हाउसवाइफ
हाउसवाइफ


अनिल-रमेश कैसे हो यार। खुशी से अनिल अपने दोस्त से गले लग जाता है "बहुत साल हो गए मिले हुए घर में सब कैसे हैं"?
अनिल ने उत्सुकतापूर्वक अपने दोस्त से पूछा।
रमेश -"बढ़िया हूं यार सर्विस चल रही है पापा मां ठीक हैं मां को 2 साल पहले लकवा मार गया था, अतः वह अभी तक बेड पर हैं, अपना काम भी नहीं कर पाती हैं। पिताजी का तुम जानते ही हो यार दोस्तों में ज्यादा रहना है तो उनसे मिलने कोई ना कोई आता रहता है। दीपू की शादी कर दी है। बड़ी भाभी ने भी भैया के जाने के बाद प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली है।"
अनिल-नीतू भाभी वह तो एमएससी गोल्ड मेडलिस्ट हैं ज़रुर कोई बड़ी व्याख्याता बन गई होंगी, वह तो बचपन से ही टॉपर है। अनिल ने रमेश की पत्नी नीतू के बारे में पूछा जो पढ़ाई में बहुत होशियार थी और उसके बहुत बड़े बड़े सपने थे और वह हर बार अपने कॉलेज के साथ साथ हर एक्टिविटी को टॉप करती थी।
रमेश ने बड़े दुखी मन से यह कहा "नहीं यार जैसा सोचा था वैसा कुछ नहीं हुआ, नीतू ने दो तीन बार कंपटीशन की तैयारी की पर वह पास ना हो सकी। कंपटीशन की पढ़ाई के लिए मेहनत करनी पड़ती है। पर वह घर के काम में ज्यादा इंटरेस्ट लेती है तो कहां से पास होगी। 1-2 बच्चों को ट्यूशन ज़रुर पढ़ा लेती हैं।"
अनिल को रमेश की बात सुनकर अचंभा हुआ, इसमें उसने रमेश से कहा "नीतू भाभी तो बहुत बड़ा पद संभाले बैठी है, हाउसवाइफ का पद। जो आसान नहीं होता उन्होंने अपने सपनों को छोड़कर तुम्हारे परिवार के प्रति अपने दायित्वों को पहले समझा। यह सोचो अगर नीतू भाभी परिवार की ढाल ना बनती तो मां की देखरेख, पिताजी के मेहमानों की आवभगत, भाभी की आर्थिक समस्याएं , व बच्चों और तुम्हारी जरूरतें कौन पूरी करता। यह आज के समय में बहुत बड़ी बात है। हमें तो नीतू भाभी पर गर्व होना चाहिए। वह तो पूरे परिवार की नींव बन गई है। और तुमने उनके सपने पूरे करने के लिए उनका क्या सहयोग दिया।
अनिल की बात सुनकर रमेश को कल का झगड़ा याद आ गया उसने नीतू को यह ताना दिया था वह पढ़ी-लिखी होकर भी पुराने ख्यालात की व घरेलू औरत है। उसे अपनी बात पर बहुत दुख हुआ। और अनिल को यह एहसास हुआ कि उसने नीतू को सपने पूरे करने के लिए कभी कोई सहयोग ही नहीं दिया।
अनिल को बाय कहता हुआ रमेश अपने घर की तरफ चल दिया। नीतू माता जी की सेवा में लगी थी उसने नीतू को कल के झगड़े के लिए सॉरी बोला और गले लगा लिया ।
और वह सोचने लगा कि अगर अनिल मेरा हृदय परिवर्तन नहीं करता तो मैं नीतू के त्याग तपस्या को समझ ही नहीं पाता।
अगले ही दिन से नीतू के भी सपने पूरे हो और उसके भी अपने सपने पूरे करने का समय मिल सके पारिवारिक व भावनात्मक सहयोग देने लगा।