Shailaja Bhattad

Inspirational Tragedy

5.0  

Shailaja Bhattad

Inspirational Tragedy

हाथी के दाँत खाने के और बताने के और

हाथी के दाँत खाने के और बताने के और

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जीवन में कई बार हमारा ऐसी परिस्थितियों से साक्षात्कार होता है जो विरोधाभासी होने के साथ-साथ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव दे जाती हैं।

ऐसा ही एक वाकया हमारे पड़ोसी अपार्टमेंट का है जिसका वाॅचमैन अपने पूरे परिवार के साथ अपार्टमेंट के बेसमेंट में रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी व एक छह माह की पुत्री थी। 8 फ्लैट्स वाले इस अपार्टमेंट में ज्यादातर भजन गाने वाले व लोगों को भाषण देने वाले लोग रहते थे। 1 साल तक तो सब कुछ सामान्य चलता रहा लेकिन उसके बाद अचानक वॉचमैन की पुत्री रात-बेरात रोने लगी। जिस पर भजन गाने वाली महिला जो खुद सुबह 5:00 बजे उठकर अपने गाने से सबकी नींद मैं विघ्न डालती थी, ने उस नन्ही बच्ची की आवाज़ से उसकी नींद पूरी नहीं होती कहकर शिकायत कर डाली। और ऑफ़िस जाते हुए उस बच्ची के खिलौने को कार के पहिये से कुचलते हुए निकल गई। खुद को भगवान की भक्त बताने वाली उस महिला के मन में एक बार भी नहीं आया कि, पूछ ले आखिर उस बच्ची को तकलीफ़ क्या है ? वह इतना रो क्यों रही है? और वैसे भी भगवान तो कण-कण में है। हर प्राणी की सेवा करना, उसके दुख-सुख को बांटना ही सच्ची भगवान भक्ति है। कुछ दिनों बाद वह बच्ची चल बसी। और उस वॉचमैन को उस अपार्टमेंट से निकाल दिया गया। यह सब देख मेरा मन उद्वेलित हो उठा कि जिन लोगों को गाना गवाने के लिए लोग आदर के साथ कार में बैठा कर ले जाते हैं, जो अपार्टमेंट मैं जब चाहे बिना एक बार भी सोचे कि बच्चों को पढ़ना है माइक में रात को 2 बजे तक हारमोनियम, तबला के साथ भजन गाते हैं । इनमें मानवता तो लेश मात्र भी नहीं है। तो क्या ऐसे लोग इस आदर सत्कार के हक़दार हैं। भजन गाते समय इनके मन में ग्लानि का भाव नहीं आता। आखिर व्यक्ति इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है। यह तो वही बात हुई कि "हाथी के दाँत खाने के और बताने के और।"


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