हारते हुए जीतना है
हारते हुए जीतना है
मैं उस दिन परेशान थी कि मुझे आगे जीवन में क्या करना है। घर से कुछ ख़ाकर नहीं निकली और स्कूल में पहुँचते ही भाग-दौड़ शुरू! अपनी कक्षा के बच्चों पर मेरी नज़र जितनी बार पडती, उतनी बार लगता कि एक मैं ही हूँ जो अपने जीवन में शायद कुछ ना कर पाए। ये जो बात मेरे मन में बार बार आ रही थी, सुनने और कहने में तो ख़ास नहीं लगती पर महसूस करते ही आत्मा मन की चिंता से झुलस जाती है। मैं उस कक्षा 12 में थी और इस बात से अनभिज्ञ थी कि मुझे बारहवीं के बाद कौन सा कोर्स करना है और किस कॉलेज में एडमिशन लेना है। मैं कभी अपने फ़ोन में गूगल पर सर्च करती तो कभी घर में किसी से पूछती पर संतुष्टि नहीं मिली।
मैंने अब सोच लिया कि भले ही मैंने कक्षा 12 में पीसीएम स्ट्रीम ली थी पर आगे जो करूंगी इससे हटकर करूंगी। इतिहास में बहुत रूचि थी मुझे। मैंने पापा से बोला कि मुझे बारहवीं के बाद बीए करना है - पापा कुछ ना बोले।
मैं सच कहूँ तो स्कूल में मेरा कोई दोस्त भी नहीं था जिससे मैं खुलकर बात करूँ और मन हल्का कर सकूं। मैं बात सबसे करती थी पर बस उतनी ही, जितने का काम हो। ये आदत मुझे बहुत ख़राब लगती थी कि मैं अपने मन की बात किसी से बोल क्यों नहीं पाती।
एक दिन मुझे बहुत रोना आरहा था ये सब सोचकर - मैंने खुदको चुप करने की बहुत कोशिश की पर सबके सामने रो ही गयी। सबने मुझसे बहुत पूछा कि क्या हुआ है! मैंने कुछ ना कहा। तभी एक अध्यापिका - मीनाक्षी मैम आयीं (वो मेरी सबसे पसंदीदा थीं स्कूल में ) और उन्होंने मुझसे कारण पूछा मेरे रोने का। मैं तो उन्हें भी कुछ नहीं बता पा रही थी तो वो मुझे अपने साथ स्कूल के बगीचे में ले गयीं। वहाँ उन्होंने मुझसे अपने कई अनुभव शेयर किये और उनकी बातों में मैं पूरी तरह से खो गयी। मुझे ऐसा लगरहा था कि वो मेरे रोने का कारण खुद ही समझ गयीं हों और मुझे उसका सोलुशन बता रही हों। उसके बाद मेरे चेहरे पर से असमर्थता का भाव खुद ही चला गया और लगने लगा कि सब ठीक है।
मीनाक्षी मैम के साथ वक़्त बिताकर, उनके अनुभवों को सुनकर मैं इतना प्रभावित हुई कि आज मैं जो हूँ, उन्हीं के कारण हूँ।
आज मेरी पीसीएस परीक्षा का रिजल्ट आया और मैं इसमें पास हो गयी। मेरे माता-पिता तो मुझपर गर्व कर ही रहे हैं। अब मीनाक्षी मैम को फ़ोन लगाना बांकी है !