हाथ से फिसलता समय
हाथ से फिसलता समय
मैडम दवाई खा लीजिये, डॉक्टर आते ही होंगे चेकअप के लिए। हॉस्पिटल के बेड में लेटे लेटे सुधा समय के बारे में सोचने लगी कितना अच्छा समय था जब वो शहर आई थी और कितना मनहूस समय था जब वो इन सब में पड़ी। समय कैसे रेत की तरह हाथ से फिसल जाता है, यही सोचते सोचते वो अतीत के गलियारों में चली गई। कितनी मस्त बिंदास लड़की थी वो, हर काम में निपुण, पढ़ाई में भी बहुत ही तेज़ थी तभी तो 12वी के बाद उसे पढ़ने के लिए शहर भेजा गया। बहुत खुश थी गाँव से शहर आ कर उसे बहुत ही अच्छे कॉलेज में एडमिशन भी मिल गया था, उसके पापा का सपना था कि बेटी कुछ बन कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाये ताकि उनके परेशानियों के दिन खत्म हो जाये। सुधा भी यही चाहती थी, इसी लिए उसने मन लगा कर पढ़ना शुरू किया, उसे कॉलेज में क्या हो रहा है उससे कुछ मतलब ही नही था। फर्स्ट सेमिस्टर उसने बहुत ही अच्छे नंबर से पास की, पर जैसे जैसे समय बीतता गया वो अपना लक्ष्य खोने लगी, अपनी रूम की लड़कियों को देखकर, कॉलेज की लड़कियों को देख कर वो भी उनके जैसा बनने का सोचने लगी। फिर क्या था, उसने भी उन्ही की तरह माँस मदिरा खाना पीना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों बाद उसने ड्रग्स भी लेना स्टार्ट कर दिया अब तो उसका बिल्कुल भी पढ़ाई में मन नहीं लगता था। पूरा दिन दोस्तों के साथ ही बितता था, ये सब देख के प्रिंसिपल ने उसके पापा को बुलाया, उन्हें भी देख कर सुधा को कोई फर्क नही पड़ा। उसके माँ पापा ने उसे बहुत समझने की कोशिश की पर वो नहीं मानी उस पर नशे का भूत जो सवार था। माँ पापा रोते रोते गाँव चले गए, पापा ने फिर पैसे भेजना बंद कर दिया, वो तो जैसे पागल ही हो गई, अब सब कहाँ से खरीदे, दोस्तों ने भी हाथ खड़े कर दिए। फिर उसने अपना जिस्म बेचना शुरू किया और उन पैसों से अपनी लत पूरी करना शुरू किया, कुछ ही समय बाद उसकी तबियत ठीक नहीं रहने लगी, उसके दोस्तों ने उसे डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी। चेकअप के बाद डॉक्टर ने कुछ टेस्ट करने की सलाह दी, जब टेस्ट की रिपोर्ट आई तो उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया, उसे एड्स के साथ साथ और कई बीमारी भी हो चुकी थी। जब उसने ये बात दोस्तों को बताई तो सब ने उससे दूरी बना ली, माँ पापा ने भी उसे मदद की उम्मीद ना करने की सलाह दी। अब वो अकेली हो चुकी थी, जैसे जैसे समय फिसलता जा रहा था वो बीमार बहुत बीमार हो रही थी। उसके पास पैसे भी नहीं थे इलाज के लिए, फिर उसने सरकारी अस्पताल जाने का फैसला किया वाह उसे तुरंत ही एडमिट कर लिया गया उसकी हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी। वो बस किसी तरह समय को रोकना चाहती थी, उसे जाने नहीं देना चाहती थी। नर्स की आवाज़ से वो अतित से वापस आई, डॉक्टर उसका चेकअप कर रहे थे पर अब उसमें जान नहीं बची थी। वो समझ चुकी थी कि वो अब समय से हार चुकी है, वो जितनी भी ज़ोर से मुट्ठी बंद कर ले समय तो रेत की तरह उसके हाथों से निकल रहा था। और बस कुछ ही देर बाद डॉक्टर ने उसकी आँखें हाथों से बन्द कर दी, सुधा अब समय से हार चुकी थी, समय उसके हाथों से निकल चुका था।