Mukta Sahay

Drama

3.9  

Mukta Sahay

Drama

हाथ बढ़ाओ, आसमान तुम्हारा है

हाथ बढ़ाओ, आसमान तुम्हारा है

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नई नौकरी, मैंने और बिदिशा दोनो ने साथ ही ज्वाइन किया था, एक ही दिन। हम दोनो में आपस में कोई पहचान नही थी, लेकिन धीरे धीरे दोस्त बन गए। पहले प्रशिक्षण फिर काम का भरपूर बोझ। दोनो ही बुरी तरह काम में दब गए। तभी अचानक कुछ ख़ास काम करने की सूचना, हमारे मुख्य कार्यालय से आई और वह हम दोनो के बीच बाँट दिया गया, साथ में सहायता के लिए कुछ और लोगों को भी हमारे साथ जोड़ा गया।

मैं अपने टीम के साथ काम में जुट गई। जब भी कुछ सहायता या आवश्यक चीजों की माँग करती, जवाब मिलता जितना मिला है उतने में ही पूरा करो, वह भी समय से। वहीं जब बिदिशा को सारी सहूलियत के साथ साथ, वरिष्ठ लोगों से सलाह भी मिलती, उनके अनुभव का लाभ भी दिया जाता। कम मेहनत में ही उसका काम अच्छा हो रहा था। यहाँ मैं और मेरे साथी दिन भर कमर तोड़ मेहनत के बाद भी, उतनी कुशलता से काम नही कर पाते। 

बिदिशा को यह विशिष्ट सहयोग देना मेरी समझ के बाहर था। उन्ही दिनो हमारे मुख्य कार्यालय से एक व्यक्ति आए थे जिनके सत्कार में मेरे पूरा का पूरा कार्यालय लगा था। पता चला ये हमारी कम्पनी के सबसे प्रमुख क्लाइंट हैं और हमारे आधे से भी ज़्यादा का बिज़नेस इनसे ही आता है। इसके बाद जो जानकारी मिली वह बहुत ही चौंकाने वाली थी। बिदिशा इनकी एकलौती बेटी है और काम के गुर सीखने के लिए यहाँ आई है। 

मैं अब समझ गई थी की क़्यों उसे विशिष्ट सहयोग मिला करता था। बिदिशा के पिता के बारे में पता चला की वह एक गाँव से पले – बढ़े और पढ़े व्यक्ति है जो अपनी मेहनत के बाल पर यहाँ तक पहुँचे हैं। यही कारण है की वह अपनी बेटी को भी मेहनत करना सीखना चाहते है तभी अपनी कम्पनी में उसे नही रख यहाँ भेजा है। मैंने ठान लिया कि अब मैं भी मेहनत कर बिदिशा के पिता की तरह अपनी कम्पनी बनाऊँगी। 

मैं अपने काम को पूरा करने के लिए पूरे जी-जान से जुट गई। दिन और रात एक कर दिए। सीमित साधन और सहयोग के साथ कड़ी मेहनत से से मैंने स्वयं को मिला काम बखूबी पूरा किया। मेरे काम को जब क्लाइंट को दिखाया गया तो वह उन्हें बहुत पसंद आया। मेरे काम में उन्हें नयापन देखने को मिला इसलिए वे ख़ासे प्रभावित भी हुए। मुझे इस काम के दो फ़ायदे हुए एक तो मेरी पदोन्नति हो गई और दूसरा ये कि मुझे अनुभव और आत्मविश्वास मिला, जिसके प्रभाव दूरगामी थे। 

कुछ साल काम का अनुभव प्राप्त कर मैंने अपना काम करने का निश्चय किया और एक छोटी सी कम्पनी शुरू की। शुरुआती दिनों में बहुत संघर्ष करना पड़ा। कई बार मन हार भी जाता था पर अगले ही पल बिदिशा और उसके पिता सामने नज़र आते और मैं फिर, दृढ़ता से खड़ी हो आगे बढ़ती। 

मेरी कम्पनी को बने सात साल हो गए हैं। इस समय सब से महत्वपूर्ण ये है कि आज मेरी कम्पनी, बिदिशा के पैतृक कम्पनी की सबसे बड़ी क्लाइंट है और वे मेरी कम्पनी से हर हाल में जुड़े रहना चाहते हैं। सही कहते हैं मेहनत कभी बेकार नही जाती और कब, कहाँ, कौन आपको प्रेरित कर जाए पता ही नही चलता। बिदिशा की पिता ने मुझेसे बिना मिले ही सीखा दिया कि धरती पर धीरे-धीरे चलते हुए गति बढ़ने पर आसमान भी छुआ जा सकता है। 


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