.


सबसे ज़्यादा चिंता का विषय था, माँ हिम्मत हारती जा रही थीं. उनकी खुराक तो वैसे ही बहुत कम थी. अब तो सब कुछ बेस्वाद लगने लगा था.


जबसे उन्होंने सुना था कि उनकी चचेरी बहन अनिता मौसी कोरोना की जंग हार गई हैं, तबसे बस एक ही बात दुहराती कि,"अनिता तो मुझसे सात साल छोटी है ज़ब वो ज़िन्दगी की जंग हार गई तो भला मैं कैसे ठहर पाऊँगी "

अनंत और आरती बहुत समझाते पर उनके अंदर जीने की लालसा जैसे खत्म होती जा रही थी.


आज सुबह तो ऑक्सीजन लेबल बहुत ही कम हो गया था. कल तक तो अस्सी तक था तभी अनंत को डॉक्टर ने हॉस्पिटल ले जाने को कहा था. पर माँ के मन में कहीं गहरे ये डर बैठ गया था कि एक बार जो अस्पताल चली गई तो ज़िंदा वापस आना नहीं हो पायेगा.


एक के बाद एक कई रिश्तेदार और उनकी सत्संग की कुछ सहेलियों के निधन ने माँ के मन में खुद के लिए एक डर बैठा दिया था. वो कहतीं ज़ब मरना ही है तो हॉस्पिटल में शरीर की फज़ीहत क्यूँ कराना. जो होगा वो घर में ही हो. कम से कम अंतिम समय में अपने बच्चों का मुँह तो देखकर जाऊँगी.


अब माँ को कैसे समझाए कि अस्पताल में उनका बेहतर इलाज हो सकता है. आए दिन समाचारों में जो अस्पताल में मरीजों की दुर्दशा का हाल,डॉक्टरों और ऑक्सीजन की कील्ल्त के बारे में सुनकर किसीका भी विश्वास डोल सकता है.


अनंत को आज बहुत असहाय महसूस हो रहा था क्यूँकि माँ उसकी बात मानने को तैयार ही नहीं हो रही थी. हार थक के उसने आरती की बात मानकर दीदी को फोन लगाया.


वसुधा के पति कोरोनाग्रस्त थे नहीं तो वह ज़रूर आ जाती. अनंत और आरती को पता था कि वसुधा में माँ की जान बसती है. उन्होंने अमित वसुधा के पति को कोरोना संक्रमित होने की बात छुपाई थी. इसलिए वसुधा ज़ब भी माँ से फ़ोन में बात करती, कहीं रोना ना आ जाए इसलिए संक्षिप्त हाल चाल पूछकर ही फोन रख देती थी इससे माँ अपने मन की पूरी बात बता ही नहीं पाती थी. अभी आरती को इस घर में आए हुए एक साल ही हुए थे. और फिर माँ बेटी का रिश्ता तो बेटी के जन्म से जो शुरु होता है वो फिर खत्म कहाँ होता है.


आज अनंत से नहीं रहा गया तो उसने वसुधा को फ़ोन लगाया. उधर से दीदी का हैलो सुनते ही अनंत एकदम से रो पड़ा. वो आरती के सामने तो रो नहीं सकता था और ना ही माँ को अपनी टूटन दिखा सकता था.ज़ब वह थोड़ा संयत हुआ तो वसुधा ने समझाया,

"कैसे भी करके माँ को यह एहसास कराना पड़ेगाकि उनकी हम सबको बहुत ज़रूरत है. उनके बिना हम एकदम जी नहीं पाएंगे."


ऐसी ही बातें देर तक होती रही. फिर वसुधा ने अनंत को कहा कि माँ से पर्याप्त दूरी रखते हुए

वीडियो कॉल कराए.माँ पहले तो वीडियो कॉल के लिए मना करती रही फिर ज़ब अनंत ने कहा, दीदी के दोनों बच्चे अपनी नानी को देखना चाहते हैँ तो ललिताजी भावुक होकर बोली, "अरे ज़रा कंघी लाओ, ज़रा बाल संवार लूँ और ये गाऊन बदल लूँ. बच्चे क्या सोचेंगे.


आरती और अनंत बहुत उत्सुक होकर माँ को देख रहे थे. माँ ने हल्के हाथों से बाल ठीक किये और दोनों बच्चों से बहुत अस्फुट शब्दों में कुछ बोल रही थी. कमज़ोरी और बुखार की वजह से उनसे बोला नहीं जा रहा था पर उनके चेहरे पर थोड़ी सी ज़िन्दगी दिखाई देने लगी थी.


बंटी ने वसुधा के कहने पर नानी से जानबुझकर अपनी पेंटिंग में तितली के पँख और गार्डन में उकेरे हुए फूलों को किस रँग से रँगा जाए ये पूछ रहा था तो नन्ही डॉली अपनी नानी से गुड़ियाघर कैसे बनाना है, ये सीखना चाहती थी.


वीडियो कॉल के बाद पहले तो ललिताजी खूब रोईं फिर अगले ही पल हिम्मत जुटाकर अनंत और आरती को फ़ोन पर समझाया कि उनके खाने को थोड़ा चटपटा बनाया जाए तो वो मन लगाकर खा पाएंगी.


अनंत ज़ब आरती को माँ के लिए धनिए की चटनी बनाने के लिए बोलने गया तो एक दृश्य देखकर भावविह्वल हो गया. आरती आँखों में आँसू लिए भगवान के सामने दीपक जलाकर माँ की ज़िन्दगी के लिए प्रार्थना कर रही थी.

सामान्यतः इन दोनों सास बहू में लगभग छत्तीस का आंकड़ा रहता था. पर मौत के खौफ ने सबको एक कर दिया था. दुःख साझे हो गए थे, और लोग आपसी वैमनस्य भूलकर एक दूसरे की मदद करने को हाथ बढ़ाने लगे थे.


अगली सुबह ज़ब अनंत माँ के कमरे में चाय लेकर गया तो उसने देखा, माँ के दर्द से क्लान्त चेहरे पर एक स्मित सी मुस्कान थी. पर ऑक्सीजन चेक करते हुए फिर से अनंत का दिल बैठ गया. आज तो कल से भी कम हो गया था. पर प्रकट में माँ को खुश होते हुए बोला,


"अरे वाह माँ, आज तो ऑक्सीजन बहुत बढ़ा हुआ है. लगता है जल्दी ही कोरोना डरकर भाग जायेगा."

सुनकर माँ बहुत खुश दिखी. तभी दरवाज़े के पास खड़ी होकर आरती माँ से चने की स्पेशल दाल की रेसिपी पूछने लगी,जो नारियल कददूकस करके सिर्फ माँ ही बनाती थी.माँ ने कुछ इशारे कुछ शब्दों से रेसिपी बताई और उसमें अपनी पसंद का मसाला डालने का इशारा किया.


फिर तो अनंत, आरती और वसुधा माँ को कभी बातों में कभी वीडियो कॉल में लगाए रखते. बंटी और डॉली वसुधा के सिखाए अनुसार अपनी पेंटिंग पर कभी जानबूझकर पानी गिरा देते तो कभी डॉली सिलाई करते हुए सुई ऊँगली में चुभ जाने का नाटक करती तो ललिताजी को लगता इन बच्चों को तो अभी बहुत कुछ सिखाना बाकी है. मुझे तो ज़िंदा रहना ही पड़ेगा.


धीरे धीरे उनकी तबियत में सुधार आ रहा था. दशवें दिन उनका ऑक्सीजन स्तर काफ़ी बढ़ गया था. घर में लाकर रखे हुए ऑक्सीजन सिलिंडर की ज़रूरत ही नहीं पड़ी.


आज सुबह माँ ने अच्छे से नाश्ता किया तो सब बहुत खुश थे. बस उन्हें एक ही बात खटक रही थी कि जबसे वो बीमार हुईं थीं उनके दामाद अमित ने एक बार भी उनसे बात नहीं की थी. और अब इधर दो दिनों से तो वसुधा ने भी कोई बात नहीं की थी.

उधर अमित की तबियत ज़्यादा खराब हो जाने की वजह से उसे आई. सी. यू. में भर्ती कराया गया था.दोनों बच्चे पापा की हालत जानकर भी अपने आँसू हलक में छुपाकर अपनी नानी से बात करते थे.


एक तरह से पूरा परिवार एक दूसरे के लिए खड़ा था. ये इनके आपसी प्यार की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या थी ?

हर एक दिन डर के साये और निश्चित अनिश्चित के बीच झूलते हुए इस परिवार ने लगभग इक्कीसवें दिन अपने दालान पर सूरज की नई किरणों को जनमते देखा.माँ का टेस्ट अबके नेगेटिव आया था और उधर हॉस्पिटल में अमित की ज़िन्दगी अब खतरे से बाहर थी.


जिस तरह विपत्ति में निज स्वार्थ को परे रखकर पूरा परिवार एक होकर मौत को हरा पाने में सफल हुआ उससे एक बार फिर साबित हो गया कि...अपनों का साथ और प्रेम हो तो बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है.


आज माँ खुश थी और उनका मन भी शांत था क्यूँकि उनकी आज वसुधा से भी बात हुई थी और अमित से भी. कहने को तो सबने कहा कि, अमित को बस हल्का बुखार था, पर माँ की अनुभवी आँखों ने सब ताड़ लिया था.


ललिताजी अपने बच्चों की समझदारी और प्यार देखकर गदगद हो गई थीं.माँ के पूरी तरह ठीक होने के बाद एक दिन ज़ब अनंत माँ को ऑक्सीमीटर लगाकर देख रहा थातो माँ के मुँह से अनायास निकल गया,


"अब तो बस मैंने हिम्मत का मीटर चालू कर दिया है. अब किसीका हौसला नहीं टूटने दूँगी."


"अब तो आपको अपनी सेहत का और भी ध्यान रखना पड़ेगा. आखिर आनेवाला पोता दादी की कमज़ोर बांहों में कैसे खेलेगा "अनंत ने ज़ब माँ के गले लगते हुए कहा तो आरती जैसे शरमाकर अपने आप में ही सिमट गई.अब एक साथ इतनी ख़ुशी मतलब हिम्मत का मीटर चालू और खुशियों का लेबल बढ़ गया.

अंततः हिम्मत और हौसले ने एक बार फिर मौत को हरा दिया था.



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