हादसा
हादसा
आज सुधा की शादी थी, घर में काफी चहल पहल थी घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था... पिता का अच्छा कारोबार था, घर में कोई कमी ना थी और फिर दो ही तो भाई बहन थे दोनो...माता पिता ने बेटी की शादी में दिल खोलकर खर्च किया था... हालांकि सुधा अपनी मर्जी से शादी कर रही थी, माता पिता को सुबोध सुलझा और शरीफ लड़का लगा और उसका घर परिवार भी अच्छा था। उन्होंने तुरंत हां कर दी आखिर बच्चों की खुशी में ही तो माता पिता की खुशी होती है। सुधा ने जोर जोर की आवाज़ सुनी तो वो चौंक सी गई, आवाज़ पिताजी के कमरे से आ रही थी और पिताजी जोर जोर से कुछ बोल रहे थे।क्या बोल रहे थे समझ नहीं आ रहा था इसलिए सुधा उठकर पिताजी के कमरे की ओर चल दी... ये क्या सुबोध और उसके पिताजी वो वहीं ठिठक गई।बाहर से ही सुनने लगीं, पिता कह रहे थे "सुबोध बेटा सुधा मेरी एक ही बेटी है हमने और उसके भाई ने उसे बड़े लाड़ प्यार से पाला है, जिस चीज पर हाथ रखती है वहीं उसे मिल जाती है एक दिन इतनी बड़ी हो गई की अपने लिए वर भी ढूंढ़ लिया तो भी हमने उसका दिल दुखने नहीं दिया तुम्हारी सारी जरूरतें पूरी कर तुम्हें एक बड़ा घर भी दिया ताकी उसकी माँ और भाई को ये ना लगे कि सुधा को तकलीफ़ होगी, तुमने गाड़ी मांगी हमने दी, सुधा की खुशी के लिए जो जो तुमने कहा मैंने किया और तुम्हारे कहे अनुसार कभी उससे जिक्र नहीं किया।" पिता की आँख में आँसू थे और उन्होंने आगे कहा "सुबोध सुधा की खुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ नहीं और फिर हम हिन्दुस्तानी कन्या दान से बड़ा कोई पुण्य नहीं मानते इसलिए जितने भी उपहार नेग हमने तुम्हें दिए वो सब सुधा के हक के थे पर अब मेरे कारोबार में हिस्सा बेटा ये फैसला मैं अकेले नहीं ले सकता इसके लिए सुधा की माँ और भाई को भी बुलाना पड़ेगा।"
पिता असहाय से बोल रहे थे छः फुट के रोबीले पिता आज बेटी की ख़ुशियों की ख़ातिर बहुत ही मजबूर पिता लग रहे थे कि तभी सुबोध के पिता की आवाज़ आई, "अरे साहब हमे क्या दे रहे हो अपनी बेटी को से रहे हो उसमे भी इतना नखरा।" पिता की दर्द भरी आवाज़ आई "पर घर गाड़ी सबकुछ तो सुबोध के ही नाम किया है।" अभी बोल ही रहे थे की सुबोध बीच में ही बोल पड़ा "तो क्या मैं बेच दूंगा सबकुछ ऐसा सोच रहे हैं आपकी बेटी ही तो रहेगी उसमे क्या एहसान कर रहे हैं।" सुधा सोच रहीं थीं ये वो सुबोध है जो बड़ी बड़ी बात किया करता था दो रोटी खा कर की लूँगा पर तुम्हें दुनिया की हर खुशी दूँगा इत्यादि, छी कितना दोगला है ये घिन हो रही थी सुधा को अपनी पसंद पर, तभी पिता की आवाज़ ने चौंका दिया सुबोध से कह रहे थे "नहीं बेटा मैंने ऐसा कब कहा ये सबकुछ सुधा का ही है, ये तो रिवाज हैं की हर माता पिता अपनी बेटी को सामर्थ्य के अनुसार उपहार, नेग देते ही हैं वहीं मैने भी किया।" सुबोध फिर बोला "इसीलिए तो कह रहा हूं बाद ने भी कारोबार के दो हिस्से होने है अभी कर दो और मुझे यानी सुधा को उसका हिस्सा दे दो मेरे नाम से इसमें भी परेशानी हो रही है आपको तो हम आज बारात लेकर नहीं आयेंगे और एक बात सुधा बेचारी कुछ नहीं जानती बहुत प्यार करती है मुझसे कहीं शादी होती ना देखकर ख़ुदकुशी ना कर ले।"
सुबोध का घिनौना चेहरा सामने आ गया था सुधा ने सपने में भी नहीं सोचा था मीठी मीठी बातों के पीछे उसकी ये चाल थीं प्यार नहीं था उससे बल्कि उसके पिता के पैसों पर नजर थी। तभी पिता रोते हुए सुबोध की ओर बड़े "ऐसा ना कहो बेटा समय पर तुम्हारा हक तुम्हें मिल जाएगा।" "अभी चाहिए या फिर रखिए अपनी बेटी अपने घर सुबोध की आवाज़ थी।" पिता अपनी गुलाबी पगड़ी उतार ही रहे थे की सुधा अन्दर चली गई, "मिस्टर सुधीर सुधा एक बहादुर पिता की बहादुर बेटी है और तुम जैसे कंगाल, और असंस्कारी इंसान के लिए अपनी कीमती जान कभी नहीं देगी, तुम क्या बारात नहीं लाओगे मैं तुम्हें ठुकराती हूं खबरदार जो घर के आस पास भी नजर आए" सुधा लगभग चीख पड़ी, की सभी घरवाले एकत्रित हो गए और सुधा ने जो कुछ हुआ सब बता दिया। बात बिगड़ती देख सुधीर बोला "माफ़ करो सुधा मैं बस यूं ही देख रहा था तुम्हारे पापा तुमसे कितना प्यार करते हैं, ये लो घर और गाड़ी के पेपर अभी तो मेरे नाम होने है तुम अपने नाम कर लो।" "सुबोध इससे पहले की मैं पुलिस को बुलाऊं अपने पिता को लेकर इज़्ज़त से यहां से चले जाओ मेरे संस्कार कहते हैं बड़ों की इज़्ज़त करो जो तुम मेरे पिता की तो कर नहीं पाए पर अपने पिता की इज़्ज़त बचा लो और दोनो यहां से जाओ।" पिता व्याकुल हो उठे "नहीं सुधा..." "पिताजी क्या आप ऐसे लालची लोगों से मेरी शादी कर आप मुझे मारना चाहते हैं" सुधा बोली तो पिता ने उसे गले लगा लिया "मेरी समझदार बेटी... " सभी खुश हो चले एक हादसा होते होते टल गया और सभी जश्न मनाने लगे।